श्रीमद्भगवद्गीता: बिना ब्रह्मचर्य के आध्यात्मिक जीवन में उन्नति कर पाना है अत्यंत कठिन

Monday, Mar 19, 2018 - 01:01 PM (IST)

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप
व्याख्याकार: स्वामी प्रभुपाद 
अध्याय 8: भगवत्प्राप्ति

यदक्षरं वेदविदो वदन्ति विशन्ति यद्यतयो वीतरागा:।
यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं  संग्रहेण प्रवक्ष्ये।।11।।


अनुवाद एवं तात्पर्य: जो वेदों के ज्ञाता हैं, जो ओंकार का उच्चारण करते हैं और जो संन्यास आश्रम के बड़े-बड़े मुनि हैं, वे ब्रह्म में प्रवेश करते हैं। ऐसी सिद्धि की इच्छा करने वाले ब्रह्मचर्य व्रत का अभ्यास करते हैं। अब मैं तुम्हें वह विधि बताऊंगा जिससे कोई भी व्यक्ति मुक्ति लाभ कर सकता है।


श्रीकृष्ण अर्जुन के लिए षटचक्रयोग की विधि का अनुमोदन कर चुके हैं, जिसमें प्राण को भौंहों के मध्य स्थिर करना होता है। यह मानकर कि हो सकता  है अर्जुन को षटचक्रयोग अभ्यास न आता हो, कृष्ण अगले श्लकों में इसकी विधि बताते हैं। भगवान कहते हैं कि ब्रह्म यद्यपि अद्वितीय है, किन्तु उसके अनेक स्वरूप होते हैं। विशेषतया निॢवशेषवादियों के लिए अक्षर या ओंकार तथा ब्रह्म दोनों एकरूप हैं। कृष्ण यहां पर निॢवशेष ब्रह्म के विषय में बता रहे हैं जिसमें संन्यासी प्रवेश करते हैं।


ज्ञान की वैदिक पद्धति में छात्रों को प्रारंभ से गुरु के पास रहने से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए ओंकार का उच्चारण तथा परम निर्विशेष ब्रह्म की शिक्षा दी जाती है। इस प्रकार वे ब्रह्म के दो स्वरूपों से परिचित होते हैं।


यह प्रथा छात्रों के आध्यात्मिक जीवन के विकास के लिए अत्यावश्यक है, किन्तु इस समय ऐसा ब्रह्मचारी जीवन (अविवाहित जीवन) बिता पाना बिल्कुल संभव नहीं है। विश्व का सामाजिक ढांचा इतना बदल चुका है कि छात्र जीवन के प्रारंभ से ब्रह्मचर्य जीवन बिताना संभव नहीं है।


यद्यपि विश्व में ज्ञान की विभिन्न शाखाओं के लिए अनेक संस्थाएं हैं, किन्तु ऐसी मान्यता प्राप्त एक भी संस्था नहीं है जहां ब्रह्मचारी सिद्धांतों में शिक्षा प्रदान की जा सके। बिना ब्रह्मचर्य के आध्यात्मिक जीवन में उन्नति कर पाना अत्यंत कठिन है। अत: इस कलियुग के लिए शास्त्रों के आदेशानुसार भगवान चैतन्य ने घोषणा की है कि भगवान कृष्ण के पवित्र नाम-हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे-के जप के अतिरिक्त परमेश्वर के साक्षात्कार का कोई अन्य उपाय नहीं है।

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