Karwa Chauth 2020: इस तरह से करें सोलह श्रृंगार, बढ़ेगा पति से प्यार

Tuesday, Nov 03, 2020 - 07:39 AM (IST)

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Karwa Chauth Solah Shringar: ‘‘कर ले री सोलह श्रृंगार, बलम तोरा छैल-छबिला, नाजुक कलईयों में गजरे सजा ले, काजल से नैना संवार, कि कर ले री सखी सोलह श्रृंगार....’’ कहने को तो ये सिर्फ किसी फिल्म के गीत के बोल ही है, लेकिन भारतीय संस्कृति में महिलाओं के सोलह श्रृंगार करने का बहुत महत्व है, जिसे औरतों की खूबसूरती के साथ जोड़ा जाता है। शादी के वक्त दुल्हन के जब तक सोलह श्रृंगार न किए जाए तब तक उसमें कुछ कमी सी रहती है। महिलाओं का स्वयं को सोलह श्रृंगार करके संवारना उनके पति की लम्बी उम्र और पति-पत्नी के रिश्ते में प्रेम को बढ़ाता है। करवाचौथ पर महिलाएं सोलह श्रृंगार करके पति की लम्बी उम्र की कामना करती है।


Solah shringar full list- क्या है सोलह श्रृंगार: हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार नव-विवाहिता स्वयं भगवान लक्ष्मी और पार्वती का स्वरूप मानी जाती है। सुख और समृद्धि की देवी मां महालक्ष्मी की भी 16 श्रृंगार धारण किए हुए रूप में पूजा की जाती है। सजते-सवंरते हुए महिलाएं सिर से लेकर पांव तक 16 आभूषण धारण करती है, इसे ही सोलह श्रृंगार कहा जाता है। आजकल समय के बदलाव के साथ सोने-चांदी के आभूषणों की बजाय महिलाएं आर्टिफिशियल ज्युलरी को ज्यादा पसंद करती है।



What to buy before Karva Chauth: करवाचौथ के व्रत पर महिलाएं अपने पति की प्यार भरी नजर पाने के लिए सिर से लेकर पांव तक पूर्ण श्रृंगार करती है। बिंदी, सिंदूर, काजल, कान के बूंदे, मेंहदी, मंगलसूत्र, नत्थ, अंगूठी, कमरबंद, चूड़ियां, बाजूबंद, गजरा, मांग टीका, पायल, बिछुआ, ब्राइडल आउटफिट यह 16 श्रृंगार के अंतर्गत आती है। यह सोलह वस्तुएं जब तक औरत श्रृंगार में प्रयोग नहीं करती तब तक उसका श्रृंगार अधूरा रहता है। सोलह श्रृंगार करके सज-धज कर महिलाएं पति की लम्बी आयु के लिए व्रत रखकर गौरी मां की पूजा करती है।


Significance of solah shringar- महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ा है सोलह श्रृंगार का महत्व: सोलह सिंगार का महत्व सिर्फ सजने-सवंरने से ही नहीं है बल्कि इनसे महिलाओं के स्वास्थ्य पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है।


बिंदी लगाना: माथे पर सुशोभित बिंदी महिला को जहां आकर्षक बनाती है वहीं उसे पति की प्रिय भी बनाती है। बिंदी लगाए जाने वाले स्थान पर ईश्वरिय ऊर्जा के रूप में हमारे संचित संस्कार केंद्रित होते हैं, जो दिमाग को उर्जा प्रदान करते है। भावों के बीच में आज्ञाचक्र होता है जो महिला के भावों का नियंत्रित करने का कार्य करता है। बाजार में स्टोन वर्क, लिक्विड और कलरफुल कई तरह की बिंदिया मिलती है।

मांग में सिंदूर भरना: मांग भरना स्त्री के विवाहित होने का सूचक है। एक चुटकी भर सिंदूर से दो लोग जन्मों-जन्मों के साथी बन जाते हैं। शास्त्रों में विवाहिता की मांग भरने के संस्कार को सुमंगली क्रिया कहते हैं। शरीर विज्ञान के अनुसार सिंदूर में पारे जैसी धातु अधिक होने की वजह से चेहरे पर झुर्रियां नहीं पड़ती और महिलाओं में मौजूद विद्युतिय उत्तेजना नियंत्रित होती है।

