Jain Symbol: मंगलकारी जीवन व्यतीत करना चाहते हैं तो समझें जैन प्रतीक का अर्थ

Friday, Nov 25, 2022 - 11:11 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Jain Symbol: भारत की सभी सांस्कृतिक परम्पराओं में पाताल से लेकर आकाश के उस अंतिम भाग तक के विस्तृत प्रदेश को त्रिलोक कहा जाता है, जहां तक धरती के जीवों की गति है। जैन परम्परा इसी त्रिलोक को लोक कहती है और उसका स्वरूप कमर पर दोनों हाथ रख कर खड़े हुए पुरुष के समान मानती है। 

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प्रस्तुत प्रतीक का बाह्यकार उसी लोक की प्रतिकृति है। इस लोक प्रतिकृति को शास्त्रकार मंगलकारी मानते हैं। इस लोकाकार प्रतिकृति के बीच में जो हाथ है, वह अभय का सूचक है। जैन संस्कृति अभय-दान को सर्वोत्तम कर्म बतलाती है। हाथ के बीच बना चक्र धर्म चक्र है, जो अहिंसा की धुरी पर अवस्थित है। चक्र में 24 अरे हैं, जो चौबीस दंडकों के प्रतिरूप हैं। हाथ के ऊपर स्वस्तिक है। स्वस्तिक का चिन्ह जैन संस्कृति में ही नहीं, विश्व की अधिकांश संस्कृतियों में मंगलचिन्ह के रूप में स्वीकृत किया गया है। 

इसकी चार रेखाएं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के रूप में जीवन की पूर्णता एवं लक्ष्य का परिचय तो देती ही हैं, साथ ही जीवन की चार गतियों के आवागमन की भी सूचक हैं। स्वस्तिक के ऊपर तीन बिंदू हैं जो त्रिरत्न अर्थात सम्यक्-ज्ञान, सम्यक-दर्शन और सम्यक-चरित्र का प्रतिनिधित्व करते हुए संदेश देते हैं कि भली प्रकार देखो, भली प्रकार जानो और भला आचरण करो।

तीन बिंदुओं के ऊपर अंकित चंद्राकार चिन्ह उस स्थान का परिचायक है, जो लोक के अंतिम छोर पर अवस्थित है और जहां मुक्तात्माएं निवास करती हैं, जिसे जैन परम्परा सिद्धशिला कहती है। सबसे ऊपर दिया गया एक बिंदू मुक्त आत्मा का प्रतिरूप है। प्रतीक के नीचे लिखा है ‘परस्परोपग्रहो जीवानाम्’, जिसका अर्थ है जीवों का परस्पर उपकार।

इस प्रकार यह प्रतीक हमें समग्र रूप में यह संदेश देता है कि परस्पर एक-दूसरे का उपकार करते हुए जो व्यक्ति अहिंसा मूलक धर्म का आचरण करता हुआ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष से सम्पन्न मंगलकारी जीवन व्यतीत करता है, वह चार गतियों में ही सम्यक्-दर्शन, सम्यक-ज्ञान और सम्यक-चरित्र का आधार लेकर मोक्ष प्राप्त करके मुक्तात्मा अर्थात परमात्मा बन सकता है। इस प्रकार यह प्रतीक शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का बोधक मंगलकारी चिन्ह है, जिसका प्रयोग हमें प्रत्येक व्यवहार में करना चाहिए।

 

Nitika

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