Kundli Tv- क्या जग को तारने वाले भगवान शंकर हैं त्याग के देवता?

Monday, Aug 13, 2018 - 10:32 AM (IST)

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सावन माह में भगवान शंकर के पूजन का अधिक महत्व माना जाता है। इस माह में लोग बढ़ चढ़कर शिव जी की पूजा में शामिल होते हैं। लेकिन सावन का माह हो या कोई अन्य त्योहार भोलेनाथ की अाराधना करने से पहले हर किसी को यह पता होना चाहिए कि आख़िर उन्हें देवाधिदेव महादेव क्यों कहा जाता है। जब हम इस बात पर गरहाई से सोच-विचार करेंगे, तब ही हम भगवान शंकर के सहज और सरल स्वभाव को समझ पाएंगे कि उनकी पूजा केवल स्थाई सुख के लिए ही नहीं बल्कि आंतरिक सुख के लिए की जाए तो श्रेष्ठ होता है। 

कहा जाता है कि समस्त देवी-देवताओं में से सिर्फ भगवान शंकर ही ऐसे देवता हैं, जो अपने भक्तों को सिर पर बैठाते हैं। इसकी उदाहरण है भगवान का शिवलिंग स्वरूप। जिसके ऊपर जल, अक्षत, फूल और बिल्प पत्र आदि चढ़ाए जाते हैं। 

शिव पुराण के अनुसार महादेव एक मात्र एेसे देव हैं जो थोड़े से जल और बेलपत्र आदि से प्रसन्न हो जाते हैं। कहा जाता है कि जल चढ़ाने का आशय मन की तरलता से भी लिया जाना चाहिए। महादेव के पुत्र भगवान गणेश भी इन्हीं गुणों की वजह से प्रथम देव बन गए।

भारी-भरकम व्यक्तित्व के बावजूद उन्होंने अपना वाहन एक चूहे को बनाया। जबकि सामाजिक जीवन में भारी-भरकम ओहदे वाला व्यक्ति भारी-भरकम वाहन और काफिले के साथ आता जाता है। गणेश जी भी सिर्फ दूध चढ़ाने से प्रसन्न होते हैं। महादेव की अर्धांगिनी माता पार्वती भी स्तुति में दो अच्छे शब्द बोलने से ही प्रसन्न होती हैं। अमरकथा सुनाने की जब बारी आई, तो महादेव ने सब कुछ त्याग दिया। इसका निहतार्थ यही है कि रसमय जीवन के लिए त्याग भी जरूरी है। भौतिक वस्तुओं के संग्रह में प्रायः जीवन का रस रिक्त हो जाता है।

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Jyoti

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