कालाष्टमी कल: ग्रह बनेंगे मित्र, परिवार में आएंगी खुशियां

Saturday, Apr 07, 2018 - 11:31 AM (IST)

रविवार दिनांक 08.04.18 को वैसाख कृष्ण प्रदोष व्यापीनी अष्टमी को कालाष्टमी पर्व मनाया जाएगा। शिवपुराण के अनुसार इसी दिन मध्यान्ह में रुद्रावतार भैरव उत्पन्न हुए थे, इसी कारण इसे कलाष्टमी कहते हैं। पौराणिक मतानुसार अंधकासुर ने अधर्म की सीमा लांघ ली थी। घमंड में चूर अंधकासुर ने महादेव पर आक्रमण करने का दुस्साहस कर दिया। अंधकासुर के संहार हेतु रुद्र के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई। एक प्रचलित किंवदंती के अनुसार पूर्व में ब्रह्मा पंचमुखी थे व ब्रह्मा पंचम वेद की रचना भी कर रहे थे। इसी विषय पर महादेव ने ब्रह्मा से वार्तालाप की परंतु न समझने पर महाकाल से उग्र, प्रचंड भैरव प्रकट हुए व उन्होंने नाखून के प्रहार से ब्रह्मा का पांचवा मुख काट दिया, इस पर भैरव को ब्रह्महत्या का पाप लगा। 


एक और किवंदीती के अनुसार कालांतर में ब्रह्मा ने महादेव की वेशभूषा पर उनका उपहास किया, उसी समय रुद्र के शरीर से क्रोध में लिप्त प्रचण्ड दण्डधारी भैरव प्रकट होकर ब्रह्मा के संहार हेतु आगे बढ़ा। यह देख ब्रह्मा भय से चीख पड़े। महादेव ने उन्हें शांत कर महाभैरव का नाम दिया। महादेव ने भैरव को काशी का नगरपाल बनाया। भैरव ने इसी तिथि पर ब्रह्मा के अहंकार को नष्ट किया था। लोग इस दिन मृत्यु भय से मुक्ति के लिए भैरव पूजन करते हैं। रविवारीय वैसाख कलाष्टमी पर भैरव के उन्मत्त स्वरूप के पूजन का विधान है। इनका पूजन गुड, जलेबी व शहद से करते हैं। उन्मत्त भैरव के विधिवत व्रत, पूजन व उपाय से प्रेम में सफलता मिलती है, पारिवारिक समृद्धि आती है व क्रूर ग्रहों के प्रभाव से छुटकारा मिलता है।


पूजन विधि: संध्या के समय भैरव का विधिवत पूजन करें। सरसों के तेल का चौमुखी दीपक जलाएं, गुगल धूप करें, केसर का तिलक लगाएं, लाल फूल चढ़ाएं। मीठी रोटी का भोग लगाएं। किसी माला से इस विशेष मंत्र का यथासंभव जाप करें। जप पूरा होने के बाद 4 मीठी रोटी कुत्ते को डालें।


पूजन मुहूर्त: शाम 19:05 से रात 20:05 तक।
पूजन मंत्र: ह्रीं उन्मत्त भैरवाय नमः॥ 


उपाय
प्रेम विवाह में सफलता के लिए भोजपत्र पर प्रेमी का नाम लिखकर भैरव मंदिर में चढ़ाएं।


पारिवारिक समृद्धि के लिए भैरव पर अर्पित मौली घर के मेन गेट पर बांधें।


क्रूर ग्रहों के प्रभाव से छुटकारे के लिए भैरव पर अर्पित 4 इमरती कुत्तों को खिलाएं।

आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com

 

Aacharya Kamal Nandlal

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