Sankashti chaturthi: गणेश जी के एकदंत बनतेे ही मां पार्वती बनी दुर्गा, पढ़ें कथा

Saturday, May 29, 2021 - 06:18 AM (IST)

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Ekadanta Sankashti Chaturthi 2021: किसी भी पूजा-पाठ के काम में सबसे पहले गणपति की पूजा की जाती है। भगवान गणेश को गजानन, एकाक्षर, विघ्नहर्ता, एकदंत के अलावा और भी कई नामों से बुलाया जाता है। विद्या, बुद्धि, विनय, विवेक में भगवान गणेश अग्रणी हैं। वह वेदज्ञ हैं। महाभारत को उन्होंने लिपिबद्ध किया है। दुनिया के सभी लेखक सृजक शिल्पी नवाचारी एकदंत से प्रेरणा पाते हैं। एकदंत स्वरूप गजानन को भगवान परशुराम के प्रहार से मिला। एक बार शिवजी के परमभक्त परशुराम उनसे मिलने आए। उस समय कैलाशपति ध्यानमग्र थे। गणेश जी ने परशुराम को मिलने से रोक दिया। परशुराम जी ने उन्हें कहा वह मिले बिना नहीं जाएंगे।


गणेश भी विनम्रता से उन्हें टालते रहे। जब परशुराम जी का धैर्य टूट गया तो उन्होंने गजानन को युद्ध के लिए ललकारा। ऐसे में गणाध्यक्ष गणेश जी को उनसे युद्ध करना पड़ा। दोनों में भीषण युद्ध हुआ। परशुराम जी के हर प्रहार को गणेश निष्फल करते गए। अंतत: क्रोध के वशीभूत परशुराम ने गणेश जी पर शिव से प्राप्त परशु से ही वार किया। गणेश जी ने पिता शिव से परशुराम को मिले परशु का आदर रखा।


परशु के प्रहार से उनका एक दांत टूट गया। पीड़ा से एकदंत कराह उठे। पुत्र की पीड़ा सुनकर माता पार्वती आईं और गणेश जी को इस अवस्था में देख परशुराम पर क्रोधित होकर दुर्गा के स्वरूप में आ गईं। यह देख परशुराम जी समझ गए कि उनसे भयंकर भूल हुई है। परशुराम जी ने माता पार्वती से क्षमा-याचना कर एकदंत की विनम्रता की सराहना की तथा गणेश जी को अपना समस्त तेज, बल, कौशल और ज्ञान आशीष स्वरूप प्रदान किया।


इस प्रकार गणेश जी की शिक्षा विष्णु के अवतार गुरु परशुराम के आशीष से सहज हो गई। कालांतर में उन्होंने इसी टूटे दांत से महर्षि वेदव्यास से उच्चरित महाभारत कथा का लेखन किया।  

देवताओं में प्रथम पूज्य गणेश को एकदंत रूप आदिशक्ति पार्वती, आदिश्वर भोलेनाथ और जगतपालक श्रीहरि विष्णु की सामूहिक कृपा से प्राप्त हुआ। गणेश इसी रूप में समस्त लोकों में पूजनीय, वंदनीय हैं। 

Niyati Bhandari

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