मन को ईश्वर की ओर मोड़ने से पहले ध्यान रखें यह बात

Sunday, Sep 10, 2017 - 02:35 PM (IST)

जन्म-जन्मांतर से हमारे मन पर संस्कारों की परत जमती रहती है। उससे बेखबर हम जीवन के क्रियाकलापों में उलझे रहते हैं। अचानक कहीं से उड़ता हुआ कोई बीज आकर गिरता है और ज्ञान का अंकुर फूट पड़ता है। तुलसीदास को पत्नी रत्नावली की फटकार ने ही चिंगारी दिखाई।


सूरदास माधव से उबार लेने की चिरौरी करते। एक दिन आचार्य वल्लभ ने उन्हें आत्म भत्सर्ना से लीला के उत्सव की ओर मोड़ दिया। उन्होंने पूछा, ‘‘शूर होकर घिघियाते क्यों हो?’’ 

 

बस फिर सूरदास के सामने कृष्ण लीला की सुंदर से सुंदर झाकियां खुलने लगीं। पंजाब के महान सूफी संत थे बुल्ले शाह। उनके पिता मस्जिद में मौलवी थे। सैयद वंश के होने के कारण उनका संबंध हजरत मुहम्मद से था। अरबी, फारसी के विद्वान थे। शास्त्र अध्ययन तो गहन था परंतु परमात्मा के दर्शन का मार्ग नहीं मिल रहा था। इसी खोज में वे सूफी फकीर हजरत इनायत शाह कादरी तक पहुंच गए। वह पहुंचे तो इनायत शाह प्याज के पौधे लगाने में मग्न थे, उन्हें आहट सुनाई नहीं पड़ी। बुल्ले शाह उन्हें अपने आध्यात्मिक अभ्यास से प्रभावित करना चाहते थे। इसलिए आसपास लगे आम से लदे पेड़ों की ओर ध्यान लगाकर देखा। आम टपाटप गिरने लगे।


शाह ने पूछा, ‘‘आम क्यों गिराए?’’ 

 

बुल्ले शाह ने कहा, ‘‘साईं! न तो मैं पेड़ों पर चढ़ा न कंकड़ फैंका, भला मैं आम कैसे तोड़ सकता हूं।’’


साईं ने कहा, ‘‘तू तो चोर भी है और चतुर भी।’’


बस शिष्य उनके चरणों पर लोट गया। साईं ने आने का उद्देश्य पूछा। उनके यह कहने पर कि रब को पाना चाहता हूं तो साईं ने कहा, ‘‘उठ मेरी तरफ देख।’’ 


वह बोले, ‘‘बुल्लेया रब दा कि पौणा, एदरों पुटना ते ओदर लौणा (ईश्वर की प्राप्ति ऐसे ही जैसे एक पौधा इधर से उखाड़ उधर लगा देना)।’’ 


फिर क्या था। बुल्ले शाह ने मन को संसार से हटा कर ईश्वर की ओर मोड़ लिया। ईश्वर को गुरु में ही देखने लगे।
 

Advertising