Lal Bahadur Shastri Jayanti: लाल बहादुर शास्त्री जिन्हें खुद कष्ट उठाकर दूसरों को सुख देने में मिलता था आनंद
punjabkesari.in Monday, Oct 02, 2023 - 09:31 AM (IST)
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Lal Bahadur Shastri Jayanti: एक सामान्य से परिवार में जन्म लेकर देश के प्रधानमंत्री जैसे बड़े पद तक पहुंच कर इस पद की गरिमा को चार चांद लगाने वाले, दुग्ध और हरित क्रांति के जनक लाल बहादुर शास्त्री देश के उन नेताओं में से एक रहे। जिन्होंने अपने हर कृत्य से सभी को प्रेरित किया और कठिनाई में भी कर्तव्य पालन का सबक दिया।
2 सितम्बर, 1956 की रेल दुर्घटना का स्वयं को जिम्मेदार मानते हुए इन्होंने रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। साफ-सुथरी छवि और योग्यता के कारण देश के दूसरे प्रधानमंत्री बनने वाले शास्त्री जी का प्रधानमंत्री काल बेहद चुनौतीपूर्ण रहा। पाकिस्तान ने 1965 में अचानक सायं 7.30 बजे देश पर हवाई हमला कर दिया। परम्परानुसार राष्ट्रपति ने आपात बैठक बुला ली जिसमें तीनों रक्षा अंगों के प्रमुख व मंत्रिमंडल के सदस्य शामिल थे।
विचार-विमर्श और तीनों सेना प्रमुखों ने सारी वस्तुस्थिति समझाते हुए पूछा, ‘‘सर! क्या हुक्म है?
शास्त्री जी ने एक वाक्य में तत्काल उत्तर दिया, ‘‘आप देश की रक्षा कीजिए और मुझे बताइए कि हमें क्या करना है?’’
युद्ध में शास्त्री जी ने सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए सीधी बात की, जिसके परिणाम स्वरूप युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को बुरी तरह से रौंद डाला।
‘जय जवान, जय किसान’ के उद्घोष के साथ उन्होंने देश को आगे बढ़ाया।
शास्त्री जी को खुद कष्ट उठाकर दूसरों को सुखी देखने में आनंद मिलता था। एक बार की घटना है, जब शास्त्रीजी रेल मंत्री थे और वह मुंबई जा रहे थे। उनके लिए प्रथम श्रेणी का डिब्बा लगा था। गाड़ी चलने पर शास्त्रीजी बोले, ‘‘डिब्बे में काफी ठंडक है, वैसे बाहर गर्मी है।’’
उनके पी.ए. कैलाश बाबू ने कहा, ‘‘जी, इसमें कूलर लगा दिया गया है।’’
शास्त्रीजी ने पैनी निगाह से उन्हें देखा और आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा, ‘‘कूलर लग गया?... बिना मुझे बताए ? आप लोग कोई काम करने से पहले मुझसे पूछते क्यों नहीं ? क्या बाकी सभी लोग जो गाड़ी में चल रहे हैं, उन्हें गर्मी नहीं लगती होगी ?’’
शास्त्री जी ने आगे कहा, ‘‘कायदा तो यह है कि मुझे भी थर्ड क्लास में चलना चाहिए लेकिन उतना तो नहीं हो सकता पर जितना हो सकता है उतना तो करना चाहिए। बड़ा गलत काम हुआ है। आगे गाड़ी जहां भी रुके, पहले कूलर निकलवाइए।’’
मथुरा स्टेशन पर गाड़ी रुकी और कूलर निकलवाने के बाद ही गाड़ी आगे बढ़ी।
जब देश में अनाज की कमी हो गई थी और विदेशों से अन्न मंगवाना पड़ता था तो उसका हल निकालने के लिए उन्होंने सप्ताह में एक दिन उपवास करने की अपील की तो पूरे देश में इसका असर हुआ और देशवासियों ने ढाबे तक बंद रख कर सहयोग दिया। स्वयं शास्त्री जी ने भी उपवास किया था।