Kartik Maas 2020: सनातन धर्म के अलावा अन्य धर्मों में भी जल का अधिक महत्व

Saturday, Oct 31, 2020 - 03:55 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
कार्तिक मास में जितना महत्व है, उससे कई गुना ज्यादा महत्व स्नान दान आदि का होता है। सनातन धर्म में कहा गया है जो भी पावन नदियों स्नान करता है उसे जीते जी पुण्य का प्राप्ति होती है तो मृत्यु के बाद मोत्र प्राप्त होता है। इससे ये बात तो स्पष्ट होती है सनातन धर्म में जल का अधिक महत्व है। कार्तिक मास के इस खास अवसर पर हम आपको बताएंगे कि सनातन धर्म के साथ साथ अन्य धर्मों में इसकी क्या विशेषता है। जी हां प्रत्येक धर्म में जल की विशेषता बताई गई है, सभी शास्त्रों में बताया गया है कि इस अनमोल उपहार को हर किसी को संजोकर रखना चाहिए। प्राचीन समय में ऋषियों, गुरुओं आदि ने अच्छे से बताया है कि कैसे ये साधना और इबादत से जुड़ा हुआ है।  

सनातन धर्म
सनातन परंपराओं की मानें तो पंचभूत तत्वों में से एक जल को कहा गया है, जिसे देवता के रूप में स्वीकार किया गया है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार सदियों से जल सनातन धर्म की संस्कृति, परंपरा और साधना का अहम हिस्सा रहा है। इतना ही नहीं इस धर्म में सबसे पावन माने जाने वाले गंगाजल को अमृत के रूप में स्वीकार किया गया है। जो मानव जीवन की शुरुआत से लेकर जीवन के अंत तक जुड़ा रहता है।

सिख 
सिख धर्म में भी जल को पावन माना जाता है। इसलिए अमूमन गुरुद्वारों में बावणी ओर सरोवर देखने को मिलते हैं। सिख धर्म से जुड़ी कथाओं के अनुसार गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने पंज प्यारों के लिए जो अमृत तैयार किया था, उसमें से एक जल था। तो वहीं गुरु नानक देव जी के अनुसार, जीवन में जल ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बताया गया है क्योंकि इसी से सब कुछ चलता है। 

इस्लाम 
इस्लाम धर्म में भी जल को पाक माना गया है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार आब-ए-जमजम वह पवित्र जल है, जिसे प्रत्येक हज करने वाला व्यक्ति बड़ी श्रद्धा के साथ पीता है। इस्लाम धर्म में पानी को अल्लाह की बेमिसाल रहमत माना गया है। मान्यताएं ये भी हैं कि मक्का-मदीना की यात्रा करने वाला यात्री जब अपने घर को लौटता है तो वह अपने साथ आब-ए-जमजम ज़रूर लेकर जाता है। इसे वह अपने घर में बड़ी पवित्रता के साथ रखता है और पूरे घर में इसका छिड़कान करता है।

ईसाई 
अन्य धर्मों की तरह ईसाई धर्म में भी जल के अपने मायने हैं। ईसाई धर्म में ईश्वर की प्रार्थना में जल का प्रयोग विशेष रूप से होता है। शिशुओं के लिए बप्तिस्मा नामक किया जाने वाला संस्कार इसी जल के माध्यम से किया जाता है। ईसाई धर्म में होली वॉटर की जो परंपरा है, वह किसी भी चर्च में जाने पर उपल्ब्ध होती है। इस पवित्र जल को लोग अपने माथे से लगाकर अपने ऊपर छिड़काव करते हैं। 

Jyoti

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