Kundli Tv- जानें, कैसे और कब शुरु हुई कांवड़ यात्रा
Monday, Aug 06, 2018 - 12:18 PM (IST)
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2018 सावन का महीना चल रहा है और कांवड़ यात्रा के लिए श्रद्धालु घर से निकल पड़े हैं। आज सावन का दूसरा सोमवार है। इस सोमवार से कांवड़ यात्रियों की संख्या बढ़ेगी और शिव के जयकारों से गली-मोहल्ले गूंजने लगेंगे। ऐसे में अगर आप भी कांवड़ यात्रा की योजना बना रहे हैं या भविष्य में भोले को कांवड़ चढ़ाने पर विचार कर रहे हैं तो कांवड़ यात्रा के बारे में ये बातें आपको जरूर जाननी चाहिए।
बताया जाता है कि पहला कांवडिय़ा रावण था। भगवान राम ने भी भगवान शिव को कांवड़ चढ़ाई थी। आनंद रामायण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि भगवान राम ने कांवडिय़ा बनकर सुल्तानगंज से जल लिया और देवघर स्थित बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया था।
कंधे पर गंगाजल लेकर भगवान शिव के ज्योतिर्लिगों पर चढ़ाने की परम्परा कांवड़ यात्रा कहलाती है। सावन में भगवान महादेव और भक्तों के बीच की दूरी कम हो जाती है इसलिए भगवान को प्रसन्न पर मनोवांछित फल पाने के लिए कई उपायों में एक उपाय कांवड़ यात्रा भी है जिसे शिव को प्रसन्न करने का सहज मार्ग माना गया है।
सावन में कांवड़ यात्रा शुरू करने से पहले कई नियम भी हैं, जिन्हें पूरा करने का हर कांवडिय़ा संकल्प करता है। यात्रा में नशा, मांस, मदिरा और तामसिक भोजन वर्जित है। बिना स्नान किए कांवड़ को हाथ नहीं लगा सकते, चमड़े की वस्तु का स्पर्श, वाहन का प्रयोग, चारपाई का उपयोग, वृक्ष या पौधे के नीचे भी कांवड़ रखना, कांवड़ को अपने सिर के ऊपर से लेकर जाना भी वर्जित माना गया है।
कहा जाता है कि शिवभक्त का सच्चे मन से सावन में कंधे पर कांवड़ रखकर बोल बम का नारा लगाते हुए चलना भी काफी पुण्यदायक होता है। इसके हर कदम के साथ एक अश्वमेघ यज्ञ करने जितना फल प्राप्त होता है। उसके सभी पापों का अंत हो जाता है, उसको जीवन में कभी किसी चीज की कमी नहीं रहती है। मृत्यु के बाद उसको सीधे शिवलोक की प्राप्ति होती है।
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