त्रेतायुग का लक्ष्मणपुर है आज का लखनऊ, जानें प्राचीन इतिहास

punjabkesari.in Monday, Dec 18, 2017 - 02:53 PM (IST)

स्थानीय जनश्रुति के अनुसार इस नगर का प्राचीन नाम ‘लक्ष्मणपुर’ या ‘लक्ष्मणवती’ था और इसकी स्थापना श्री रामचंद्र जी के अनुज लक्ष्मण ने की थी। जो बदलकर कालांतर में लखनऊ के नाम से जाना जाने लगा। श्री राम की राजधानी अयोध्या भी यहां से मात्र 80 मील दूरी पर स्थित है। नगर के पुराने भाग में एक ऊंचा ढूह है, जिसे आज भी ‘लक्ष्मण टीला’ कहा जाता है। यह प्राचीन कोसल राज्य का हिस्सा था। यह भगवान राम की विरासत थी, जिसे उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण को समर्पित कर दिया था।


एक अन्य कथा के अनुसार इस शहर का नाम ‘लखन अहीर’ जोकि ‘लखन किले’ के मुख्य कलाकार थे, के नाम पर रखा गया था। शहर से 10 किलोमीटर की दूरी पर ही नैमिषारण्य तीर्थ है। इसका पुराणों में बहुत ऊंचा स्थान बताया गया है। यहीं पर ऋषि सूतजी ने शौनकादि ऋषियों को पुराणों का आख्यान दिया था।

 
वर्तमान का लखनऊ : लखनऊ के वर्तमान स्वरूप की स्थापना नवाब आसफउद्दौला ने 1775 ई. में की थी। विशाल गंगा के मैदान के हृदय क्षेत्र में स्थित लखनऊ शहर बहुत से ग्रामीण कस्बों एवं गांवों से घिरा हुआ है, जैसे अमराइयों का शहर मलिहाबाद, ऐतिहासिक काकोरी, मोहन लाल गंज, गोसाईंगंज, चिन्हट और इटौजा। इस शहर के पूर्व की ओर बाराबंकी जिला है तो पश्चिम में उन्नाव जिला एवं दक्षिण में रायबरेली जिला है। इसके उत्तरी ओर सीतापुर एवं हरदोई जिले हैं। गोमती नदी शहर के बीचोंबीच से निकलती है और लखनऊ को ट्रास गोमती एवं सिस गोमती क्षेत्रों में विभाजित करती है। 


सन् 1902 में नार्थ वैस्ट प्रोविन्स का नाम बदल कर यूनाइटिड प्रोविन्स आफ आगरा एंड अवध कर दिया गया। साधारण बोलचाल की भाषा में इसे यूनाइटिड प्रोविन्स या यू.पी. कहा गया। स्वतंत्रता के बाद 12 जनवरी सन 1950 को इस क्षेत्र का नाम बदलकर उत्तर प्रदेश रख दिया गया और लखनऊ इसकी राजधानी बना। इस तरह यह अपने पूर्व लघु नाम यू.पी. से जुड़ा रहा।


आसफउद्दौला का योगदान : शहर और आसपास कई दर्शनीय स्थल हैं। इनमें ऐतिहासिक स्थल, उद्यान, मनोरंजन स्थल एवं शापिंग माल आदि हैं। यहां कई इमाम बाड़े हैं। इनमें बड़ा एवं छोटा प्रमुख है। प्रसिद्ध बड़े इमामबाड़े का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है, यह विशाल गुंबदनुमा हाल 50 मीटर लम्बा और 15 मीटर ऊंचा है। यहां एक अनोखी भूल-भुलैयां है। इनमें से अधिकांश इमारतें अकाल पीड़ितों को मजदूरी देने के लिए बनवाई गई थीं। आसफ उद्दौला को लखनऊ निवासी ‘जिसे न दे मौला, उसे दे आसफउद्दौला’ कह कर याद करते हैं।


कुकरैल फॉरेस्ट या बनारसी बाग : यह एक पिकनिक स्थल है। यहां घडिय़ालों और कछुओं का एक अभ्यारण्य है। यह लखनऊ के इंदिरा नगर के निकट, रिंग मार्ग पर स्थित है। बनारसी बाग वास्तव में एक चिडिय़ाघर है, जिसका मूल नाम प्रिंस आफ वेल्स वन्य प्राणी उद्यान हैं। लखनऊ-हरदोई राजमार्ग पर ही मलिहाबाद गांव है, जहां के दशहरी आम विश्व प्रसिद्ध हैं। 


धार्मिक सौहार्द : यहां हिन्दू त्यौहारों में होली, दीपावली, दुर्गा पूजा एवं दशहरा और ढेरों अन्य त्यौहार जहां हर्षोल्लास से मनाए जाते हैं, वहीं ईद और बारावफात तथा मुहर्रम के ताजिए भी फीके नहीं होते। साम्प्रदायिक सौहार्द यहां की विशेषता है। यहां दशहरे पर रावण के पुतले बनाने वाले अनेकों मुस्लिम एवं ताजिए बनाने वाले अनेक हिन्दू कारीगर हैं। यहां पर मुस्लिमों से संबंधित अनेक स्थान हैं जैसे कि छोटा तथा बड़ा इमामबाड़ा व अन्य कई सुंदर मस्जिदें हैं।


भारत का सबसे ऊंचा घंटाघर: लखनऊ रैजीडैंसी के अवशेष ब्रिटिश शासन की स्पष्ट तस्वीर दिखाते हैं। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय यह रैजीडैंसी ईस्ट इंडिया कम्पनी के एजैंट का भवन था। यह ऐतिहासिक इमारत हजरतगंज क्षेत्र में राज्यपाल निवास के निकट है। लखनऊ का घंटाघर भारत का सबसे ऊंचा घंटाघर है।


लखनऊ के अन्य आकर्षण स्थलों में मोती महल भी शामिल है। इसके अलावा लखनऊ रेलवे स्टेशन का वास्तुशिल्प भी देखते ही बनता है।    
 


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