करवा चौथ 2019: कैसे शुरू हुई छलनी से चांद देखने की परंपरा ?

Thursday, Oct 10, 2019 - 05:00 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की शरूआत होते ही त्योहारों की लड़ी लग जाती है। शरद पूर्णिमा से कार्तिक महीना आरंभ हो जाता है। उसके बाद करवा चौथ का पर्व बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है। ज्यादातर ये पर्व उत्तर भारत में ही मनाया जाता है। कहते हैं कि औरतेंं अपने पति की लम्बी उम्र के लिए इस व्रत को करती हैं। बता दें कि ये व्रत कुंआरी कन्याएं भी मनचाहे वर के लिए रख सकती हैं। औरतें इस दिन पूरे 16 श्रृंगार ककरके शाम के समय तैयार होती हैं और फिर रात के समय चांद को अर्घ्य देकर ही व्रत खोलती हैं। लेकिन कभी किसी ने ये सोचा है कि चन्द्रमा को देखकर ही क्यों खोला जाता है व्रत, अगर नहीं तो चलिए जानते हैं इसके पीछे जुड़ी मान्यता के बारे में।  

धार्मिक आधार 
अगर देखा जाए तो चंद्रमा भगवान ब्रह्मा का रूप है और एक मान्यता यह भी है कि चांद को दीर्घायु का वरदान प्राप्त है और चांद की पूजा करने से दीर्घायु प्राप्त होती है। साथ ही चद्रंमा सुंदरता और प्रेम का प्रतीक भी होता है, यही कारण है कि करवा चौथ के व्रत में महिलाएं छलनी से चांद को देखकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है। 

पौराणिक कथा
एक साहूकार की बेटी ने अपने पति की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था पर अत्यधिक भूख की वजह से उसकी हालत खराब होने लगी थी, जिसे देखकर साहूकार के बेटों ने अपनी बहन से खाना खाने को कहा लेकिन साहूकार की बेटी ने खाना खाने से मना कर दिया। भाइयों से बहन की ऐसी हालत देखी नहीं गई तो उन्होंने चांद के निकलने से पहले ही एक पेड़ पर चढ़कर छलनी के पीछे एक जलता हुआ दीपक रखकर बहन से कहा कि चांद निकल आया है। बहन ने  भाइयों की बात मान ली और दीपक को चांद समझकर अपना व्रत खोल लिया और व्रत खोलने के बाद उनके पति की मुत्यु हो गई और ऐसा कहा जाने लगा कि असली चांद को देखे बिना व्रत खोलने की वजह से ही उनके पति की मृत्यु हुई थी। तब से अपने हाथ में छलनी लेकर बिना छल-कपट के चांद को देखने के बाद पति के दीदार की परंपरा शुरू हुई ।

Lata

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