Lord Shiva Statue: राजस्थान में स्थापित है भगवान शिव की विश्व में सबसे ऊंची मूर्ति, 20 किमी दूर से हो जाते हैं दर्शन
punjabkesari.in Sunday, Dec 15, 2024 - 06:00 AM (IST)
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Lord Shiva Statue: भगवान शिव की सबसे ऊंची मूर्ति राजस्थान के नाथद्वारा (जिला राजसमंद) में बनी है। इस मूर्ति में भगवान शिव को बैठे हुए दिखाया गया है। उनका बायां पैर दाहिने घुटने पर है और बाएं हाथ में त्रिशूल है। चेहरे पर भाव मूर्ति और भक्तिपूर्ण है।
इस विशाल प्रतिमा को 2009 में डिजाइन किया गया था, निर्माण अगस्त 2010 में शुरू हुआ और 2020 में पूरा हुआ। इस विशाल मूर्ति की आसन (110 फुट) सहित कुल ऊंचाई 369 फुट है और जब मौसम साफ हो तो इसे 20 किलोमीटर दूर से भी देखा जा सकता है। मूर्ति के आकार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मूर्ति का अकेला सिर ही 77 फुट लंबा है। भगवान शिव की मूर्ति के अलावा उनकी सवारी नंदी बैल की मूर्ति भी बहुत बड़ी है। नंदी बैल 25 फुट ऊंचे और 37 फुट लंबे हैं। शिवजी के गले में शोभायमान नाग की लंबाई लगभग 100 फुट है।
इस मूर्ति का निर्माण महान शिवभक्त सेठ मदन पालीवाल ने करवाया था। दर्जनों कम्पनियों के मालिक अरबपति मदन पालीवाल का जन्म नाथद्वारा में हुआ था। एक साधारण परिवार में जन्मे पालीवाल, एक उद्यमी से अरबपति बनने तक की अपनी यात्रा का श्रेय भगवान शिव की कृपा को देते हैं। इस प्रतिमा का डिजाइन भारत की सबसे मशहूर आर्किटेक्ट कम्पनी शापूरजी प्लोंजी ने तैयार किया और निर्माण महान जहाज निर्माता इंजीनियर नरेश कुमावत ने किया। इस मूर्ति को पहले मिट्टी और कंक्रीट से तैयार किया गया था, उसके बाद इस पर तरल जस्ता का कई इंच मोटा छिड़काव किया गया और अंत में तांबे का लेप लगाया गया। इससे यह मूॢत बारिश और राजस्थान की चिलचिलाती धूप से सुरक्षित हो गई और यह बिना किसी बड़ी मुरम्मत के 250 साल तक स्थिर रहेगी।
यह परिसर लगभग 55 एकड़ में फैला हुआ है, जिसमें बाग-बगीचों, हर्बल पार्क, वॉटर पार्क, पार्किंग और बच्चों के लिए एक मिनी डिज्नीलैंड शामिल है। मूर्ति अंदर से खोखली है और इसमें चार मंजिलें हैं। इनमें कई सभागार, मीटिंग हॉल और 3डी स्क्रीन हैं जिस पर तीर्थयात्रियों को हिन्दू धर्म, भारतीय इतिहास और विरासत से संबंधित लघु फिल्में दिखाई जाती हैं।
बच्चों और युवाओं को हिन्दू धर्म तथा विरासत से जोडऩे के लिए इस खंड में हिन्दू धर्म के वेदों, पुराणों, रामायण, महाभारत और महान संतों तथा विचारकों के चित्र तथा प्रतिमाओं को स्थापित किया गया है। अंदर तक पहुंचने के लिए चार लिफ्टें और 700 सीढ़ियां हैं। मूर्ति का आंतरिक भाग इतना विशाल है कि इसके अंदर एक साथ 10000 लोग समा सकते हैं।
इस मूर्ति के निर्माण में 50000 कारीगरों ने 10 साल तक काम किया और इसके निर्माण में 30000 टन स्टील, जस्ता, पीतल, कांस्य और तांबे का इस्तेमाल किया गया, जबकि अढ़ाई लाख घन टन कंक्रीट इसमें लगा है। यह प्रतिमा इतनी मजबूत है कि 250 कि.मी. की गति से चलने वाली हवा भी इसे कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाती। इसके निर्माण में 300 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत आई थी।