इस विधि से जानें भविष्य में क्या होने वाला है आपके साथ

Saturday, Mar 28, 2020 - 10:00 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

कर्म की गति को जानने और समझने के लिए सब लोग अपने-अपने तरीके से प्रयत्नशील रहते हैं। इसमें कामयाबी मिलना स्पष्टतया हमारे प्रयासों पर निर्भर करता है। यहां बात उन कर्मों की हो रही है जिनकी विवेचना हिंदू संस्कृति में अक्सर होती रहती है। 

कर्म की गति को जानने से पहले कर्म की उत्पत्ति और उसके मूल स्वरूप को समझना जरूरी है। सामान्यत: प्रत्येक कर्म की उत्पत्ति मन, वचन और कार्य से मानी जाती है। विषय को समझने के लिए कहा जा सकता है कि हमारे मन में एक विचार का उत्पन्न होना किसी कर्म की प्रारंभिक अवस्था है, उस विचार की शब्दों द्वारा अभिव्यक्ति कर्म की द्वितीय अवस्था है तथा उसे कार्य रूप में रूपांतरित करना कर्म की पूर्णावस्था है। इसका मतलब यह हुआ कि प्रत्येक कर्म का उद्भव किसी न किसी विचार, वाणी तथा कार्य से होता है। 

अब बात करते हैं कर्म फल की, क्योंकि कर्म की गति ही कर्मफल को तय करती है। अमूमन लोग इस बात से सहमत होते हैं कि वे जैसे कर्म करेंगे उन्हें फल भी वैसे ही मिलेंगे, फिर भी अक्सर शिकायत करते रहते हैं कि मैंने तो ऐसा कोई कर्म किया नहीं फिर भी मुझे अमुक फल मिला। 

यहां बात हो रही है अनपेक्षित कर्मफल की क्योंकि अच्छे फल की प्राप्ति पर बात कम ही होती है। शिकवे-शिकायत का दौर तो तभी शुरू होता है जब फल आशा के अनुरूप नहीं आते हैं। ऐसे लोगों को यह ध्यान रखना चाहिए कि कर्म का मतलब केवल कोई कार्य ही नहीं होता है बल्कि मन में किसी विचार को उत्पन्न करना या होने देना भी कर्म है और वाणी से भला-बुरा कहना भी कर्म है। 

कर्म गति को अपनी इच्छा के अनुरूप बनाने का अंतिम अवसर कार्य के स्तर पर होता है। यहां समझने योग्य बात यह है कि हमारे ये नित कर्म ही हमारे भाग्य का निर्धारण करते रहते हैं। 

Niyati Bhandari

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