खुल गए केदारनाथ के कपाट, जानें इसकी दिव्य ज्योति का रहस्य

Thursday, May 09, 2019 - 11:09 AM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा (VIDEO)
09 मई, दिन बुधवार को 6 महीने के लंबे इंतज़ार के बाद भोले बाबा के जयकारों की गूंज में भक्तों के लिए केदारनाथ धाम के कपाट खुल गए हैं। आज सुबह विधि-वत पूजा पाठ की संपूर्ण प्रक्रिया को सम्‍पन्‍न करने के बाद मंदिर के कपाट भक्‍तों के दर्शन के लिए खोल दिए गए हैं। इससे पहले 6 मई को कपाट खुलने की प्रक्रिया के अंतर्गत शीतकालीन गद्दीस्थल से भगवान श्री केदारनाथ जी की चल विग्रह पंचमुखी मूर्ति ने प्रस्थान किया था। चल विग्रह मूर्ति को विधिवत स्नान करवाने के बाद मूर्ति को डोली में विराजमान करके फूल मालाओं से सजायाकर पुजारियों द्वारा केदार लिंग की विधिवत पूजा-अर्चना की गई। फिर हर-हर महादेव और जय केदार के जयकारों के साथ डोली ने प्रस्थान किया। 7 मई को डोली गौरीकुंड में विश्राम करते हुए 8 मई को केदारनाथ पहुंची। 9 मई को ब्रह्ममुहूर्त में मंदिर के कपाट खोल दिए गए।
पौराणिक कथाओं के अनुसार बदरीनाथ और केदारनाथ के बारे में प्रचलित कथा के अनुसार शीतकाल में जब मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं तो मंदिर में पूजा की जिम्मेदारी देवताओं की रहती है यानि इस समय देवतागण भगवान बदरीनाथ और केदारनाथ की पूजा करते हैं। यहां की लोक मान्यता के अनुसार ऐसी बातें सुनने में आती है कि मंदिर के बंद कपाट के अंदर से घंटियों की आवाजें सुनाई देती हैं।

कहा जाता है कि शीतकाल में मंदिर के कपाट बंद होने के समय अखंड दीप को जलाकर रख दिया जाता है। ग्रीष्म ऋतु आने पर जब कपाट खोले जाते हैं तो वह ज्योति जलती हुई मिलती है। माना जाता है कि इस दिव्यज्योति का दर्शन बहुत ही पुण्यदायी माना जाता है। जिस कारण इसके दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं।

केदारनाथ मंदिर के पीछे स्थित इस कुंड में केदारनाथ के अभिषेक का जल रहता है। कहा जाता है कि यह जल अमृत के समान है। यही कारण है कि यहां आने वाले श्रद्धालु इस अमृतमयी जल को पीते हैं। मान्यता के इस जल से लोगों की त्‍वचा संबंधी बीमारियां भी दूर हो जाती हैं। सनातन धर्म में इस अमृत कुंड के जल को गंगा जल जैसा पवित्र बताया गया है।

इसके अलावा बता दें केदारनाथ से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित वासुकी ताल की महिमा अलौकिक है। स्‍कंद पुराण के अनुसार श्रावण मास की पूर्णमासी के दिन इस ताल में मणि युक्‍त वासुकी नाग के दर्शन होते हैं। एक अन्य कथा के अनुसार  रक्षाबंधन के दिन भगवान विष्‍णु ने इस ताल में स्‍नान किया था, जिस कारण इसका नाम वासुकी ताल पड़ा। इसके अलावा शिव जी को चढ़ाया जाने वाला अद्भुत ब्रह्मकमल भी यही खिलता है।

Jyoti

Advertising