कबीर जी के संदेशों में है life की छोटी से लेकर हर बड़ी Problem का हल

Wednesday, Sep 29, 2021 - 01:26 PM (IST)

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Kabir vani: भारत के महान संतों में कबीर जी का स्थान सर्वोच्च है। इन्होंने छुआछूत, ऊंच-नीच, भेद-भाव व धर्म के विभेद को दूर करके संसार में मानवता का संदेश दिया। उनके विचार कल जितने प्रासंगिक थे, उतने आज भी है। सद्गुरु कबीर जी के संदेशों को अपने जीवन में उतारकर अपना जीवन सफल बनाएं-


सार शब्द के अतिरिक्त मुक्ति का कोई द्वार नहीं है।

आत्मज्ञानी कर्णधार गुरु के मार्गदर्शन में सच्चे साधक हंस जीवों को सुरति-साधना योग से मुक्ति संभव है।

अपने गुरु की सेवा समर्पित भाव तथा तन-मन-धन से करना। गुरु के वचन पर विश्वास रखना तथा आज्ञाकारी रहना। गुरु परमात्म स्वरूप होते हैं, उनमें भेद बुद्धि से सफलता नहीं होगी।

आत्मज्ञानी गुरु के सदुपदेश के बिना मुक्ति नहीं हो सकती।



किसी प्रकार की विपत्ति आने पर अपने सद्गुरु का ही सुमिरन करना। अन्य की आशा न करना।

सद्भक्ति के लिए सच्चा प्रेम आवश्यक है। शरीर और शारीरिक संबंधियों का मोह त्यागने वाले भक्त धन्य हैं।

साधु गुरु की सेवा सदा प्रेम एवं सद्भाव से करना।

अपने सुकृत उपार्जित धन का दसवां भाग साधु गुरु की सेवा में अवश्य लगाना।



गुरु गुण से सम्पन्न साधु को गुरु समान समझना।

ज्ञानी, विचारवान, विवेकी, पारखी, साधु-संत जो सत्य पुरुष की सद्भक्ति का सदुपदेश देकर सदाचरण में लगाए, उनकी सेवा में सदा तत्पर रहना।

सदा श्वेत और उज्ज्वल वस्त्र धारण करना।

अनिवार्य रूप से गले में पवित्र काष्ठ की कंठी धारण करना।


आवश्यकतानुसार यथा अवसर बोलना, मधुर भाषी तथा मित्र भाषी होना, मिथ्यालाप एवं वाद-विवाद नहीं करना, आवश्यकता होने पर मौन धारण करना।

संसार के सभी छोटे-बड़े प्राणियों पर समान दया दृष्टि रखना, सबको अपने ही शरीर एवं प्राण के समान समझना। अपने जीवन निर्वाह के लिए किसी जीव को दुख न देना।

जिज्ञासुजनों को भी सत्यपुरुष की सद्भक्ति तथा सत्य पथ दिखाना।

सत्यपुरुष को भोग लगाकर भोजन करना। शुद्ध और स्वच्छ सुलभ भोजन करना, स्वाद पर नियंत्रण करना।



मांसाहारी एवं मदिरा पान करने वाले की संगति से अलग रहना, चाहे वह गुण और पुण्य से पूर्ण क्यों न हो।

मादक पदार्थ का सेवन न करना।

सदा सत्य बोलना, सत्य में विश्वास करना, सच्चे जन की संगति करना, सत्यमार्ग पर चलना, सत्य आचरण करना। झूठ न बोलना, झूठा वचन न देना तथा झूठे से अलग रहना।

किसी को श्राप न देना, क्रोध नहीं करना, किसी का अहित चिंतन न करना तथा किसी को कुवचन नहीं कहना।

चोरी न करना, न चोरों का साथ देना, न उनका माल लेना, न उनके निकट जाना ही चाहिए।

जुआ न खेलना, मुखबिरी न करना। ये दुख के कारण हैं। जुआ, झूठ, चोरी, व्यभिचार एवं हिंसा परस्पर संबंध रखते हैं। एक दोष आने पर क्रमश: सब स्वयं ही आ जाते हैं।

निंदा, ईर्ष्या, छल-कपट, वैमनस्य आदि मुक्ति के शत्रु हैं।

अनैतिक उपार्जित धन एवं पर-नारी गमन विनाशकारी है।

सत्संग से सत्य, विचार, शील, दया, धीरज, विवेक, विराग, ज्ञान, निष्काम भक्ति, करुणा, समानता, संतोष, प्रेम भाव, क्षमा, त्याग तथा शांति आदि सद्गुणों को जाग्रत करें और काम, क्रोध, लोभ, मोह, ममता, अहंता, मान-बड़ाई, आशा-तृष्णा, मद, छल-कपट, निंदा, अपशब्द बोलना, झगड़ा, अमल, विषय वासना, निर्बल को सताना, वाद-विवाद आदि अवगुणों को त्यागें।

गुरु की शरणागति और आज्ञाकारिता परम तपस्या है।

किसी प्राणी को दुख देने से परमात्मा दुखी होते हैं।

आपके सभी कार्य परमात्मा देखते हैं, अत: जिसमें सत्यपुरुष-परमात्मा को प्रसन्नता हो वही कार्य करें।

परमात्मा का भय मुक्ति का चिन्ह है। मृत्यु निश्चित है, इसे सदा याद रखें। सद्भक्ति में आलस न करें।

Niyati Bhandari

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