मधुसूदन महाराज: जगन्नाथ जी से जुड़ा ये राज लोगों को बताया नहीं जाता

punjabkesari.in Friday, Jul 01, 2022 - 09:56 AM (IST)

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आज शुक्रवार, 1 जुलाई से ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का आरंभ होगा। इस यात्रा का आरंभ आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया से होता है, दशमी के बाद भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अपने मुख्य मंदिर लौट आते हैं। कुंडली टीवी के एडिटर श्री नरेश अरोड़ा ने श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज के लाडले शिष्य भक्ति प्रसुन्न मधुसूदन महाराज (तीर्था गोवर्धन) से भेंट करी और उनसे जगन्नाथ रथयात्रा के विषय में जाना, आप भी जानें कुछ गहन रहस्य

श्री जगन्नाथ रथ यात्रा के बारे में बताएं
जगन्नाथ रथयात्रा आदिकाल से चली आ रही है। जब विग्रह प्रतिष्ठा होती है तो उस वक्त भगवान का एक नियम होता है वो स्नान यात्रा के बाद नगर में विचरण करने जाते हैं, जैसे किसी राजा का अभिषेक किया जाता है। फिर राजा राज्य में देखने जाते हैं कि नगर में क्या हो रहा है ?

स्कंद पुराण, ब्रह्म पुराण में उल्लेख आता है की जब जगन्नाथ जी रथ में सवार होते हैं तो उस समय उनके रथ की रस्सी को खींचने वाला बैकुंठ धाम की प्राप्ति करता है यानी मुक्ति से भी ऊपर का स्थान उसे प्राप्त होता है। एक राजा का राज्य शासन देखने के लिए ये उत्सव है। 

विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा मुख्य रूप से पुरी का उत्सव है, फिर ये देश-विदेश में क्यों निकाली जाती है
जैसे जन्माष्टमी तो मथुरा का उत्सव है लेकिन पूरे विश्व में उसे मनाया जाता है वैसे ही जगन्नाथ जी की रथ यात्रा का पर्व न केवल पुरी में बल्कि अन्य स्थानों पर भी निकाली जाती है ये यात्रा।

पुरी में तो रथयात्रा निकालने का विधान है, फिर अन्य प्रांतों में कभी भी रथयात्रा निकाली जा सकती है ?
कभी भी रथयात्रा निकाले जाने वाला उत्सव तो गलत है लेकिन प्रभुपाद जी ने जन कल्याण के लिए कहीं एक-दो स्थानों पर ऐसा महोत्सव आरंभ किया था। वे भगवान के अभिन्न प्रकाश थे, उनके निज जन थे। उन्होंने ऐसा प्रचलन आरंभ किया जैसे आज भारत में है दो दिन बाद इंग्लैंड में तीन दिन बाद अमेरिका में रथयात्रा निकाली जाती थी। उनका यात्रा निकाले जाने का उद्देश्य बिल्कुल अलग था लेकिन वर्तमान समय में रथयात्रा को कारोबार की तरह बना देना गलत है।

पुरी के जगन्नाथ टेंपल वालों ने सुप्रीम कोर्ट में केस भी किया था। संभव है अब तो सभी जगह एक ही दिन रथ यात्रा निकाली जाएगी।

श्री जगन्नाथ जी 15 दिन के लिए बीमार क्यों होते हैं ?
महाराज मुस्कराते हुए बोले भगवान बीमार होते हैं, ऐसे कौन कहता है ? माधव दास भगवान के अनन्य भक्त हुए हैं, उनके साथ भगवान के बीमार होने को जोड़ा जाता है लेकिन वैज्ञानिक आधार कुछ और है। जब भगवान को स्नान करवाया जाता है तो जो भगवान का स्वरुप है वे लकड़ी का बना हुआ है, उसके ऊपर चंदन और वस्त्रों द्वारा उन्हें लपेटा गया है। जब उन्हें स्नान करवाते हैं तो वो भीग जाते हैं। फिर उन सारे वस्त्रों को खोलकर दोबारा से उन्हें वस्त्र पहनाए जाते हैं। जो की प्रॉपर एक प्रोसेस होता है। उसके लिए बीमार शब्द का प्रयोग कर दिया जाता है। प्रैक्टिकली भगवान के वस्त्र बदले जाते हैं। एक अंग वस्त्र होते हैं, जो भीतर पहने जाते हैं, जो भगवान के अंदर हैं, दिखाई नहीं दे रहे हैं । अंग वस्त्र हैं चंदन और सूत के वस्त्र और दूसरे अवरण वस्त्र होते हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से देखे जाते हैं। जब भगवान को स्नान करवाते हैं तो वो भीग जाते हैं। उन्हें चेंज करने में 15 दिन लग जाते हैं। 
भक्तों के भाव का आदर करते हुए भगवान ने भक्त माधव दास जी से ये लीला करवाई। भगवान ने कहा, तेरे बदले अब मैं बीमार रहता हूं। प्राचीनकाल से ही ऐसा चला आ रहा है। जो लोगों को बताया नहीं जाता।

ये भी माना जाता है की श्री कृष्ण की आत्मा जगन्नाथ जी में है, क्या ये सत्य है
जगन्नाथ जी के ह्रदय में एक शालिग्राम है, जो जीवित है, उनकी धड़कन है। दो तरह के शालिग्राम होते हैं शीला स्वरुप और जीवंत। जीवंत को पकड़ कर फील किया जा सकता है, वो धड़कते हैं, ऐसा ही शालिग्राम वृंदावन के राधा रमण मंदिर में है। जो शालिग्राम पत्थर से फट कर निकले थे।

लोक मान्यता के अनुसार नव कलेवर के समय जगन्नाथ जी की आत्मा पुराने स्वरुप से निकालकर नए रुप में डाली जाती है, क्या यह सच है ?  
क्या मनुष्य की आत्मा ट्रांसफर की जा सकती है, फिर जगन्नाथ जी तो भगवान हैं, उनकी आत्मा कैसे ट्रांसफर हो सकती है। रूप गोस्वामी जी कहते हैं, जगन्नाथ जी ब्रह्म गुटीका शालिग्राम हैं।

लोक मान्यता के अनुसार जो भी बोला जाता है लेकिन प्रैक्टिकल भाषा में जगन्नाथ जी जीवंत शालिग्राम हैं।


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Content Writer

Niyati Bhandari

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