सावन स्पैश्ल: कांवड़ यात्रा से जुड़ी हर जानकारी लेने के लिए यहां Click करें

Monday, Jul 29, 2019 - 09:15 AM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा (Video)

सावन का महीना भगवान शिव का महीना है, भगवान शिव के भक्त शिव जी को प्रसन्न करने के लिए नंगे पैर कांवड़ लाते हैं। भक्त केसरिया रंग के कपडे़ पहनकर ‘बोल-बम बम-बम तड़क-बम’ का उद्घोष करते हुए यात्रा करते हैं, इन सब भक्तों को कांवड़िया कहा जाता है। ‘कांवड़’ शब्द का अगर विच्छेद किया जाये तो “च्कस्य आवरः कावरः” अर्थात् परमात्मा का सर्वश्रेष्ठ वरदान अर्थात शिव के साथ विहार, ब्रह्म यानी परात्पर शिव या जो शिव में रमन करें वह ‘कांवड़िया’ होता है। 

मीमांसा के अनुसार ‘क’ का अर्थ जीव और ‘अ’ का अर्थ विष्णु माना गया है, ‘वर’ का अर्थ जीव और सगुण परमात्मा का उत्तम धाम। इसी प्रकार ‘कां’ का अर्थ जल बताया गया है तथा ‘आवर’ को उसकी व्यवस्था माना गया है अर्थात जल पूर्ण घटों को व्यवस्थित करके शिव को अर्पण कर परमात्मा की व्यवस्था को स्मरण किया जाता है। ‘क’ को सिर की संज्ञा दी गई है क्योंकि सिर सभी अंगों में प्रधान है, ‘आवर’ का अर्थ धारण करना। शरीर में ज्ञान सिर्फ मस्तिष्क में होता है, मस्तिष्क से ही सम्पूर्ण शरीर चलता है इसी प्रकार भगवान शिव के द्वारा ही सम्पूर्ण सृष्टि का प्रतिपादन होता है।

प्रत्येक वर्ष सावन मास में कांवड़ का उत्सव लग जाता है, कंवर (कांवर) एक खोखले बांस को बोलते हैं। इस बांस को फूल-माला, घंटी, प्लास्टिक के सर्प, घुंघरू, छोटे-छोटे खिलौने, ढपली, रंग-बिरंगी पट्टियों से सजाया जाता है और उसके दोनों किनारों पर प्लास्टिक अथवा लोहे के बोतलें या लोटों में गंगाजल भरकर हरिद्वार, गौमुख, गंगोत्री, काशी, विश्वनाथ, वैद्यनाथ, नीलकंठ और देवघर आदि धार्मिक गंगा स्थलों से नंगे पैर चलकर अपने घर के नजदीक शिव मंदिर में शिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाया जाता है। 

कावड़ का दूसरा अर्थ ‘कावर’ भी है, जिसका सीधा संबंध कंधे से है। शिव भक्त अपने कंधों पर गंगाजल से भरा कलश लेकर पैदल यात्रा करते हुए शिवलिंगों पर जल अर्पण करते हैं। 

उत्तर-प्रदेश के बागपत प्रांत में ‘पुरा महादेव मन्दिर’ में भगवान परशुराम ने ‘गढ़मुक्तेश्वर’ जिसका वर्तमान नाम ‘ब्रजघाट’ है से गंगा जी का जल लाकर शिवलिंग पर जलाभिषेक किया था। तब से शिव भक्त अपनी मनोकामना की पूर्ति हेतु कांवड़ लाकर शिवलिंग पर जल अर्पण करते हैं। वैसे तो शिवरात्री के दिन सम्पूर्ण भारतवर्ष के शिव मंदिरों में शिवलिंग पर जल चढ़ाया जाता है किन्तु सावन मास में कांवड़ के माध्यम से जल अर्पण करने से अत्याधिक पुण्य के साथ-साथ चारों पुरूषार्थों की प्राप्ति होती है।


 
हिन्दू मान्यता के अनुसार कांवड़ का संबंध समुद्र मंथन से है। समुद्र मंथन के दौरान समुद्र में से विष निकला था तब भगवान शिव ने सृष्टि को बचाने के लिए विष का सेवन किया, जिससे वे नकारात्मक ऊर्जा से पीड़ित हो गये थे। रावण शिव भक्त था उसने शिव का ध्यान किया और कांवर का उपयोग कर गंगा के पवित्र जल को लाकर भगवान शिव को अर्पित किया। जिससे विष का नकारात्मक प्रभाव भगवान शिव से दूर हुआ। इसी प्रकार मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम ने भी सदाशिव को कांवड़ चढ़ाई थी। भगवान श्रीराम ने कांवड़िए का रूप बनाकर सुल्तानगंज से गंगाजल लिया और देवघर स्थित वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया था इसका पूर्ण उल्लेख ‘आनंद रामायाण’ में मिलता है।  