काजल: स्त्री की आंखों को विभिन्न कवियों ने मछली और मृगनयनी की संज्ञा भी दी है। नयना बहुत चंचल और शरारती होते हैं। काजल स्त्री को अशुभ नजरों से बचाता है और नयनों की सुंदरता को चार-चांद लगा देता है। आजकल काजल के साथ आई लाइनर लगाने का भी रिवाज है जो हरे, नीले, ब्राउन व काले रंग में मिलते है।

मेंहदी: किसी भी पारिवारिक उत्सव पर लगाई जाने वाली मेंहदी महिलाओं के हार्माेन्स को भी प्रभावित करती है और रक्त संचार को भी नियंत्रित करती है। यह दिमाग को तेज और शांत रखती है। मान्यता अनुसार मेंहदी का रंग जितना अधिक हाथों पर चढ़ता है लड़की को उसके पति व ससुराल से उतना अधिक स्नेह मिलता है। मेंहदी तो मूल रूप से हरी होती है, जो चढ़ने के बाद लाल रंग छोड़ती है लेकिन आजकल काली मेंहदी या कैमिकल्स वाली मेंहदी हाथों को नुक्सान भी पहुंचा सकती है।

मंगलसूत्र: भारतीय परंपरा के अनुसार स्त्री को अपना गला कभी खाली नहीं रखना चाहिए। मंगलसूत्र में प्राय काले रंग के मोतियों के लड़ी में लॉकेट या मोर की उपस्थिति जरूरी मानी जाती है। कंधे व सिर का भाग नाड़ियों से घिरा होता है। गले में पहना जाने वाला हार उन समस्त नाड़ियों को व्यवस्थित करता है।

नथ: सुहागन स्त्री के लिए नथ या लौंग पहनना अत्यधिक शुभ माना जाता है। ये रक्त संचार को ग्रीवा भाग में स्थित करवाता है। परम्पराओं के अनुसार इसका आकार बड़ा या छोटा होता है। कालेज गॉइंग गर्ल्स भी फिल्मों से प्रभावित होकर कलरफुल स्टोन के नोज-पिन पहनती हैं।  

अंगूठी व हाथफूल : शादी से पहले ‘रिंग सेरेमनी’ करके भावी वर-वधु एक- दूसरे को ‘अंगूठी’ पहनाते है, जिसका अर्थ है दोनों के रिश्ते का जुड़ना जिससे उनमें आपसी प्रेम व विश्वास का नया रिश्ता बंध जाता है। हाथफूल कलाई में पहना जाता है, जिसके साथ 8 उंगलियों में पहनने के लिए अंगूठियां जुड़ी होती है।

कमरबंद: बच्चे की कमर में तागड़ी पहनी जाती है व महिलाएं कमरबंद पहनती है, जो उनके स्वास्थ्य के लिए सबसे श्रेष्ठ है। इसे पहनने से शरीर में  स्फूर्ति और उत्साह बना रहता है। यह भी बड़ी उम्र में पेशियों में खिंचाव व हड्डियों में दर्द को नियत्रिंत करता है।

कंगन-चूड़ी: चूड़िया मन की चंचलता को दर्शाती है, तो कंगन मातृत्व की ललक उत्पन्न करता है। इसलिए कंगन दुल्हनों का श्रृंगार व चूड़िया लड़कियों का श्रृंगार माना जाता है। मार्केट में कांच, लाख, प्लास्टिक व मैटल में बहुत से आकर्षक डिजाइन्स उपलब्ध है। मैटल की बजाय कांच की कंगन चूड़िया पहननी सबसे उत्तम है।

बाजुबंद: कुछ इतिहासकारों के अनुसार बाजुबंद मुगलकारों की देन है, जिनका पौराणिक कथाओं में भी वर्णन मिलता है। सोने, चांदी व मोतियों से बने बाजुबंद बड़ी उम्र में पेशियों में खिंचाव व हड्डियों में दर्द को नियत्रिंत करता है। विवाह के समय वर पक्ष की और से यह दुल्हन को पहनाया जाता है।

