बलराम जी की पत्नी रेवती से जुडा ये किस्सा जानते हैं आप!

Sunday, Aug 09, 2020 - 11:08 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
आज यानि भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को श्री कृष्ण के भैया दाऊ को समर्पित बलराम जयंती मनाई जाएगी। कहा जाता है कि इस दिन इनकी पूजा से योग्य संतान की प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है। शास्त्रों की बात करें तो इसमें श्री कृष्ण के साथ साथ बलराम जी के बारे में उल्लेख मिलता है। किंतु हम में अधिकतर लोग केवल श्री कृष्ण की लीलाओं के बारे में जानते हैं, बहुत कम लोग हैं जिन्हें श्री कृष्ण के प्यारे भैया से संबंधित जानकारी है। तो चलिए आज बलराम जयंती के मौके पर जानते हैंक बलराम जी के जीवन से जुड़े ऐसे रहस्य, जिसके बारे में शायद हर श्री कृष्ण को पता होना चाहिए।  

अपनी वेबसाइट के माध्यम से अब तक हम आपको बता चुके हैं कि बलराम जी का जन्म कैसे हुआ। इसी कड़ी को आगे बरकरार करते हुए अब हम आपको बताने जा रहे हैं इनके विवाह से जुड़ा रोचक किस्सा।  

किससे, कब और कैसे हुआ विवाह- 
मान्यताओं के अनुसुरा जब-जब भगवान श्री हरि विष्णु ने अवतार लिया तो उनके साथ ही शेषनाग ने अवतार लिया। द्वापर युग में श्री कृष्ण अवतार के समय शेषनाग ने बलराम के रूप में जन्म लिया। मगर शेषनाग का विवाह से संबंध? क्या आप ने इसके बारे में सोचा है? अगर नहीं तो चलिए हम आपको इससे जुड़ी जानकारी देते है। 

असल में गर्गं संहिता में इनसे जुड़ी एक कथा मिलती है, जिसके अनुसार इनकी पत्नी का नाम रेवती था। अब रेवती थी कौन? इस बार में जानते हैं।

शास्त्रों के मुताबिक रेवती पूर्व जन्म में पृथ्वी के राजा मनु की पुत्र थी, जिनका नाम ज्योतिष्मती था। कथाओं के मुताबिक एक दिन मनु अपने बेटी से पूछने लगे कि तुम्हें कैसा वर चाहिए। अपने पिता को अपनी इच्छा बताते हुए ज्योतिष्मती ने उत्तर दिया कि मैं उसके साथ विवाह करना चाहती हूं जो पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली हो। 

अपने बेटी की इस इच्छा को मनु ने स्वर्ग के राजा इंद्र के सामने रखा और बताया कि तुम बताओ सबसे शक्तिशाली कौन है?

तब इंद्र देव ने कहा कि वायु ही सबसे ताकतवर हो सकते हैं परंतु वायु ने खुद को कमज़ोर बताते हुए पर्वत को खुद से बलशाली बताया। फिर मनु उनके पास गए तो पर्वत ने पृथ्वी का नाम लिया। ऐसे करते करते बता शेषनाग तक पंहुची। 

शेषनाग की शक्ति को जानने के बाद उन्हें अपने पति कें रूप में पाने के लिएज्योतिष्मती ब्रह्मा जी के तप में लीन हो गईं। कथाओं के अनुसार ज्योतिष्मती की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे द्वापर युग में बलराम जी से शादी होने का वर दिया।

बता दें द्वापर में ज्योतिष्मती ने राजा कुशस्थली के राजा, जिनका पूरे पाताल लोक पर राज था, कुडुम्बी के यहां जन्म लिया। बेटी के बड़े होने पर जब राजा कुडुम्बी ने ब्रह्मा जी से उसके वर के लिए पूछा तो ब्रह्मा जी ने उसे ज्योतिष्मती पूर्व जन्म का स्मरण कराया। जिसके बाद राजा कुडुम्बी ने बलराम और रेवती का विवाह तय किया।

मगर रेवती कद-काठी में बहुत लंबी-चौड़ी दिखती थी, पृथ्वी लोक के सामान्य मनुष्यों के सामने तो वह दानव नजर आती इसलिए बलरम जी ने अपने हल से रेवती के आकार को सामान्य कर दिया था। जिसके बाद उन्होंनें सुख-पूर्वक जीवन व्यतीत किया।


 

 

Jyoti

Advertising