Shri jagannath rath yatra: चौंका देंगे जगन्नाथ पुरी मंदिर से जुड़े ये रोचक तथ्य

Friday, Sep 02, 2022 - 08:42 AM (IST)

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Shri jagannath rath yatra 2022: धरती का बैकुंठ जगन्नाथ पुरी उड़ीसा राज्य के समुद्री किनारे पर बसा है। पुरी उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से थोड़ी दूरी पर स्थित है। यह स्थान हिन्दुओं की आस्था का केंद्र है। सप्त पुरियों में से एक मंदिर यह भी है जो 10वीं शताब्दी में बनाया गया है। यह मंदिर भगवान विष्णु के 8वें अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। मंदिर से संबंधित कुछ रोचक और आश्चर्यजनक तथ्य हैं जिनके बारे में कुछ लोग ही जानते हैं। आइए जानें इनके बारे में-

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भगवान जगन्नाथ का अद्भुत स्वरूप पुरी के अतिरिक्त कहीं ओर देखने को नहीं मिलता। इनकी प्रतिमाएं नीम की लकड़ी से बनी हुई हैं। कहा जाता है कि यह एक बाहरी खोल मात्र होता है। इसके भीतर स्वयं भगवान श्री कृष्‍ण उपस्थित होते हैं।

मंदिर की चोटी पर ध्वजा सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। 



पुरी में कहीं से भी देखने पर मंदिर के ऊपर लगा सुदर्शन चक्र सदैव अपने सामने ही नजर आएगा। इसे नील चक्र भी कहा जाता है। यह अष्टधातु का बना है।

मंदिर में प्रसाद को विशेष तरीके से बनाया जाता है। इसे बनाने के लिए 7 बर्तनों को एक-दूसरे के ऊपर रखा जाता है, फिर लकड़ी जलाकर प्रसाद को बनाया जाता है। सबसे ऊपर वाले बर्तन का प्रसाद पहले पकता है, फिर उसके बाद क्रमवार नाचे वाले बर्तनों का पकता है। 

समुद्र किनारे दिन के समय हवा जमीन की ओर एवं रात को इसके विपरीत चलती है परंतु पुरी में इसका उलटा होता है।

मुख्य गुंबद की छाया जमीन पर नहीं पड़ती।



कहा जाता है कि मंदिर में हजारों के लिए बना प्रसाद लाखों भक्त कर सकते हैं, फिर भी प्रसाद की कमी नहीं होती है। सारा साल भंडारे भरे रहते हैं।

यहां की हैरानीजनक बात यह है कि मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी या जहाज उड़ता हुआ नहीं देखा गया। जबकि अन्य मंदिरों पर पक्षियों को बैठे हुए देखा जाता है।

मंदिर के सिंहद्वार में कदम रखते ही सागर की लहरों की ध्वनि सुनाई नहीं देती परंतु बाहर आते ही ये आवाजें स्पष्ट रूप से सुनाई देती हैं।


मंदिर के 45 मंजिला चोटी पर लगे ध्वज को प्रतिदिन बदला जाता है। माना जाता है कि यदि इस ध्वज को एक भी दिन न बदला गया तो मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा।  

यहां विश्व का सबसे बड़ा रसोईघर है। इसमें भगवान जगन्नाथ को अर्पित करने वाले प्रसाद को 500 रसोईए और 300 सहयोगियों द्वारा बनाया जाता है। 

कुछ  इतिहासकारों का मानना है कि पहले इस मंदिर की जगह एक बौद्ध स्तूप था। जिसमें गौतम बुद्ध का एक दांत रखा गया था। बाद में इसे कैंडी, श्रीलंका भेज दिया गया। जब जगन्नाथ अर्चना ने प्रसिद्धि प्राप्त की थी उस काल में इस धर्म को वैष्णव सम्प्रदाय ने अपना लिया था। ये 10 वीं शताब्दी में हुआ जब उड़ीसा में सोमवंशी राज्य था।

सिख सम्राट महाराजा रणजीत सिंह ने स्वर्ण मंदिर, अमृतसर को दिए स्वर्ण से भी अधिक सोना इस मंदिर को दान किया था। उन्होंने अपने अंतिम दिनों में यह वसीयत भी की थी कि विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा, जो कि दुनिया का सबसे अनमोल और सबसे बड़ा हीरा है, मंदिर को दान कर दिया जाए। उस समय ब्रिटिशों द्वारा पंजाब में अधिकार करने से सारी संपत्ति अपने अधिकृत करने के कारण ऐसा नहीं हुआ।

Niyati Bhandari

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