हकीकत या फसाना: देवलोक में भी होता है कुंभ

Wednesday, Feb 13, 2019 - 11:35 AM (IST)

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हमारे धर्मशास्त्रों के मतानुसार कुंभ 12 कल्पित हैं जिनमें से 4 भारतवर्ष में प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन एवं त्र्यंबकेश्वर (नासिक) में होते हैं तथा शेष 8 को देवलोक में माना जाता है। भारत के चारों स्थानों पर बृहस्पति के विभिन्न राशियों में संक्रमण और उसमें उपस्थिति की स्थिति अधिक महत्वपूर्ण है, जैसे प्रयाग में बृहस्पति का वृषस्थ और सूर्य का मकरस्थ होना कुंभ पर्व का योग लाता है, तो उज्जैन में बृहस्पति का सिंहस्थ एवं चंद्र-सूर्य का मेषस्थ होना कुंभ पर्व का सुयोग बनाता है।  हरिद्वार में कुंभ राशि के बृहस्पति में जब मेष का सूर्य आता है, तो कुंभ योग बनता है।

त्र्यंत्र्यंबकेश्वर (नासिक) में बृहस्पति तो सिंहस्थ ही रहते हैं, पर सूर्य और चंद्रमा भी सिंहस्थ हो जाते हैं। यही कारण है कि उज्जैन और त्र्यंबकेश्वर (नासिक) के कुंभ पर्वों को ‘कुंभ’ न कह कर ‘सिंहस्थ’ नाम से अधिक माना जाता है। इस दृष्टि से देखें तो सूर्य और चंद्र के साथ बृहस्पति को ही सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। बृहस्पति का विभिन्न राशियों में संक्रमण का काल मांगलिक माना गया है और बृहस्पति की यही मांगलिकता (कल्याणकारिता) ही कुंभ पर्वों का विशेष कारण है।

बृहस्पति तो कुंभ वृषभ और सिंह राशियों के अलावा भी अन्य राशियों में भी संक्रमित और उपस्थित होते हैं और हर राशि में करीब-करीब 12 वर्ष बाद ही आते हैं। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि वे इन चारों स्थानों के अतिरिक्त और कौन से अन्य स्थान हैं, जहां बृहस्पति के अन्य राशियों में स्थिर होने पर मंगल पर्व (कुंभ पर्व) का सुयोग होता है।

होते हैं कुल 12 कुंभ
यह आज के वैज्ञानिक युग में एक महान खोज का विषय है क्योंकि कुंभ पर्व या सिंहस्थ के लिए बृहस्पति का योग ही महत्वपूर्ण माना जाता है और बृहस्पति तो कुंभ, मेष, वृषभ और सिंह राशियों के अतिरिक्त अन्य शेष राशियों में भी संक्रमित और उपस्थित होते हैं और करीब-करीब हर राशि में लगभग 12 वर्ष बाद ही आते हैं।

कुंभ के बारे में कितना जानते हैं आप !

Niyati Bhandari

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