कजरी तीज को क्यों कहते बूढ़ी तीज?

Wednesday, Aug 05, 2020 - 05:42 PM (IST)

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06 अगस्त को कजरी तीज का पर्व मनाया जाएगा। हरियाली तीज की तरह कजरी तीज का पर्व भी महिलाओं को समर्पित है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन महिलाएं व्रत आदि करने से महिलाओं को भगवान शिव और पार्वती की कृपा प्राप्त होती है। कहा जाता है ये व्रत करने से पति की उम्र लंबी होती है। साथ ही साथ अविवाहित महिलाओं को मनचाहा वर मिलता है। जिस तरह हिंदू धर्म में प्रत्येक वर्त आदि से जुड़ी कथाएं प्रचलित हैं, ठीक वैसे ही कजरी तीज से भी जुड़ी मान्यताएं व कथाएं प्रचलित हैं। बता दें कुछ मान्यताओं के अनुसार कजरी तीज को बूढ़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है। 

आइए जानते हैं इसकी पूजा विधि तथा व्रत कथा- 
बता दें कजरी तीज के दिन नीमड़ी माता की पूजा की जाती है। तथा साथ ही चंद्रमा को अर्घ्य देकर इस व्रत को संपन्न किया जाता है। 

कजरी तीज की पूजा विधि- 
कजरी तीज का व्रत उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार के कई क्षेत्रों में मनाया जाता है। माना जाता है इस व्रत को रखने वाली सुहागिन स्त्रियों की अधिक श्रद्धा होती है। मान्यता है कि यह व्रत इतना प्रभावशाली होता है कि अगर कोई भी सुहागिन स्त्री सच्चे मन से अपने पति के हित का संकल्प लेकर व्रत करती है तो उसकी मनोकामना ज़रूर पूरी होती है। तथा उसे अपने जीवन में अनेक सुखों की प्राप्त होती है एवं पारिवारिक सुखों में बढ़ोतरी होती है। 

कजरी तीज कथा- 
कथाओं के अनुसार नीमड़ी माता की कृपा पाने का साल भर में यह केवल एक ही दिन होता है। राजस्थान में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार जिस परिवार पर नीमड़ी माता अपनी कृपा कर देती हैं उन पर कभी कोई संकट नहीं आता है। 

इन्हें भोग में गेंहू, चावल, चना, घी और मेवों से बने व्यंजन अधिक प्रिय होते हैं। यही कारण सभी व्रती स्त्रियां इस व्रत में माता नीमड़ी को इस तरह का प्रसाद अर्पित करती हैं।
 

Jyoti

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