ऐसे घर में सदैव विराजमान होती हैं मां लक्ष्मी
Thursday, Apr 05, 2018 - 03:41 PM (IST)
धार्मिक मान्यता है कि पृथ्वीलोक का सबसे बड़ा सुख वैकुण्ठ का निम्नतम सुख है। इससे हम सोच सकते हैं कि वैकुण्ठ धाम का सबसे बड़ा सुख कैसा होगा। इस तरह वैकुण्ठ परम सुख का धाम है। वैकुण्ठ धाम जगतपालक भगवान विष्णु की दुनिया है। वैसे ही जैसे कैलाश पर महादेव व ब्रह्मलोक में ब्रह्मदेव बसते हैं। भगवान विष्णु का धाम वैकुण्ठ बड़ा ही दिव्य है। वैकुण्ठ धाम चेतन है, स्वयं प्रकाशमान है। इसके कई नाम है - साकेत, गोलोक, परमधाम, परमस्थान, परमपद, परमव्योम, सनातन आकाश, शाश्वत-पद, ब्रह्मपुर।
पौराणिक कथा के अनुसार, श्रीकृष्ण अपनी पटरानी रुक्मिणी के साथ गोलोक धाम गए, वहां धन की देवी लक्ष्मी श्री हरि विष्णु के चरण दबा रही थी। रुक्मिणी जी ये दृश्य देखकर बहुत प्रसन्न हुई। लोक कल्याण की भावना से उन्होंने देवी लक्ष्मी से पूछा, "हे देवी, आप किस घर में निवास करना चाहती हैं?"
मां धनलक्ष्मी जी बोली,"जिस घर में गृहस्थी का कुशल प्रबंध हो, जहां सदा स्वच्छता रहती है, घर के सदस्य मृदुभाषी और सौहार्द बनाए रखने वाले हों, परिवार में बड़े-बूढ़ों की सेवा-सुश्रूषा होती है, जिस घर के द्वार से कोई भूखा-असहाय खाली न लौटे, जहां स्त्रियों का अनादर या शोषण न हो, मैं वहां निवास करना चाहती हूं।"
महाभारत में स्वयं श्री महालक्ष्मी ने बताया है कि मैं कहां-कहां हूं- मैं प्रयत्न में हूं, उसके फल में हूं। शांति, प्रेम, दया, सत्य, सामंजस्य, मित्रता, न्याय, नीति, उदारता, पवित्रता और उच्चता-इन सबमें मेरा निवास है।
गोबर में लक्ष्मी का वास होने से इसे 'गोवर' अर्थात गौ का वरदान कहा जाना ज्यादा उचित होगा। गोबर से लीपे जाने पर ही भूमि यज्ञ के लिए उपयुक्त होती है। गोबर से बने उपलों का यज्ञशाला और रसोई घर, दोनों जगह पर प्रयोग होता है। मान्यता है जिस जगह को प्रतिदिन गाय के गोबर से लीपा पोता जाता है वह जगह हमेशा पवित्र रहती है और उस स्थान में मां लक्ष्मी सर्वदा निवास करती हैं। ऐसे घर को धन-दौलत से समृद्ध करती हैं मां लक्ष्मी।