Ramayan: वनवास के दौरान इन स्थानों पर गए थे श्रीराम

Sunday, Jan 31, 2021 - 10:10 AM (IST)

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Know the Vanvas Route of Lord Rama: केन्द्र सरकार में सहायक निदेशक राज भाषा के तौर पर सेवानिवृत हुए श्री डा. राम अवतार ने ‘जहं-जहं चरण पड़े रघुवर के’ शीर्षक से श्रीराम के यात्रा स्थलों का विवरण पुस्तक रूप में प्रकाशित करवाया था जिसका धारावाहिक रूप से प्रकाशन  हम आरम्भ कर रहे हैं। आशा करते हैं इससे हमारे पाठक श्रीराम के यात्रा स्थलों के बारे में जानकारी से लाभान्वित होंगे।


दशरथ जी महल, अयोध्या (सरयू जी), फैजाबाद (उत्तर प्रदेश)
अयोध्या जी राजा दशरथ की राजधानी थी। यहीं से मुनि विश्वामित्र श्री राम व लक्ष्मण जी को यज्ञ रक्षा के लिए अपने साथ लेकर चले थे।

शृंगी आश्रम, शेरवाघाट (सरयू जी), फैजाबाद (उ.प्र.)
शेरवा घाट के पास महबूब गंज से 3 कि.मी. उत्तर दिशा में सरयू के किनारे प्राचीन शृंगी आश्रम है। यदि सरयू के किनारे-किनारे आएं तो यह स्थल अयोध्या जी से लगभग 20 कि.मी. पड़ता है। यहां अनेक संतों की कुटिया हैं। संतजन मानते हैं कि ऋषि विश्वामित्र ने यहीं श्री राम को बला तथा अतिबला की शिक्षा दी थी। यह भी माना जाता है कि उस समय भी यहां अनेक ऋषि रहते थे। उन्हीं के आश्रम में ऋषि विश्वामित्र ने श्री राम, लक्ष्मण के साथ विश्राम किया था।

भैरव मंदिर, महाराज गंज (सरयू जी), आजमगढ़ (उ.प्र.)
माना जाता है कि महाराज गंज के निकट प्राचीन भैरव मंदिर में उन्होंने रात्रि विश्राम किया था क्योंकि उन्होंने यात्रा सरयू जी के किनारे-किनारे की थी और रात्रि विश्राम भी किया था तो यह तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि वे इसी मार्ग से गए थे।

भैरव मंदिर, महाराज गंज (सरयू जी), आजमगढ़ (उ.प्र.)
माना जाता है कि महाराज गंज के निकट प्राचीन भैरव मंदिर में उन्होंने रात्रि विश्राम किया था क्योंकि उन्होंने यात्रा सरयू जी के किनारे-किनारे की थी और रात्रि विश्राम भी किया था तो यह तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि वे इसी मार्ग से गए थे।


Seetha Rama Vanavasam: रामायण के गहन अध्ययन से अनुभव होता है कि इतनी लम्बी यात्रा श्री राम ने ऋषियों के मार्गदर्शन में ही की थी। इसके कुछ संकेत देखे जा सकते हैं। प्रयागराज में ऋषि भारद्वाज उन्हें चित्रकूट जाने के लिए कहते हैं तथा मार्ग बताने के लिए अपने चार शिष्य उनके साथ भेजते हैं।

What is the probable travel route of Shri Ram Chander Ji : महर्षि वाल्मीकि उन्हें चित्रकूट में निवास का परामर्श देते हैं क्योंकि तब तक रावण के भाई खर के आतंकवादी चित्रकूट तक पहुंच चुके थे। चित्रकूट से वह अत्रि जी के आश्रम आते हैं। अत्रि जी श्री राम को विराध के क्षेत्र में भेजते हैं। वहां से शरभंग-आश्रम तक ऋषि मंडली उनके साथ रहती है। शरभंग आश्रम से सिद्धा पहाड़ के आगे तक कई तपस्वी उनके साथ रहते हैं जो सुतीक्षण आश्रम तक जाते हैं। जब श्री राम 10 वर्ष के दंडक भ्रमण पर जाते हैं तो धर्मभ्रत तथा अन्य ऋषि उनके साथ-साथ रहते हैं। वापस सुतीक्ष्ण आश्रम आने पर मुनि उन्हें अगस्त्य जी के भाई तथा अगस्त्य जी के आश्रम पर भेजते हैं।


