कृष्णावतार

Sunday, Dec 11, 2016 - 12:41 PM (IST)

उस पुरुष ने आगे कहा, ‘‘ऋषियों-मुनियों पर मेरे अत्याचारों के कारण ही उनके श्राप ने मुझे राज्यलक्ष्मी से वंचित करके स्वर्ग में रहने के अधिकार से वंचित कर दिया और मुनि अगस्त्य का अपमान करने पर उन्होंने मुझे अजगर बन कर पृथ्वी पर रहने का श्राप दे दिया। जब मैंने पृथ्वी पर गिरते-गिरते उनसे क्षमा मांगी तो उन्होंने कहा कि धर्मराज युधिष्ठिर ही तुम्हें इससे मुक्त करेंगे जो इतने धर्मपरायण होंगे कि अपने जानलेवा शत्रुओं पर भी उनके मन में कभी दुर्भावना उत्पन्न नहीं होगी और वह केवल धर्म के लिए ही अपना समस्त जीवन अर्पित कर देंगे।’’ 

    
उस पुरुष की बात सुनकर धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा, ‘‘महर्षि अगस्त्य सचमुच बड़े दयालु हैं। उन्होंने आपका अपराध क्षमा करके आप पर कृपा तो की ही, इसके साथ ही साथ मुझ पर भी बड़ा अनुग्रह किया। एक तो उनके कारण अपने महाप्रतापी पूर्वज के दर्शन मुझे प्राप्त हो गए और दूसरा आपसे सदुपदेश भी मिल गया। वैसे तो महर्षि अगस्त्य स्वयं त्रिकालद्रष्टा हैं, फिर भी जब आपसे उनकी भेंट हो तो कृपा करके मेरी ओर से चरणवंदना निवेदन कर दीजिएगा।’’ 


‘‘अच्छा अब मैं अपने धाम को चलता हूं। तुम भी अपने भाई को लेकर अपने निवास स्थान को चले जाओ और मेरा भी एक वरदान लेते जाओ। आगामी संग्राम में संकट के समय जब भी तुम मुझे स्मरण करोगे मैं अदृश्य रूप से तुम्हारी पूर्ण सहायता करूंगा और तुम्हारे सब पूर्वजों से तुम्हें आशीर्वाद देने को कहूंगा।’’


इतना कहने के बाद उस आत्मा ने अपने धाम को प्रस्थान किया। 

    (क्रमश:)

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