गजरा: स्त्री के बालों में लगा गजरा उसकी स्फूर्ती और ताजगी का प्रतीक माना जाता है वहीं उसको शुभ फल देता है। फैशन के दौर में महिलाएं बालों को खोल कर रखती है, जबकि शास्त्रों अनुसार उसे अशुभ माना जाता है। ताजे फुलों के गजरों के इलावा आर्टिफिशल फूलों के गजरे भी बाजार में मिलते है जिन्हें कई बार प्रयोग किया जा सकता है।

मांग टीका: सिंदूर से मांग भरने के बाद उसके साथ मांग टीका लगाया जाता है जो सोने का बना होता है। महिला का स्वभाव कई नरम और कभी गर्म होता है यह पहनने से दिमाग शांत रहता है।

पायल या पाजेब: घर की बहु या दुल्हन को गृहलक्ष्मी की संज्ञा दी जाती है। चांदी से बनी पायल के घूंघरु की छम-छम पूरे परिवार की शांति को बनाए रखने में गृहलक्ष्मी को सहयोग करती है। माना जाता है कि पायल को सोने में बनवा कर पहनना उचित नहीं है क्योंकि स्वर्ण मां लक्ष्मी जी का प्रतीक है। सोने को शरीर के ऊपरी हिस्से में तो धारण किया जा सकता है लेकिन पांवों में डालना उचित नहीं है।

बिछुआ: दोंनो पांवों की बीच की तीन उंगलियों में बिछुआ पहने जाते है। सोने का टीका व चांदी के बिछुए पहनने से सूर्य व चंद्रमा दोंनो की कृपा बनी रहती है। यह शरीर के एक्यूप्रेशर का काम भी करते है। शरीर की तलवे से लेकर नाभि तक की सारी नाड़ियों और पेशियों को कसकर व्यवस्थित रखते है।

कान के बूंदे: कान की नसें स्त्री की नाभि से लेकर पैर के तलवे तक महत्तवपूर्ण भूमिका निभाते है। बजुर्गो के अनुसार यदि औरत के नाक और कान में छिद्र न हो तो उसे प्रसव के दौरान अधिक कष्ट सहना पड़ता है। विवाहिता स्त्री को अपने कान कभी खाली नहीं रखने चाहिए। पुराणों के अनुसार विवाहिता पति और ससुराल की बुराई कभी मायके से भी न सुने इसलिए उसे कान में बुंदे पहन कर रखने चाहिए। इससे परिवार में प्रेम बढ़ता है। फैशन के अनुसार हर ड्रैस के साथ  मैचिंग इयररिंगस पहनने का चलन है पर सोने के बुंदे (इयर-रिंग) पहनना शुभ माना जाता है।

ब्राइडल ड्रैस: सोलह श्रृंगार में दुल्हन के जोड़े का भी बहुत महत्व है। लाल, मैजेंटा, मैरून, गुलाबी रंग के जोड़े तो दुल्हने पहनती ही है लेकिन आजकल गोल्डन, हरे, बैंगनी रंग के सूट, लहंगे या साड़ी का भी बहुत ट्रेंड है।

मैंटल स्ट्रैस पर पाएं नियंत्रण :
करवाचौथ पर सोलह श्रृंगार करके महिलाएं पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत करती हैं जबकि पति के लिए एक दिन भूखी-प्यासी रहने से उनके बीच प्रेम बढ़ता है और महिलाओं का मैंटल स्ट्रैस भी कम होता है। औरतों को सजने-सवंरने का बहुत शौंक होता है सुहाग के लिए सजधज कर सबकी तारीफ हासिल करके उनमें नई एनर्जी आती है। सोलह श्रृंगार करने से शरीर के हार्मोंस पर भी असर पड़ता है जिससे व्रत के अगले दिन महिलाओं में नया जोश और उत्साह बढ़ जाता है।

शीतल जोशी
joshisheetal25@gmail.com

Niyati Bhandari

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