आईए आपको मिलाते हैं अनोखे रोबोट से

Wednesday, May 23, 2018 - 10:52 AM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा

करोड़ों लोग अपना विश्लेषण कभी नहीं करते। मानसिक रूप से वे अपने परिवेश की उद्योगशाला में निर्मित यांत्रिक उपज हैं, जो नाश्ता करने, दोपहर और रात्रि के भोजन करने, कार्य करने और सोने में तथा मनोरंजन के लिए इधर-उधर घूमने में ही व्यस्त रहते हैं। 



वे नहीं जानते कि वे क्या खोज रहे हैं अथवा क्यों खोज रहे हैं और वे पूर्ण सुख और चिरस्थायी संतुष्टि कभी भी क्यों नहीं अनुभव कर पाते। आत्म-विश्लेषण की उपेक्षा करके लोग अपने परिवेश से बंधकर यंत्रमानव (रोबोट) बने रहते हैं। सच्चा आत्म-विश्लेषण उन्नति की महानतम कला है।



प्रत्येक व्यक्ति को अपना विश्लेषण निष्पक्ष भाव से करना सीखना चाहिए। अपने विचारों और प्रेरणाओं को प्रतिदिन लिखें। जान लें कि आप वास्तव में क्या हैं- न कि वह जो आप कल्पना करते हैं कि आप हैं। क्योंकि आप स्वयं को वैसा बनाना चाहते हैं जैसा आपको बनना चाहिए। अधिकतर लोग नहीं बदलते क्योंकि वे अपने दोषों को नहीं देखते।

आत्मा की उन्नति के लिए आत्म- विश्लेषण बहुत महत्वपूर्ण है। मान लें कि अनेक वर्षों से दुखांत साहित्य पढ़ना आपकी रुचि रही है और स्वाभाविक रूप से आप अनुभव करते हैं कि शेष जीवन भर इनको पढ़ते रहना आपको आनंददायक लगेगा। किंतु यदि आप अपना विश्लेषण करें और देखें कि इस प्रकार के साहित्य को लगातार पढ़ने से आप चिड़चिड़े बनते जा रहे हैं, तो आप प्रेरणादायक आध्यात्मिक पुस्तकें पढ़ने की नई आदत को अपनाना चाहेंगे।

ऐसा करके आप अपने को बदल सकते हैं परन्तु इसके बिना कोई भी वर्षों पुराने आदत के ढांचों को एक मिनट में नहीं बदल सकता है। किसी पुरानी आदत को जड़ से उखाड़ फैंकने के लिए आपको अपनी दृढ़ संकल्प की पूरी शक्ति लगाकर बुरी आदत के प्रभाव को तब तक निष्फल करते रहना होगा जब तक वह समाप्त न हो जाए। 

अधिकांश लोग पर्याप्त धैर्य नहीं रखते परन्तु प्रत्येक व्यक्ति को इस सत्य से प्रोत्साहित होना चाहिए कि जो कुछ भी आपने रचा है या किया है, आप उसे मिटा सकते हैं। जब आप विश्लेषण करते हैं कि आप क्या हैं, तो अपनी कमजोरियों को समाप्त करने की ओर जो आप बनना चाहते हैं, वह बनने की दृढ़ इच्छा रखें। अपनी कमजोरियों का पता चलने पर, जैसा कि सच्चे आत्म-विश्लेषण में प्राय: होता है, स्वयं को निराशा से ग्रस्त न होने दें।


सादा जीवन एवं उच्च विचार आपका लक्ष्य होना चाहिए। ध्यान एवं अपनी चेतना का, सदा रहने वाले, सदाचेतन, नित्य नवीन आनंद जोकि ईश्वर हैं, के साथ अनंतसंपर्क करके, अपने भीतर प्रसन्नता की सभी अवस्थाओं को बनाए रखना सीखें। आपकी प्रसन्नता किसी भी बाह्य परिस्थिति से कदापि प्रभावित नहीं होनी चाहिए। आपका परिवेश कैसा भी हो, उसे अपनी आंतरिक शांति को स्पर्श न करने दें।

अपना विश्लेषण करें, जैसा आपको होना चाहिए और जैसा आप बनना चाहते हैं वैसा ही स्वयं को बनाओ। लोग ऐसे कार्य करते हैं जो उनके उच्चतम कल्याण के लिए हानिकारक होते हैं और सोचते हैं कि वे स्वयं को सुखी बना रहे हैं परन्तु ऐसा नहीं है। आपको जिस कार्य को जब करना चाहिए उसे तब करना और जिसे आप जानते हैं कि इस कार्य को करना हानिकारक है, उससे बचना-यही वास्तविक सफलता और प्रसन्नता की कुंजियां हैं।

स्वयं को और अधिक अच्छा बनाने में आत्म-विश्लेषण भी आवश्यक है। यदि आप निर्भीक होकर स्वयं का विश्लेषण कर सकें तो आप दूसरों के द्वारा किया गया आलोचनात्मक विश्लेषण भी बिना झिझक के सहन करने योग्य हो जाएंगे।

क्या आपने कभी इस पेड़ को देखा है

Niyati Bhandari

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