स्वयं पर विजय का मार्ग प्रशस्त करता है ‘योग’

Tuesday, Jun 21, 2022 - 06:07 PM (IST)

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वर्तमान युग में आधुनिक संसार योग विज्ञान के लाभों को अधिकाधिक स्वीकार कर रहा है। प्रत्येक वर्ष 21 जून को मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस इस तथ्य का प्रमाण है कि सभी राष्ट्रों में योग के प्रति एक विशेष आकर्षण विकसित हुआ है और इसे प्रासंगिक माना जाने लगा है। विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक पुस्तक ‘योगी कथामृत’ के लेखक श्री श्री परमहंस योगानंद ने विश्व को योग से संबंधित गूढ़ विषयों की शिक्षा प्रदान करने तथा इस तथ्य को प्रतिपादित करने में कि योगाभ्यास को केवल कुछेक देशों तक सीमित रखने की आवश्यकता नहीं, एक प्रमुख भूमिका निभाई है। 

अमरीका के लोग व्यापक रूप से उनकी शिक्षाओं के प्रति अत्यंत ग्रहणशील थे और उन्होंने उनका अनुसरण किया तथा वहां से अंतत: संसारके अन्य क्षेत्रों में उनकी ध्यान-योग की शिक्षाओं का प्रसार हुआ। योगानंद जी को वर्तमान में पाश्चात्य जगत में योग के जनक के रूप में पहचाना जाता है।

‘योग’ का शाब्दिक अर्थ है (ईश्वर के साथ)‘मिलन’। सभी संत इस तथ्य का समर्थन करते हैं कि परमात्मा के साथ यह मिलन प्रत्येक मनुष्य का स्वाभाविक एवं उच्चतर लक्ष्य है। हमें प्राकृतिक ढंग से उस लक्ष्य की ओर ले जाने वाला योग और उसका मार्ग, अर्थात् ध्यान का अभ्यास, एकमात्र वह उपाय है जिसके द्वारा मनुष्य सर्वशक्तिमान ईश्वर के खुद को निकट अनुभव कर सकता है।

आज सम्पूर्ण विश्व के लाखों सामान्य लोगों को यह बोध हो रहा है कि योग केवल शारीरिक व्यायाम ही नहीं अपितु वास्तव में आंतरिक विजय का एक मार्ग प्रशस्त करता है, जिसके माध्यम से अंतत: ईश्वर-साक्षात्कार के लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है। सभी महान संतों के अनुसार जो व्यक्ति अद्वितीय ऋषि पतंजलि द्वारा उनकी पुस्तक में प्रतिपादित ‘अष्टांग योग मार्ग’ का अनुसरण करता है, वह निश्चय ही अंतिम लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। श्रीमद्भगवद्गीता में विशेष रूप से ‘क्रियायोग’ का उल्लेख किया गया है तथा इसके अतिरिक्त उसमें इस बात पर भी बल दिया गया है कि एक योगी महानतम् आध्यात्मिक योद्धा होता है और यदि वह दृढ़तापूर्वक योगाभ्यास को जारी रखता है तो अंतत: ईश्वर को प्राप्त कर लेगा।
 
योगानंद जी ने योग की विशिष्ट शाखा ‘क्रियायोग’ पर प्रकाश डाला और शिक्षाओं के माध्यम से विश्व को उससे परिचित कराया। ‘क्रियायोग’ एक सरल मनोदैहिक पद्धति है, जिसके द्वारा मनुष्य का रक्त कार्बन रहित हो जाता है और ऑक्सीजन से पूर्ण हो जाता है परन्तु ‘क्रियायोग’ का सच्चा लाभ उसके आध्यात्मिक महत्व में निहित है, क्योंकि नियमित रूप से इसका अभ्यास करने वाला व्यक्ति आत्म साक्षात्कार के मार्ग पर तीव्र गति से प्रगति करता है। —निशीथ जोशी
 

Jyoti

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