What is the journey of Ram, Lakshman and Sita: ऋषि अगस्त्य उन्हें पंचवटी भेजते हैं, जहां खर से उनका युद्ध होता है। सीता-हरण के बाद भी कल्लोल आदि ऋषि उन्हें मार्गदर्शन देते हैं। ऋषि अगस्त्य तो लंका तक जाकर युद्ध में उनका उत्साहवर्धन करते हैं। इस प्रकार नि:संदेह कहा जा सकता है कि श्री राम की पूरी यात्रा ऋषियों के मार्गदर्शन में हुई है। इसी प्रकार श्री राम वनगमन की खोज भी संतों की कृपा तथा आशीर्वाद से हुई है।

Sri Raam Vanavas: कुछ विद्वान इन मार्गों/स्थलों के प्रमाण मांगते हैं। वे पूछते हैं- उत्खनन में क्या मिला? सिक्के, बर्तन आदि कितने पुराने हैं, किस इतिहासकार ने इन स्थलों की पुष्टि की है, इन पर हंसी आती है। पुरातत्व विभाग के पूर्व निदेशक डा. स्वराज प्रकाश गुप्त का सांकेतिक निर्देश स्मरण आ जाता है ‘‘हम पुरातत्वर्वत्ता मानते हैं कि महाभारत की घटना 5000 वर्ष पूर्व की है और रामायण 3000 वर्ष पूर्व की। इस बात का हमारे पास कोई उत्तर नहीं कि महाभारत में रामायण के पात्रों की चर्चा कैसे आ गई?’’


History of Ramayana: सत्य भी है कि पुरातत्व का विद्वान वही मानेगा जो उसे खनन में मिलेगा। कितना पुराना व कितना गहरा खनन कहां हो, इसी पर प्राय: निर्णय ठीक नहीं हो पाते। सभी की अपनी सीमा होती है। फिर इतने पुराने अवशेष मिलना भी संभव नहीं और फिर जो मिलता है उस पर क्या किसी का नाम लिखा है? बस एक धारणा ही तो है।

Lord Ramas Route Journey According To Epic Ramayana: तो फिर क्या आधार हो सकता है? हां एक बहुत बड़ा आधार है-लोक विश्वास, जनश्रुतियां, लोककथाएं। इस लोक विश्वास को न तो मंदिरों, मठों की भांति तोड़ा जा सका तथा न ही पश्चिम की आंधी तथा उत्तर के आक्रमण इन्हें इतिहास लेखन की तरह भ्रमित कर सके।


Ramayan: इन्हें नालंदा तथा तक्षशिला विश्वविद्यालय के ग्रंथागारों की तरह जलाया भी नहीं जा सका। ये तो जन-जन की चेतना में पीढ़ी-दर-पीढ़ी, पूर्वजों से मिली धरोहर है जो आज भी हमारी भारतीय संस्कृति, हिन्दू संस्कृति या आर्य संस्कृति अथवा जो भी कहें, की रक्षा कर रही है।


Story of Ramayan: श्री राम की कहानी तो हमारे प्राचीन ग्रंथों में बहुत ही विस्तार एवं प्रभावी ढंग से मिलती है। श्री राम प्रात: स्मरण से सायं सोने तक, गर्भाधान से ‘राम नाम सत्य है’ तक प्रभावित करते हैं।

 

 

Niyati Bhandari

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