स्वामी विवेकानंद की ये सीख, कमजोर विद्यार्थी को भी बना देगी Intelligent

Monday, Jan 08, 2018 - 02:37 PM (IST)

एक ग्रंथपाल (लाइब्रेरियन) ने हंसी करते हुए कहा कि स्वामी विवेकानंद जी पुस्तकों को पढ़ते हैं या यूं ही देख कर वापस कर देते हैं। स्वामी अखंडानंद जी ने ग्रंथपाल की बात स्वामी जी से कह सुनाई। तब एक दिन स्वामी जी स्वयं ही उस ग्रंथपाल से मिलने गए और उनसे कहा, ‘‘मैंने पुस्तकों को अच्छी तरह से पढ़ लिया है, आपको यदि संदेह है तो आप किसी भी पुस्तक से प्रश्र पूछ सकते हैं।’’ 


ग्रंथपाल ने ऐसा ही किया। स्वामी जी ने सब प्रश्रों का उपयुक्त उत्तर दिया। यह देखकर उनके विस्मय की सीमा ही न रही। वह सोचने लगे कि क्या ऐसा संभव हो सकता है? हेतणी के राजा के साथ परिचय होने के बाद स्वामी जी जब उनके अतिथि बने तब राजा ने देखा कि पढऩे के समय स्वामी जी पुस्तकों की ओर देखकर बहुत जल्दी-जल्दी पृष्ठों को उलटते रहे और इसी प्रकार पूरी पुस्तक पढ़ डाली।


उन्होंने स्वामी जी से पूछा कि ऐसा कैसे संभव है? स्वामी जी ने समझाकर कहा कि एक छोटा लड़का जब पढऩा सीखता है तब वह एक अक्षर का दो-तीन बार उच्चारण कर शब्द को पढ़ सकता है तब उसकी दृष्टि एक-एक अक्षर के ऊपर रहती है। निरंतर अभ्यास के बाद वह एक दृष्टि में एक वाक्य पढ़ सकता है। इसी प्रकार क्रमश: भाव को ग्रहण करने की क्षमता को बढ़ाने से एक दृष्टि में एक पृष्ठ पढ़ा जा सकता है और वह इसी तरह पढ़ते हैं।


स्वामी जी ने और कहा कि यह केवल अभ्यास, ब्रह्मचर्य और एकाग्रता का परिणाम है। एक दिन उन्होंने वेलगांव वासी हरिपद मित्र के समक्ष चार्ल्स डिकेन्स के ‘पिकनिक पेपर्स’ को शब्दश: बोलकर आश्चर्य चकित कर दिया था। 


जब हरिपद मित्र ने यह सुना कि स्वामी जी ने इस पुस्तक को मात्र दो बार पढ़ कर ही याद कर लिया है तो वह और भी आश्चर्य में पड़ गए। स्वामी जे ने हरिपद मित्र से कहा कि एकाग्रता और ब्रह्मचर्य द्वारा ही इस प्रकार की स्मरण शक्ति प्राप्त करना संभव है। विदेश से वापस आने के बाद स्वामी जी की एक रोचक घटना है। बेलूर मठ में एन्साइक्लोपीडिया की भाषा तक को स्वामी जी ने हू-ब-हू दोहरा कर दिखा दिया। स्वामी जी ने शिष्य से कहा, देखो एकमात्र ब्रह्मचर्य का ठीक-ठाक पालन करने से सम्पूर्ण ज्ञान एक मुहूर्त में प्राप्त हो जाता है। सुनने मात्र से ही स्मरण हो जाता है। इस तरह हम देखते हैं कि स्वामी जी ने इन तीन चीजों पर अपना पूर्ण प्रभुत्व स्थापित कर असाधारण कार्य किया। आज हमारे विद्यार्थी यदि इन आदर्शों पर नहीं चलेंगे तो उसका परिणाम दुखदायी ही होगा।


स्वामी विवेकानंद जी कहा करते थे, वह शिक्षा ही व्यर्थ है जो मनुष्य निर्माण और चरित्र निर्माण न कर सके। वह कहते थे कि सैंकड़ों वर्षों की पराधीनता के कारण भारत देश अपनी अस्मिता और आत्मसम्मान को खो बैठा है। उनका मानना था कि पूरे देश को ही शिक्षित किया जाए अन्यथा परतंत्रता की बेड़ियां कभी न कटेंगी।

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