देवालयों और मैथुन युग्म मूर्तियों का आकर्षण कर देगा आपको मोहित

Saturday, Jan 16, 2021 - 07:34 AM (IST)

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What is the history of Khajuraho temples: 9वीं से 12वीं शताब्दी के मध्य बने विश्व प्रसिद्ध खजुराहो मंदिर की शृंखला का शिल्प सौंदर्य अनुपम और अतुलनीय है। खजुराहो भारतीय प्रस्तर कला का अनूठा केंद्र तथा चंदेल राजाओं की कलाप्रियता का उत्कृष्ट उदाहरण है। खजुराहो मध्यप्रदेश में छतरपुर जिले के अंतर्गत आता है। जहां वर्ष भर पर्यटकों का इस आकर्षक स्थल को देखने के लिए तांता लगा रहता है।
History of Khajuraho: माना जाता है कि प्रारंभ में यहां पचासी मंदिरों की एक बहुत भव्य कलात्मक शृंखला थी जो आज घटकर मात्र 25 तक सीमित रह गई है। यहां बने ब्रह्मा मंदिर, लालगुवा महादेव मंदिर लाल पत्थर से बने हैं तो शेष मंदिरों के निर्माण में ग्रेनाइट पत्थर को काम में लिया गया है।

What are the themes of the Khajuraho monuments: यहां के देवालयों में वास्तु विषयक अंगों को उभारा गया है तो प्रतिभाओं में प्रचुरता से अलंकरणों का प्रयोग भी जीवंतता से किया गया है। हालांकि पूर्ववर्ती मंदिरों के शिल्प में वास्तु शिल्प और मूर्ति शिल्प दोनों नहीं मिलते परन्तु बाद में बने मंदिरों में ये दोनों शिल्प सघनता से पूरे सौष्ठव के साथ उकेरे गए हैं।

Khajuraho Ka Mandir: यहां नगर या शिखर शैली के बनाए गए मंदिरों में शैव मत देवालय अधिक हैं परन्तु जैन शैली तथा वैष्णव परम्परा के मंदिर भी देखे जा सकते हैं। मंदिर की मूल शिल्प कला में इतनी समानता है कि उन्हें सम्प्रदाय विशेष के आधार पर ऊपरी तौर पर नहीं जाना जा सकता। यह बात मंदिरों को देखने के बाद तथा वहां प्रतिष्ठित मूर्ति देखकर ही जाना जा सकता है।

What is Khajuraho famous for: मंदिर की इस शैली से साम्प्रदायिक सद्भाव का आदि स्वरूप अपने आप उजागर होता है तथा लगता है कि चंदेलवंशी राजाओं के अंतर में सभी धर्मों के प्रति प्रगाढ़ आस्था रही थी। मंदिरों के भीतरी गर्भगृहों में आकार की दृष्टि से विविधता है तथा वे मंडप-महामंडप एवं अर्धमंडप के नामों से जाने गए हैं। मंदिरों का निर्माण ऊंचे चबूतरों पर मंच बनाकर किया गया है। इन चौकियों पर जो अंग निर्मित हुए हैं वे ‘अधिष्ठान’ एवं ‘जंघा’ नामों से विश्लेषित हैं।

What is the significance of the Khajuraho Group of monuments: मंदिरों के ठीक ऊपर शिखर का विधान तथा छतों को पर्वत शिखरों की शैली में बनाया गया है। स्वच्छ वायु तथा रोशनी के आगमन के लिए जालियां बनाई गई हैं तथा उनके नीचे कलात्मक प्रतिमाओं का अंकन बहुत ही सघन रूप से हुआ है।

What to see in Khajuraho: भारतीय शिल्पकला में मंदिर निर्माण में वास्तुकला की ही प्रधानता रही है तथा सभी विहारों एवं स्तूपों में इसी पक्ष पर बल दिया जाता रहा है। मूर्तिकला को इन देवालयों पर अंकित करने की परम्परा नहीं रही है परन्तु खजुराहो की उत्कृष्ट पाषाण कला में मूर्तिकला एवं वास्तुकला का इतना भव्य संयोजन किया गया है कि देखने वाले की आंखें खुली रह जाती हैं। मुंह बोलते इन प्रस्तर शिल्पों में जीवन की बहुरंगी विविधता मानव मन की थकान को एक पल में उतार डालती है। शुंग, मौर्य, कुषाण तथा सातवाहनों के शासनकाल में भवनों की सुंदरता तथा उनके बड़े आकार पर ध्यान केन्द्रित रहा, जबकि गुप्त काल के मंदिर जितने छोटे होते थे, उतने सादे भी।

What are the sacred temples of Khajuraho: खजुराहो के मंदिरों में उपलब्ध मूर्तियां मंदिर के मुख्य गर्भगह में सीधी खड़ी हुई लघु एवं विशाल दोनों रूपों में उपलब्ध हैं। इन मूर्तियों को पूर्णता दी गई है तथा वे दीवार आदि के सहारे नहीं छांटी गई हैं। दीवारों पर बनी मूर्तियां कुछ भिन्न हैं। वे पाश्र्व देव की श्रेणी में मानी गई है। इनमें दिकपालों तथा गणों की बहुलता है जबकि मंदिरों में प्रतिष्ठित प्रतिमाएं अर्चना के लिए बनाई गई हैं।

Khajuraho Tourism: भारतीय जन-जीवन एवं सामाजिक व्यवस्था को भली-भांति समझने के लिए एक खास प्रकार का मूर्तिकला पारिवारिक समूह के अंतर्गत हुआ है। भारतीय पारम्परिक परिवेश को छूती प्रणय व सौंदर्य शिल्प के मूर्तियों की यहां प्रचुरता है। जबकि अप्सरा स्वरूप प्रतिमाएं भी बहुलता से अंकित हैं।

Khajuraho india: इनमें नायिकाएं विविध रूपों में अंकित हैं। बालों को पोंछती, बच्चों को स्नेहिलता से दुलारती तथा कहीं-कहीं पशु-पक्षियों से खेलती नायिकाएं व अप्सराएं अपनी मोहक चित्र शैली में मूर्तिकला का जीवंत तथा मनोहरी रूप सामने धरती हैं। शेर व व्याध के अंकन में भी सघनता से काम हुआ है। इनमें शेरों के सिर पर सींग दिखाया गया है। वैसे हाथी, घोड़ा व अन्य पशु-पक्षियों के चित्रांकन को भी शिल्पियों ने अपनी रुचि से दर्शाया है।

Khajuraho sculptures: खजुराहो में देवालयों की शालीनता है तो मैथुन युग्म मूर्तियों की अशालीन परम्परा भी देखी जा सकती है। यह शिल्प भारतीय कला की अमूल्य निधि तो है ही, अपितु इसकी टक्कर का ऐतिहासिक स्थल इतने भव्य स्वरूप के साथ मिल पाना कठिन है। इन शिल्पों को विश्व कलाकोष की निधि मानना भी अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं है। आज भी खजुराहो का शिल्प विधान हजारों-लाखों सैलानियों का आकर्षण स्थल है तथा अभी और कई हजार वर्षों तक इससे मानव जगत का मोहभंग नहीं होगा।

 

 

Niyati Bhandari

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