Jhulelal Jayanti: आज है साईं ‘झूले लाल’ की 1073वीं जयंती, पढ़ें अवतरण कथा

Thursday, Mar 23, 2023 - 06:55 AM (IST)

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Jhulelal Jayanti 2023: सिरायकी (बहावलपुरी, मुलतानी, झांगी एवं सिंधी) समाज के पूजनीय देवता साईं झूले लाल जी, जिन्हें वरुण देवता का अवतार भी कहा जाता है, की 1073वीं जयंती इस वर्ष 23 मार्च को मनाई जाएगी। विक्रमी सम्वत् 1007 चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को शुक्रवार के दिन नसरपुर गांव के संत रतन राय जी के घर माता देवकी जी की कोख से एक बालक ने जन्म लिया। बालक के जन्म लगन निकाल कर उनका नाम उदयचंद रख दिया परंतु कुछ दिनों बाद उदयचंद ने अपना मुंह बंद कर लिया और दूध पीना छोड़ दिया।


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Sai Jhulelals Brief Story:
माता देवकी ने बुजुर्गों के साथ बात की तो उन्होंने सलाह दी कि थोड़े से चावल, गुड़ और आटा सिंध दरिया में डालें तथा उस दरिया का पानी बालक के मुंह को लगाएं। माता ने जब बालक के मुंह में पानी डालने के लिए मुंह खोला तो अपने होश गंवा बैठीं। उदयचंद के मुंह में दरिया बह रहा था। दरिया में रहने वाले जीव-जंतु इधर-उधर चल फिर रहे थे। मां ने सारा नजारा विद्वानों को सुनाया तो उन्होंने कहा, ‘‘आपका पुत्र साक्षात वरुण (पानी) देवता का अवतार है। इस बालक को आज से ‘उडेरो लाल’ के नाम से पुकारा करें।’’

डेढ़ वर्ष की आयु में ‘उडेरो लाल’ का मुंडन संस्कार करवाया गया। 5 वर्ष की उम्र में पिता संत रतन राय ने पढ़ने के लिए पाठशाला में भेजना शुरू किया और आठवें वर्ष में ‘उडेरो लाल जी’ को गुरु गोरखनाथ जी से जनेऊ संस्कार करवा कर गुरु दीक्षा दिलाई गई।
रीति-रिवाजों के अनुसार दूसरे दिन अपनी कमाई का कुछ हिस्सा परिवार की कमाई में डालने के लिए ‘उडेरो लाल जी’ को मां ने कुंवल (चने) उबाल कर एक थाल में डाल कर बेचने के लिए बाजार में भेजा। उन्होंने माता देवकी द्वारा दिए सारे के सारे कुंवलों का थाल सिंध दरिया में बहा दिया और खाली थाल को झोली में रख कर किनारे बैठ गए। जब घर जाने की तैयारी करने लगे तो झोली में रखे खाली थाल को चांदी के सिक्कों से भरा हुआ पाया। मां चांदी भरे थाल को देख कर अति प्रसन्न हुईं।

माता दो-तीन दिन ऐसे ही कुंवल उबाल कर ‘उडेरो लाल’ को देतीं और वापसी पर चांदी भर थाल सहित बालक को घर पर देखतीं। एक दिन उनके पिता ने पीछा किया और शाम को जब दरिया में से भगवान वरुण जी को बाहर निकलते और थाल में चांदी के सिक्के डालते देखा, वह हक्के-बक्के रह गए। अपने पुत्र ‘उडेरो लाल’ को साक्षात भगवान वरुण देवता का अवतार देख कर नमस्कार करने लगे और जोर-जोर से आवाजें लगाने लगे ‘जय जय उडेरो लाल, जय-जय झूले लाल।’


उसी दिन से ‘उडेरो लाल जी’ अपने चचेरे भाई पुंगर राय को साथ लेकर जल और ज्योति की महिमा का प्रचार करने निकल पड़े। जहां भी जाते साईं झूले लाल की जय-जयकार होने लगी। जब यह समाचार सिंध के राजा मृखशाह को मिला कि नसरपुर के ‘उदय चंद’ वरुण देवता के रूप में पैदा हो चुके हैं और सभी हिन्दू उनके बताए अनुसार जल और ज्योति की पूजा करने लगे हैं तो गुस्साए मृखशाह ने अपने पैरोकारों को झूले लाल को मारने के लिए भेज दिया।

झूले लाल जी की महिमा देख उनकी हिम्मत न पड़ी और वे भी उनकी महिमा के गीत गाने लगे। मृखशाह ने देखा कि लोगों का जल और ज्योति में विश्वास बढ़ता जा रहा है, ऐसा न हो कि उसका अपना वजूद भी खतरे में पड़ जाए और लोग उसके खिलाफ हो जाएं। चाल चलते हुए सिंध दरिया के टापू बक्खर में उन्हें रहने के लिए जगह दे दी। इसी टापू पर एक बार सौदागर साई परमानंद की किश्ती को डूबते देख झूले लाल ने अपना कंधा देकर किनारे लगा दिया।

परमानंद ने खुश होकर उसी टापू में साईं झूले लाल जी को ‘जिंदा पीर’ का खिताब दिया और जल एवं ज्योति की महिमा को प्रचार करने के लिए ‘जिन्दा पीर मंदिर’ बनवाकर दिया। यह मंदिर आज भी बक्खर (पाकिस्तान) में मौजूद है और हर वर्ष सावन के महीने वहां बहुत बड़ा मेला लगता है। समुद्र में आए ज्वारभाटा के कारण पानी की उछाल जब ‘जिंदा पीर मंदिर’ की नींव को छूती है तो ज्वारभाटा शांत हो जाता है।

साईं झूले लाल जी ने अपने चचेरे पुत्र ठाकुर पुंगर राय को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर उन्हें अपने दिव्य स्वरूप वरुण देवता के दर्शन कराए और उन्हें ‘जल और ज्योति’ की प्रथा से धर्म प्रचार की जिम्मेदारी सौंप कर विक्रमी सम्वत् 1020 भाद्रपद की चतुर्दशी को गांव ‘जीहेजन’ में अपना शरीर त्याग दिया। इस प्रकार अपना अवतारी कार्य पूरा करके वह मात्र 13 वर्ष की उम्र में अमर लाल हो गए। 

 

Niyati Bhandari

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