धन और बल से जीवन और मृत्यु को नियंत्रित करना संभव नहीं

punjabkesari.in Saturday, Dec 07, 2024 - 06:23 AM (IST)

पिछले दिनों अमरीका के एक अरबपति ब्रायन जॉनसन के भारत आने की चर्चा थी। उसका आना कोई विशेष घटना नहीं थी बल्कि यह था कि यह अपने को 18 वर्ष की आयु का ही रखना चाहता है चाहे उसकी वास्तविक उम्र कितनी भी हो। अभी वह 60-70 के आसपास होगा। अब क्योंकि वह बहुत अमीर है तो सभी तरह के साधन उसके पास हैं। वह चिरयुवा बने रहने के लिए लगभग 20 करोड़ रुपए हर साल खर्च करता है। खाना-पीना सब कुछ एकदम नियंत्रित, नापतोल और कब क्या लेना है उसका पूरा चार्ट, पालन करने को कर्मचारियों की फौज। सुबह 11 बजे दिन का अंतिम भोजन, उसके बाद 100 के आसपास गोलियां खाना। नियत समय पर नियंत्रित वातावरण में जिसमें रोशनी से लेकर बिस्तर तक का आकार और उसकी बनावट शामिल है, नपी तुली नींद, जो आती है या नहीं, वही जाने क्योंकि वह अकेला सोता है।

चिरंजीवी व्यक्ति : हिंदू शास्त्रों के अनुसार चिरंजीवी या अमर अर्थात् जिनकी न मृत्यु हुई और न होगी, उनमें रामभक्त हनुमान, परशुराम, अश्वत्थामा, विभीषण, ऋषि व्यास, दैत्य राज बाली, गुरु कृपाचार्य, ऋषि मार्कण्डेय हैं। कहते हैं कि ये सभी पृथ्वी पर कहीं न कहीं वास कर रहे हैं। अनेक कथाएं इनके देखे जाने की भी सुनने को मिलती हैं जो एक प्रकार से किंवदंतियां हैं जिनका कोई प्रमाण नहीं मिलता। सबसे अधिक हनुमान जी के देखे जाने की कथाएं हैं।

बजरंगबली के भक्त सबसे अधिक होंगे और उनमें से प्रत्येक उनके प्रकट होने या साक्षात दर्शन देने के अनुभव सुना सकता है। होता यह है कि हर कोई अपने आराध्य की छवि मन में गढ़ लेता है, किसी भी मुसीबत के समय उसका स्मरण करता है। परेशानी से बाहर निकल गया तब उनकी कृपा और नहीं निकल पाया और फंस गया तब भाग्य का दोष। जो धैर्य से सोच-विचार कर अपनी भूल या गलती ढूंढने का प्रयास करता है वह निश्चित रूप से किसी भी संकट से जूझते हुए बाहर निकल ही आता है। 

बुढ़ापे के बदले जवानी : चलिए एक पौराणिक कथा का आनंद लेते हैं जिसका वर्णन हमारे अनेक ग्रंथों में हुआ है। छ: इंद्रियों की भांति राजा नहुष के 6 पुत्र, यति, ययाति, संयाति, आयति, वियति और कृति। नहुष बड़े पुत्र यति को राज्य देना चाहते थे लेकिन उसने स्वीकार नहीं किया क्योंकि उसका कहना था कि राज्य ऐसी वस्तु है जिसमें अपने आत्मस्वरूप को नहीं समझा जा सकता अर्थात् राजकाज में बहुत दांव-पेच होते हैं। अब हुआ यह कि नहुष ने इंद्र की पत्नी शची से बलात्कार करने की चेष्टा की तो ब्राह्मण वर्ग ने उसे इन्द्रपद से हटाकर श्राप दिया कि वह अजगर बन जाए। उसके बाद ययाति राजा बना। उसने अपने चारों भाइयों को चार दिशाओं में नियुक्त कर दिया और शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी से विवाह कर लिया।

इसी के साथ उसने दैत्यराज वृष पर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा से अवैध संबंध बना लिए और फिर उसे भी पत्नी बना लिया। यह कैसे हुआ इसकी भी कथा है। हुआ यह था कि देवयानी और शर्मिष्ठा अपनी सखियों के साथ वस्त्र उतारकर सरोवर में जलक्रीड़ा कर रही थीं कि शंकर पार्वती वहां आ गए, उन्हें देखकर सब घबरा गईं और गलती से शर्मिष्ठा ने देवयानी के वस्त्र पहन लिए। दोनों में कलह हो गई और शर्मिष्ठा ने देवयानी के कपड़े छीनकर उसे कुएं में धकेल दिया और घर चली गई। 

ययाति शिकार खेलते हुए वहां पहुंचे और पानी पीने के लिए कुएं के पास आए तो वहां देवयानी को नग्न अवस्था में देखा। अपना दुपट्टा फैंक कर हाथ पकड़कर बाहर निकाला। दोनों में प्रेम हो गया। देवयानी अपने पिता के पास गई और शर्मिष्ठा के बारे में बताया। पिता से वचन लिया कि जिस के साथ उसका विवाह होगा, शर्मिष्ठा दासी बनकर जाएगी। अब जब ययाति से देवयानी का विवाह हो गया तो शर्मिष्ठा भी दासी के रूप में मिली। ययाति की कामुकता जाग उठी और उसने दासी शर्मिष्ठा से संबंध बना लिए। दोनों गर्भवती हो गईं। देवयानी को पता चला तो वह क्रोध में घर छोड़कर पिता के पास चली गई। ययाति पीछे से वहां पहुंचे तो शुक्राचार्य ने उसे लंपट, व्यभिचारी कहकर तुरंत बूढ़े होने का श्राप दे दिया। 

ययाति ने कहा कि अभी वासना मिटी नहीं है और अब वह अपनी पत्नी से भी संबंध नहीं बना सकेगा। यह देखकर शुक्राचार्य ने कहा कि जो तुझे अपनी जवानी दे उससे अपना बुढ़ापा बदल सकता है। ययाति ने अपने बड़े पुत्रों से एक-एक करके पूछा और कहा कि वे अपने नाना के श्राप के कारण उसके बुढ़ापे से अपनी जवानी बदल लें। कोई राजी नहीं हुआ पर सबसे छोटा पुत्र पुरु जो सबसे अधिक गुणी था, उसने पिता की आज्ञा मानकर अपने यौवन का बलिदान कर बुढ़ापा स्वीकार कर लिया। 

कहते हैं कि ययाति ने हजार वर्ष तक विषय भोग में लिप्त रहकर चक्रवर्ती सम्राट के रूप में राज किया। एक दिन उसे वैराग्य हुआ। इस क्रम में उसका बुढ़ापा झेल रहे पुत्र पुरु को उसकी जवानी लौटा दी और उसे राजा बनाकर अपनी दोनों पत्नियों के साथ वन चले गए। वहां शरीर नष्ट होने दिया और मानव शरीर से मुक्ति पाई। यह शृंखला पुरु के वंशजों, राजा दुष्यंत और राजा भरत तक जाती है जिनके नाम पर हमारा देश भारत वर्ष कहलाता है।

आधुनिकता और विज्ञान : आज का युग वैज्ञानिक सोच का है। विज्ञान ने ऐसी चीजों को सिद्ध किया है और कल्पना करते ही सामने प्रस्तुत भी किया है जिनके सामने बुद्धि चकरघिन्नी बन जाए। लेकिन आजतक कोई भी किसी की आयु की गणना नहीं कर पाया है। -पूरन चंद सरीन


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