मनचाही नौकरी दिलवाएगी ये सिफारिश, बेरोजगार हो जाएं सतर्क

punjabkesari.in Monday, Nov 21, 2016 - 01:10 PM (IST)

एक कारोबारी को अपनी कंपनी में किसी पद के लिए योग्य व्यक्ति की तलाश थी। इसके लिए उसने अखबारों में विज्ञापन दिया। इसके जवाब में लगभग 50 अभ्यर्थी साक्षात्कार के लिए आए। साक्षात्कार लेने के लिए खुद वह कारोबारी अपने एक मित्र के साथ बैठा।

 

साक्षात्कार प्रक्रिया के बाद कारोबारी ने उस पद के लिए एक ऐसे व्यक्ति का चयन किया, जो दिखने में बिल्कुल मामूली था। उसके पास कोई अतिरिक्त योग्यता भी नहीं थी। इस पर कारोबारी के मित्र ने उससे पूछा, ‘‘यहां साक्षात्कार देने के लिए लोग बड़ी-बड़ी डिग्रियां और सिफारिशें लेकर आए लेकिन तुमने सबको खारिज कर दिया। आखिर तुमने एक ऐसे व्यक्ति को क्यों चुना, जिसके पास न तो कोई खास योग्यता है और न ही वह कोई सिफारिशी खत लेकर आया। किसी ने उसके पक्ष में कुछ नहीं कहा है।’’ 


इस पर कारोबारी ने कहा कि तुम गलत समझ रहे हो। कई बातों ने उसकी सिफारिश की है। जब वह साक्षात्कार के लिए आया तो उसने सलीके से पैरदान से अपने पैर पोंछे, इसके बाद कमरे में दाखिल हुआ। कमरे में दाखिल होते ही उसने हौले-से दरवाजा बंद भी किया। इससे पता चला कि वह कितना सलीकेदार है। वह साक्षात्कार देने आए एक विकलांग प्रत्याशी के लिए फौरन अपनी सीट छोड़ उठ खड़ा हुआ। इससे जाहिर हुआ कि वह दूसरों का ख्याल रखने वाला है। फर्श पर पड़ी पुस्तक को उसने सावधानी से उठाया और मेरी मेज पर रखा, जबकि दूसरे अभ्यर्थी इसके प्रति लापरवाह बने रहे।  


मैंने देखा कि उसके वस्त्र साफ-सुथरे थे और दांत दूध की तरह सफेद व चमकीले थे। इससे पता चला कि वह पान, तंबाकू, शराब इत्यादि का सेवन नहीं करता होगा। उसने अंदर आने के लिए धक्का-मुक्की या गड़बड़ी नहीं की और शांतिपूर्वक अपनी बारी की प्रतीक्षा करता रहा। सद्व्यवहार के ये शिष्ट कार्य और आदतें हजारों सिफारिशी खतों पर भारी हैं। मैं किसी को 10 मिनट सावधानीपूर्वक देखकर उसके चरित्र को पहचान सकता हूं, जितना कोई भी सिफारिशी खत उसके विषय में स्पष्ट नहीं कर सकता।


सार यह है कि मनुष्य की श्रेष्ठता और उच्चता उसके व्यवहार से अपने आप प्रकट होती रहती है। हमारी आदतें ही हमारी आंतरिक श्रेष्ठता स्पष्ट करती हैं।

 


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