Kartik Maas 2020: स्कंदपुराण के श्लोकों से जानें, कार्तिक मास की महिमा

Saturday, Oct 31, 2020 - 01:55 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
प्रत्येक वर्ष शरद पूर्णिमा के बाद से ही कार्तिक मास प्रारंभ हो जाता है, जिसका सनातन धर्म में अधिक महत्व है। इस दौरान पूजा पाठ के साथ-साथ अन्य कई धर्म-कर्म वाले कार्य किए जाते हैं। मगर इस दौरान जिस कार्य को सबसे ज्यादा किया जाता है वो है गंगा स्नान आदि। जी हां कार्तिक मास में पावन नदी व पोखर आदि में जितना महत्व स्नान आदि का है, उतना ही नहीं स्नान आदि का है। इसके अलावा कार्तिक मास में दान आदि करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, ऐसा शास्त्रों में वर्णन मिलता है। परंतु क्या आप जानते हैं स्नान आदि करते समय जातक को किन बातों का ख्याल रखना चाहिए। अगर नहीं तो चलिए हम आपको बताते हैं कि शास्त्रों में कार्तिक मास के दौरान स्नान आदि के दौरान किन श्लोकों का जप करना लाभदायक होता है।  

लेकिन इससे पहले आपको बता देते हैं कि स्कंद पुराण में वर्णन कार्तिक मास की महिमा का वर्णन करने वाला श्लोक-

न कार्तिकसमो मासो न कृतेन समं युगम्।
न वेदसदृशं शास्त्रं न तीर्थं गंगा समम्।।

इस श्लोक का अर्थात है जिस तरह सत्ययुग के समाव कोई युग नहीं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं, गंगा जी के समान कोई तीर्थ नहीं है, ठीक उसी तरह कार्तिक मास के समान कोई अन्य पावन मास नहीं है। 

रोगापहं पातकनाशकृत्परं सद्बुद्धिदं पुत्रधनादिसाधकम्।
मुक्तेर्निदांन नहि कार्तिकव्रताद् विष्णुप्रियादन्यदिहास्ति भूतले।। - (स्कंदपुराण. वै. का. मा. 5/34)

इस श्लोक में कहा गया है कार्तिक मास जातक को आरोग्य प्रदान करने वाला, रोगविनाशक, सद्बुद्धि प्रदान करने वाला माना जाता है। तथा इस दौरान देवी लक्ष्मी की साधना अत्यंत लाभदायक मानी जाती है, बल्कि इसे सर्वोत्तम फल प्राप्त होता है। 

स्नान का क्या है महत्व- 
शास्त्रों में इससे जुड़ा एक श्लोक प्रचलित है जिसमें बताया गया है कि कार्तिक स्नान के लिए तीर्थराज प्रयाग, अयोध्या, कुरुक्षेत्र तथा काशी को श्रेष्ठ माना जाता है। जो जातक कार्तिक मास में यहां जा न भी पाए, ऐसे में केवल  इन स्थानों और यहां बहने वाली नदियों का स्मरण भी कर लें तो इससे भी दोगुना लाभ मिलता है।

श्लोक- 
'गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु।।

स्नान करते समय करें इस मंत्र का उच्चारण- 
आपस्त्वमसि देवेश ज्योतिषां पतिरेव च।
पापं नाशाय मे देव वामन: कर्मभि: कृतम। यह बोल कर जल की ओर
दु:खदरिद्रयनाषाय श्रीविश्णोस्तोशणाय च।
प्रात:स्नान करोम्यद्य माघे पापविनाषनम।। कहें और ईश्वर की स्तुति करें।

स्नान समाप्त हो जाने पर इस मंत्र को जपें- 
सवित्रे प्रसवित्रे च परं धाम जले मम।
त्वत्तेजसा परिभ्रश्टं पापं यातु सहस्त्रधा।।


 

Jyoti

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