यहां भगवान शंकर से पहले होती है इस खलनायक की पूजा

Saturday, Jul 06, 2019 - 04:05 PM (IST)

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भारत ही क्या दुनिया के हर कोने में कोई न कोई मंदिर व धार्मिक स्थल हैं, जिनसे बहुत सी पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बता रहे हैं जिसका संबंध हिंदू धर्म के एक मुख्य पात्र से है। हम बात कर रहे हैं रामायण के खलनायक की। जी जी, आप सही समझ रहे हैं हम बात कर रहे हैं रावण की, जिसने श्री राम के वनवास काल के दौरान उनकी पत्नी सीता का अपहरण कर लिया था।

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जैसे ही हम रावण का नाम सुनते हैं हम में ज्यादातर लोगों के अंदर एक अलग ही तरह की क्रोध पैदा हो जाता है। मगर आपको बता दें कि हमारे देश में एक ऐसा जगह है जहां रावण को खलनायक नहीं बल्कि देवता का दर्ज़ा दिया जाता है।  इतना ही नहीं बल्कि यहां एक ऐसा मंदिर है जहां भगवान शंकर से पहले उनके परम भक्तों में एक कहे जान वाला रावण उनसे भी पहले पूजा जाता है। आपकी उत्सुकता को और न बढ़ाते हुए बता दें हम बात कर रहे हैं कमलनाथ महादेव मंदिर की जो उदयपुर से 80 कि.मी. दूर झाड़ोल तहसील में आवारगढ़ की पहाडिय़ां पर स्थित है।

पुराणों के मुताबिक लंकापति ने खुद शिवजी के इस मंदिर की स्थापना कराई थी। इतना ही नहीं पुराणों में यह भी बताया गया है कि इसी जगह पर भगवान शिव को रावण ने अपना सिर अग्निकुंड में समर्पित कर दिया था। भगवान शिव रावण की इस भक्ति से प्रसन्न हो गए थे और उन्होंने उसकी नाभि पर अमृत कुंड की स्थापना कर दी थी।

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भगवान शिव से पहले इस मंदिर में होती है रावण की पूजा
इस मंदिर में भगवान शिव से पहले रावण की पूजा की जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इस मंदिर की यह मान्यता है कि अगर रावण की पूजा भगवान शिवजी से पहले नहीं हुई तो पूजा व्यर्थ हो जाती है। पुराणों में इस मंदिर के बारे में एक अनोखी कहानी लिखी है। उस कहानी के मुताबिक भगवान शिव को एक बार रावण ने प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत पर चले गए थे और वहां जाकर तपस्या की।


भगवान शिव रावण की इस कठोर तपस्या से खुश हो गए थे और उन्होंने उससे वरदान मांगने को कहा था। उसके बाद भगवान शिव से रावण ने वरदान के रूप में लंका चलने का आग्रह किया। रावण के साथ भगवान शिव शिवलिंग के रूप में जाने के लिए तैयार हो गए थे। रावण से भगवान शिव ने यह शर्त रखी थी कि अगर तुमने लंका पहुंचने से पहले किसी भी जगह पर शिवलिंग धरती पर रख दिया तो मैं उसी जगह पर स्थापित हो जाउंगा। हालांकि लंका का रास्ता कैलाश पर्वत से बहुत दूर पर था। जब रावण रास्ते में शिवलिंग ले जा रहा था तो वह थक गया और उसने आराम के लिए एक जगह पर शिवलिंग को धरती पर रख दिया।
 

जब रावण ने आराम कर लिया तो उसने शिवलिंग को उठाना चाहा लेकिन वह शिवलिंग वहां से नहीं हिला। उस समय रावण को अपनी गलती का आभास हुआ और उसने पश्चाताप के लिए फिर से वहीं पर तपस्या करनी शुरू कर दी। रावण भगवान शिव की पूजा दिन में एक बार 100 कमल के फूलों से करता था। भगवान शिव की इस तरह पूजा करते हुए रावण को साढ़े बारह साल हो गए थे।रावण की तपस्या केसफल होने के बारे में जब ब्रह्मा जी को पता चला था तो उन्होंने उसकी तपस्या विफल करने के लिए कमल का एक फूल कम कर दिया था। भगवान शिव की पूजा के लिए रावण को एक फूल नहीं मिला तो उसने भगवान शिव को अपना सिर ही काटकर अर्पित कर दिया था। भगवान शिव रावण की इस भक्ति से प्रसन्न हो गए थे और उन्होंने उसे वरदान के रूप में उसकी नाभि पर अमृत कुंड की स्थापना कर दी। इसके साथ ही भगवान शिव ने कहा कि इस स्थान को कमलनाथ महादेव के नाम से जाना जाएगा।

Jyoti

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