जैन धर्म दर्शन का ‘क-ख-ग’ नवकार महामंत्र, दुखियारों के करता है दुख दूर

Tuesday, Jan 24, 2017 - 11:38 AM (IST)

सभी धर्मों में मंत्र जप को वरीयता दी गई है। सबने मंत्रों की उपादेयता और अनिवार्यता को स्वीकारा है। भारतीय संस्कृति में ध्वनि की क्षमता को सूक्ष्म और शक्तिशाली रूप मंत्र कहा गया है। ‘मंत्र योग’ के नाम से मंत्र स्वयं में एक संपूर्ण योग के रूप में प्रतिष्ठित है। आगम तथा आगम पश्चात धार्मिक ग्रंथों में बहुत जगह शुभ कल्याणकारी नवकार महामंत्र का वर्णन आता है। इसे जैन धर्म दर्शन का क, ख, ग समझा जाता है। नवकार महामंत्र में पंच परमेष्ठियों का अधिष्ठान है। वह किसी व्यक्ति विशेष से संबंधित नहीं है। किसी भी जाति का व्यक्ति स्मरण, गुणगान कर सकता है। इसमें सनातन सत्य स्वरूप अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु को नमन करने का विधान है। आत्मा के उर्द्वीकरण की प्रक्रिया इसी मंत्र से प्रारंभ होती है।


वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में नवकार महामंत्र की अर्थवत्ता इसलिए बढ़ जाती है कि यह महामंत्र आत्मा की श्रेष्ठता को प्रकट करने वाला महामंत्र है। नवकार महामंत्र की तहों में हमें चमत्कारों से हटकर वैज्ञानिकताओं का अनुसंधान करना चाहिए। निष्काम भाव से इस मंत्र की आराधना साधक को करनी चाहिए। मंत्र विधिवत हो तो सिद्ध होता है, साधक और साध्य पर उसकी सफलता निर्भर है। मंत्र तभी सफल होता है जब श्रद्धा, इच्छा और दृढ़ संकल्प ये तीनों ही यथावत कार्य करते हैं। 


श्रद्धापूर्वक नवकार महामंत्र की जपाकार तरंगों के द्वारा हमारी प्राणधारा, हमारी ऊर्जा भीतर की तैजस ऊर्जा तक पहुंच जाती हैं। ऊर्जा के वहां तक पहुंचने पर ही मंत्र का जागरण होता है। शुद्ध भावना से नवकार महामंत्र का जाप करने से निर्मल हृदय पर परमात्मा का (दिव्यता) प्रतिबिंब पड़े बिना नहीं रह सकता और साधक एक दिन अपना चरम लक्ष्य (मोक्ष) प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है। एकाग्रता को मंत्र साधना का प्राणतत्व कहा जा सकता है। महामंत्र द्वारा सबल आभा मंडल का निर्माण भी किया जा सकता है।


नवकार महामंत्र के प्रत्येक पद के प्रारंभ में एवं अंत में ‘ण’ वर्ण आया है जिसका उच्चारण चित्त को स्थिरता प्रदान करता है। नवकार महामंत्र के विधिपूर्वक मंत्रोच्चारण से अत्यधिक ध्वनि ऊर्जा प्रस्फुटित होती है, जिससे आत्मा के कर्मबंधन कट जाते हैं तथा आत्मा अपने सम्पूर्ण गौरव से प्रकाशमान हो जाती है। इन्हीं विकीर्ण ऊर्जाओं की क्षमता के अनुसार साधक क्षणिक और स्थायी, दोनों प्रकार के लाभों को प्राप्त करता है। क्षणिक लाभ हैं- धन, सत्ता, स्वास्थ्य, सुयश, स्वर्ग और स्थायी लाभ हैं- विविध प्रकार की भौतिक अभिसिद्धियों की प्राप्ति, आत्मशुद्धि तथा आत्मशांति की प्राप्ति। नवकार महामंत्र विवेक एवं चातुर्य का ज्ञान भी कराता है।


नवकार महामंत्र का अनुयायी बुद्धि, विवेक व सूझ-बूझ का उपयोग करता है। नवकार महामंत्र के एकनिष्ठ साधक-आराधक विश्व संत उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. को ‘नवकार महामंत्र के महान आराधक ’ के नाम से जाना जाता है। उपाध्याय श्री ने नवकार की सतत् आराधना से समाज को एकता का संदेश दिया और उनका जीवन भी एकता को समर्पित रहा। नवकार महामंत्र की आराधना के द्वारा उन्होंने लोगों को परिश्रम और पुरुषार्थ को संदेश दिया। प्रतिदिन प्रात:, मध्याह्न और रात्रि में नवकार महामंत्र का जाप करने के पश्चात मंगलपाठ श्रवण करने हेतु उस शहर, नगर, गांव में मानो जनता का समूह दौड़-दौड़ कर आपश्री के पास आता और आप सिंह जैसी गर्जन आवाज में मंगलपाठ सुनाते और दुखियारों के दुख दूर हो जाते थे।

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