Lohri: नाचती गाती लोहड़ी है आई, पढ़ें उत्सव की पूरी जानकारी

Tuesday, Jan 09, 2024 - 08:24 AM (IST)

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Happy Lohri 2024: समस्त उत्तर भारत में लोहड़ी का त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पंजाब और हरियाणा में तो लोहड़ी का त्यौहार मनाए जाने की बात ही निराली है। आपसी प्रेम और भाईचारे की मिसाल कायम करने वाला एक अनूठा पर्व है लोहड़ी जिसे सभी एक साथ मिलजुल कर नाच गाकर खुशियां मनाकर मनाते हैं।

 Lohri 2024: इस पर्व पर मौसम की कड़ाके की ठंड होती है और लोग लोहड़ी वाले दिन अपने घरों  के बाहर अलाव जलाकर अग्रि की पूजा करते हैं ताकि उनके घरों में दरिद्रता का समूल नाश हो और घर में सुख-समृद्धि का साम्राज्य स्थापित हो सके।

Traditions of Lohri: पंजाबी लोगों में जिस घर में नई शादी हुई हो, शादी की पहली वर्षगांठ हो अथवा संतान का जन्म हुआ हो वहां तो लोहड़ी का विशेष महत्व होता है। लोहड़ी के दिन कुंवारी लड़कियां रंग-बिरंगे नए-नए कपड़े पहन कर ऐसे घरों में पहुंच जाती हैं और लोहड़ी मांगती हैं।

How To Celebrate Lohri: लोहड़ी के रूप में उन्हें कुछ रुपए, मूंगफली, रेवड़ी व मक्का की खील (पापकार्न) मिलती है। नवविवाहित लड़कों के साथ अठखेलियां करती हुई लड़कियां यह कह कर लोहड़ी मांगती हैं :

लोहड़ी दो जी लोहड़ी, जीवै तुहाडी जोड़ी।

Lohri Festival Special Punjabi Songs: इसी प्रकार नवजात शिशुओं को भी गोद में उठाकर लड़कियां उन्हें गीतों के माध्यम से आशीर्वाद देते हुए उनके माता-पिता से लोहड़ी मांगती हैं। इस प्रकार लोहड़ी के नाम पर उन्हें जितने भी रुपए या खाने-पीने की सामग्री  मिलती है, उसे वे आपस में बराबर बांट लेती हैं।

lohri festival song in hindi: लोहड़ी से कुछ दिन पहले ही गली-मोहल्ले के लड़के-लड़कियां घर-घर जाकर लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी मांगने लगते हैं और लोहड़ी के दिन उत्सव के समय जलाई जाने वाली लकडिय़ां व उपले मांगते समय भी बच्चे लोहड़ी के गीत गाते हैं :
हिलणा वी हिलणा, लकड़ी लेकर हिलणा
हिलणा वी हिलणा, पाथी लेकर हिलणा
दे माई लोहड़ी तेरी जिए जोड़ी।


Puja Vidhi of Lohri: जिस घर से लोहड़ी या लकड़ियां व उपले नहीं मिलते वहां बच्चों की टोली इस प्रकार के गीत गाती हुई भी देखी जा सकती है :
कोठे उते हुक्का, ये घर भुक्खा,
उड़दा-उड़दा चाकू आया,
माई दे घर डाकू आया।


What is the significance of Lohri festival : लड़कियां जब घर-घर जाकर लोहड़ी मांगती हैं और उन्हें लोहड़ी मिलने का इंतजार करते हुए कुछ समय बीत जाता है तो वे गीत गाते हुए कहती हैं :
साडे पैरां हेठ सलाइयां,
असी केहड़े वेले दीयां आइयां।
साडे पैरां हेठ रोड, माई सानूं छेती-छेती तोर।


Significance of Lohri: इन गीतों के बाद भी जब उन्हें लगता है कि उस घर से उन्हें कोई जवाब नहीं मिल रहा तो वे पुन: गीत गाते हुए कहती हैं :
साडे पैरा हेठ दहीं, असी इथों हिलणा वी नहीं।

समय के बदलाव के साथ हालांकि घर-घर से लकड़ियां व उपले मांग कर लाने की परम्परा समाप्त होती जा रही है लेकिन लोहड़ी के दिन सुबह से ही रात के उत्सव की तैयारियां शुरू हो जाती हैं और रात के समय लोग अपने-अपने घरों के बाहर अलाव जलाकर उसकी परिक्रमा करते हुए उसमें तिल, गुड़, रेवड़ी, चिड़वा इत्यादि डालते हैं और माथा टेकते हैं।

उसके बाद अलाव के चारों ओर बैठ कर आग सेंकते हैं। तब शुरू होता है गिद्दे और भंगड़े का मनोहारी कार्यक्रम, जो देर रात तक चलता है।