कांवड़ वैसे तो भगवान शिव की पूजा करने का एक साधन है, तपस्या है, किन्तु कांवड़ के कई रूप हैं जैसेः 
सामान्य कांवड़ः
सामान्य कांवड़ को जमीन पर नहीं रखा जाता। सामान्य कांवड़ को ‘पैदल कांवड़’ भी बोलते हैं। सामान्य कांवड़ वाला कांवडिया जहां चाहे वहां विश्राम कर सकता है और विश्राम के दौरान अपनी कांवड को कांवड़ स्टैंड पर रख सकता है। 

खड़ी कांवडः खड़ी कांवड़ अपने नाम के जैसी है, ये कांवड खड़ी रहती है, इसे न तो जमीन पर रख सकते हैं और न ही कांवड स्टैंड पर इसलिए यदि  कांवड़ियों को विश्राम करना है तो उसे अपनी कांवड़ अपने सहयोगी को देनी होगी तथा जब तक कांवड़िया विश्राम करेगा तो उसका सहयोगी उसकी कांवड़ को लेकर खड़ा रहेगा और चलने के अंदाज में हिलता-डुलता रहेगा।
 
दांडी कांवड: दांडी कांवड सबसे कठिन होती है क्योंकि इसमें कांवड़िया गंगा जी से जल लेकर शिवमंदिर तक यात्रा दंड देते हुए करते हैं अर्थात अपने मार्ग की दूरी को अपने शरीर की लंबाई से लेट कर नापते हुए यात्रा पूरी करते हैं। इसमें 1 या 2 माह लग जाते हैं। 

डाक कांवड़ः डाक कांवड़ बिना विश्राम किये लगातार चलने वाली कांवड़ होती है। इसमें कांवड़िया अपनी दूरी तय करने के लिए बिना रूके 24 घंटे के लगभग शिव मंदिर तक पहुंचते हैं। इस दौरान शरीर से उत्सर्जन की क्रियाएं तक वर्जित होती हैं। 

झांकियों वाली कांवड़ः झांकियों वाली कांवड को 10-12 अथवा ज्यादा लोगों की एक टोली बनाकर, ट्रक, जीप अथवा किसी खुली गाड़ी में भगवान भोले नाथ का बड़ा चित्र लगाकर उस पर रोशनियां डालते हुए भगवान शिव को फूलों से सजा कर, तेज-तेज भजनों की ध्वनियों के साथ नाचते गाते हुए लाते हैं।
 
बाईक कांवड़ः बाईक कांवड़ वाले कांवड़िया अपनी बाईक को सजाकर गंगा जल बाईक अथवा कंधे पर लटका कर बाईक से गंगा जी से जल लेकर अपने घरों के पास बने मंदिरों में भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक करते हैं।
 
झूला कांवड़ः झूला कांवड़ झूलती रहती है इसको अगर किसी सहयोगी को दें तो वो सहयोगी इसको झूलाता रहेगा या कांवड स्टैंड पर रखे तब भी कांवड़ को झूलाना पड़ेगा, झूला कांवड़ को अकेले नहीं छोड़ा जा सकता।

कांवड़ के नियम 
कोई भी कांवड़िया अथवा सहयोगी बिना स्नान के कांवड़ को स्पर्श नहीं कर सकता। 

कांवड़ लाने के दौरान तेल, साबुन, कंघी का प्रयोग निषेध है।

यात्रा के दौरान सभी कांवड़ियों को ‘भोला’ कह कर पुकारा जाता है। महिला को ‘भोली’ के नाम से सम्बोधित किया जाता है तथा बात-बात पर ‘बोल-बम’ का नारा लगाना चाहिये।
 
कांवड़ियों को किसी भी प्रकार का नशा नहीं करना चाहिए। मांस, मदिरा तथा तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए।

किसी भी पेड़-पौधे के नीचे अपनी कांवड़ को नहीं रखना चाहिए।
 
चमड़े से बनी किसी भी वस्तु का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

चलते हुए वाहन पर नहीं बैठना चाहिए। 

कांवड़ियों को चारपाई पर बैठना और लेटना नहीं चाहिए। 

कांवड़ को अपने सिर के ऊपर से लेकर जाना वर्जित है। 

ज्योतिष बॉक्सर देव गोस्वामी
devgoswami530@gmail.com

Niyati Bhandari

Advertising