महाशिवरात्रि: ऐश्वर्यवान जीवन की चाहत रखने वाले शिव पूजन उपरांत करें आरती

Tuesday, Feb 13, 2018 - 09:50 AM (IST)

भगवान शिव किसी एक धर्म के पूजनीय नहीं बल्कि विश्वभर की सर्व आत्माओं के परम पूज्य पिता हैं। यदि इन तथ्यों को सब समझ लें तो विश्व को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है। भगवान शिव अजन्मा, अकर्ता, अभोगता और ब्रह्मलोक वासी हैं। अजन्मा इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह मानव व दूसरे प्राणियों की तरह मां के गर्भ से जन्म नहीं लेते जिसका कोई कर्म बंधन अथवा कर्म का लेखा-जोखा हो क्योंकि वह तो पूर्ण रूप से कर्मातीत हैं। शिव के इस दिव्य अवतरण की पावन स्मृति में ही शिवरात्रि अथवा शिवजयंती का त्यौहार मनाया जाता है। यह केवल 10-12 घंटे की रात नहीं बल्कि अज्ञान रात्रि के साथ संबंधित हैं। द्वापर और कलियुग को रात्रि कहा जाता है और सतयुग-त्रेता युग को दिन। शिवरात्रि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चौदहवीं अंधेरी रात्रि को अमावस के एक दिन पहले मनाई जाती है। फाल्गुन मास वर्ष के अंत का सूचक है और चौदहवीं रात्रि घोर अंधकार की निशानी है क्योंकि शिव ही ज्ञान के आनंद, प्रेम के सागर परमपिता परमात्मा हैं जो पतित आत्माओं को माया के चंगुल से मुक्त कर देवता बना सतयुगी पावन सृष्टि की पुन: स्थापना करते हैं इसलिए शिवजयंती ही हीरे समान बनाने वाली हीरे जैसी जयंती है।


महाशिवरात्रि पर धन धान्य व ऐश्वर्यवान जीवन की चाहत रखने वाले भगवान शिव के पूजन उपरांत आरती अवश्य करें।


भगवान शिव की आरती 
जय शिव ओंकारा ऊं जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अद्र्धांगी धारा॥ ऊं जय शिव...॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे। हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे॥ ऊं जय शिव...॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे। त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ऊं जय शिव...॥

अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी। चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी॥ ऊं जय शिव...॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे। सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥ ऊं जय शिव...॥

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता। जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ ऊं जय शिव...॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका॥ ऊं जय शिव...॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी। नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी॥ ऊं जय शिव...॥ 

त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावे। कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे॥ ऊं जय शिव...॥ 

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