लोहड़ी के दिन लकड़ियों व उपलों का जो अलाव जलाया जाता है उसकी राख अगले दिन मोहल्ले के सभी लोग सूर्योदय से पूर्व ही अपने-अपने घर ले जाते हैं क्योंकि इस राख को ईश्वर का उपहार माना जाता है।

Mythological Story of Lohri: लोहड़ी का संबंध सुंदरी नामक एक कन्या तथा दुल्ला भट्टी नामक एक डाकू से जोड़ा जाता है। इस संबंध में प्रचलित ऐतिहासिक कथा के अनुसार गंजीबार क्षेत्र में एक ब्राह्मण रहता था जिसकी सुंदरी नामक एक कन्या थी जो अपने नाम की भांति बहुत सुंदर थी। वह इतनी रूपवान थी कि उसके रूप, यौवन व सौंदर्य की चर्चा गली-गली में होने लगी थी। धीरे-धीरे उसकी सुंदरता के चर्चे उड़ते-उड़ते गंजीबार के राजा तक पहुंचे। राजा उसकी सुंदरता का बखान सुनकर सुंदरी पर मोहित हो गया और उसने सुंदरी को अपने हरम की शोभा बनाने का निश्चय किया।

गंजीबार के राजा ने सुंदरी के पिता को संदेश भेजा कि वह अपनी बेटी को उसके हरम में भेज दे, इसके बदले में उसे धन-दौलत से लाद दिया जाएगा। उसने उस ब्राह्मण को अपनी बेटी को उसके हरम में भेजने के लिए अनेक तरह के प्रलोभन दिए। राजा का संदेश मिलने पर बेचारा ब्राह्मण घबरा गया। वह अपनी लाडली बेटी को उसके हरम में नहीं भेजना चाहता था।

जब उसे कुछ नहीं सूझा तो उसे जंगल में रहने वाले राजपूत योद्धा दुल्ला-भट्टी का ख्याल आया जो एक कुख्यात डाकू बन चुका था लेकिन गरीबों व शोषितों की मदद करने के कारण लोगों के दिलों में उसके प्रति अपार श्रद्धा थी।

ब्राह्मण उसी रात दुल्ला भट्टी के पास पहुंचा और उसे विस्तार से सारी बात बताई। दुल्ला भट्टी ने ब्राह्मण की व्यथा सुन उसे सांत्वना दी और रात को खुद एक सुयोग्य ब्राह्मण लड़के की खोज में निकल पड़ा। दुल्ला भट्टी ने उसी रात एक योग्य ब्राह्मण लड़के को तलाश कर सुंदरी को अपनी ही बेटी मानकर अग्रि को साक्षी मानते हुए उसका कन्यादान अपने हाथों से किया और ब्राह्मण युवक के साथ सुंदरी का रात को ही विवाह कर दिया। उस समय दुल्ला के पास बेटी सुंदरी को देने के लिए कुछ भी न था। अत: उसने तिल व शक्कर देकर ही ब्राह्मण युवक के हाथ में सुंदरी का हाथ थमाकर सुंदरी को उसकी ससुराल विदा किया।



गंजीबार के राजा को इस बात की सूचना मिली तो वह आग बबूला हो उठा। उसने उसी समय अपनी सेना को गंजीबार इलाके पर हमला करने तथा दुल्ला भट्टी का खात्मा करने का आदेश दिया। राजा का आदेश मिलते ही सेना दुल्ला भट्टी के ठिकाने की ओर बढ़ी लेकिन दुल्ला भट्टी और उसके साथियों ने अपनी पूरी ताकत लगा कर राजा की सेना को बुरी तरह धूल चटा दी। दुल्ला भट्टी के हाथों शाही सेना की करारी शिकस्त होने की खुशी में गंजीबार में लोगों ने अलाव जलाए और दुल्ला भट्टी की प्रशंसा में गीत गाकर भंगड़ा डाला। कहा जाता है कि तभी से लोहड़ी के अवसर पर गाए जाने वाले गीतों में सुंदरी और दुल्ला भट्टी को विशेष तौर पर याद किया जाने लगा।

Dulla Bhatti song
सुंदर मुंदरिए हो, तेरा कौण विचारा हो
दुल्ला भट्टी वाला हो, दुल्ले धी ब्याही हो
सेर शक्कर पाई हो, कुड़ी दे मामे आए हो
मामे चूरी कुट्टी हो, जमींदारा लुट्टी हो
कुड़ी दा लाल दुपट्टा हो, दुल्ले धी ब्याही हो
दुल्ला भट्टी वाला हो, दुल्ला भट्टी वाला हो


लोहड़ी के मौके पर यह गीत आज भी जब वातावरण में गूंजता है तो दुल्ला भट्टी के प्रति लोगों की अपार श्रद्धा का आभास स्वत: ही हो जाता है।

 

 

 

Niyati Bhandari

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