चांद ही ले डूबा चंद्रयान-2 को !

Saturday, Sep 07, 2019 - 06:30 PM (IST)

चंद्रयान द्वारा लेंडर विक्रम को चाँद की सतह पर उतारने में मिली विफलता के बाद एक तरफ  जहाँ देश मायूस है वहीँ इस बात की भी चर्चा शुरू हो गयी है कि आखिर इसरो की तमाम तैयारी और इतने वर्षों की मेहनत के बावजूद नतीजा मायूस करने वाला क्यों रहा।  ज्योतिष के लिहाज से भी इसका आकलन किया जा रहा है।  इसरो ने लेंडर विक्रम को चाँद की सतह पर उतारने के लिए शुक्रवार  मध्य रात्रि का समय निर्धारित किया था और रात के करीब 1 बज कर 52 मिनट पर विक्रम लेंडर को चाँद की सतह पर उतारने का समय निर्धारित किया था लेकिन ज्योतिष के लिहाज से यह समय शुभ नहीं माना जा रहा।  

आइए बताते हैं कि जिस समय लेंडर विक्रम को चाँद की सतह पर उतारने की तैयारी हो रही थी उस समय चन्द्रमा बुध के ज्येष्ठा नक्षत्र में था ,ज्येष्ठा नक्षत्र बुध का  नक्षत्र है और ज्योतिष की भाषा में इसे गंड मूल का नक्षत्र माना जाता है और इस नक्षत्र में सामान्य तौर पर शुभ कार्य नहीं होते , इसके अलावा शुक्रवार मध्य रात्रि को चन्द्रमा अपनी नीच राशि वृश्चिक से गोचर कर रहा था।  ज्येष्ठा नक्षत्र बुध का नक्षत्र है और चनाद और बुध आपस में शत्रु भाव रखते हैं।  चाँद की सतह पर लेंडिंग के समय दिल्ली के समय के हिसाब से बुध का ही मिथुन लग्न उदय हो रहा था और लग्न में राहु होने और लग्न पर दो पाप ग्रहों केतु और शनि की दृष्टि ने भी चंद्रयान के अंतिम परिणाम को काफी हद तक प्रभावित किया है।  

यदि इस पूरे प्रकरण का भारत की कुंडली के लिहाज से विश्लेषण किया जाए तो भी इसकी विफलता के कारण समझ आते हैं।  भारत की कुंडली वृष लग्न की है और लेंडिंग के समस्य भारत की कुंडली में लग्न का मालिक शुक्र अस्त स्थिति में चल रहा था और नीच का चन्द्रमा सातवें भाव से लग्न को देख रहा था। इस बीच लग्न से अष्टम भाव में चल रहे शनि के चलते भी भारत के हाथ निराशा लगी है। 

हालाँकि इस पूरे पोरजेक्ट के दौरान इसरो के वैज्ञानिकों ने जी तोड़ मेहनत की और भारत को चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लेंडर को उतारने वाला पहला देश बनाने का पूरा प्रयास किया लेकिन जो चीज इंसान के हाथ में नहीं होती उसे ही भाग्य माना जाता है और भाग्य और सितारे शुक्रवार रात को भारत और इसरो के पक्ष में नहीं थे 


 

Deeksha Gupta

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