मां दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कैसे पड़ा ‘कात्यायनी’, पढ़ें कथा

Monday, Mar 30, 2020 - 07:25 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Chaitra Navratri 2020: मां कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी आलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है। उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं। जन्म-जन्मान्तर के पापों को विनष्ट करने के लिए मां की उपासना से अधिक सुगम और सरल मार्ग दूसरा नहीं है। इनका उपासक निरंतर इनके सान्निध्य में रहकर परमपद का अधिकारी बन जाता है। अत: हमें सर्वतोभावेन मां के शरणागत होकर उनकी पूजा-उपासना के लिए तत्पर होना चाहिए।

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।

मां दुर्गा के छठे स्वरूप ‘कात्यायनी’ का यह नाम पड़ने की कथा इस प्रकार है- कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी कि मां भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। मां भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली थी।

कुछ काल पश्चात् जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बहुत बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की। इसी कारण यह कात्यायनी कहलाईं।

ऐसी भी कथा मिलती है कि ये महर्षि कात्यायन के वहां पुत्री रूप से उत्पन्न भी हुई थीं। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक-तीन दिन-इन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था।

 

Niyati Bhandari

Advertising