हिंदुओं के मसीहा थे आधुनिक नौसेना के जनक छत्रपति शिवाजी महाराज

Tuesday, Jan 02, 2018 - 11:05 AM (IST)

छत्रपति शिवाजी महाराज एक कुशल शासक थे, वह चाहते थे कि मराठों के साम्राज्य का विस्तार हो और उनका एक अलग से राज्य हो। अपने इसी सपने को साकार करने के लिए शिवाजी महाराज ने मात्र 28 वर्ष की उम्र से अपनी एक अलग से सेना एकत्रित करनी शुरू कर दी और उन्होंने अपनी योग्यता के बल पर मराठों को संगठित करके अलग मराठा साम्राज्य की स्थापना की।

शिवाजी महाराज छापामार युद्ध प्रणाली का प्रयोग करते थे। उन्होंने एक जहाजी बेड़ा भी बनाया इसलिए शिवाजी महाराज को आधुनिक नौसेना का जनक भी कहा जाता है। इनका जन्म पुणे जिले के जुन्नर गांव के शिवनेरी किले में हुआ था। शिवाजी महाराज का नाम उनकी माता ने भगवान शिवाई के ऊपर रखा था जिन्हें वह बहुत मानती थी। शिवाजी महाराज के पिता बीजापुर के सरदार थे जो उस समय बीजापुर के सुल्तान के हाथों में था। शिवाजी अपनी मां के बेहद करीब थे, उनकी माता बहुत धार्मिक प्रवृत्ति की थीं यही प्रभाव शिवाजी महाराज पर भी पड़ा था। उन्होंने रामायण एवं महाभारत को बहुत ध्यान से पढ़ा था और उससे बहुत सारी बातें सीखीं व अपने जीवन में उतारी थीं। 


शिवाजी महाराज को हिंदुत्व का बहुत ज्ञान था, उन्होंने पूरे जीवन में हिंदू धर्म को दिल से माना और हिंदुओं के लिए बहुत से कार्य किए। शिवाजी महाराज के पिता शाह जी भोंसले कर्नाटक चले जाने से बेटे शिवा और पत्नी जीजाबाई को किले की देख-रेख करने वाले दादोजी कोंडदेव के पास छोड़ गए थे। शिवाजी महाराज को हिंदू धर्म की शिक्षा कोंडदेव से भी मिली थी, साथ ही उन्हें कोंडाजी ने सेना के बारे में, घुड़सवारी और राजनीति के बारे में भी बहुत सी बातें सिखाई थीं।


महाराष्ट्र में हिंदू राज्य की स्थापना शिवाजी महाराज ने 1674 में की जिसके बाद उन्होंने अपना राज्याभिषेक कराया। छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक काशी के पंडितों ने किया। यहीं पर उन्हें छत्रपति की उपाधि से सम्मानित किया गया। इसके 12 दिन के बाद उनकी माता जीजाबाई का देहांत हो गया जिससे शिवाजी महाराज ने शोक मनाया और कुछ समय बाद फिर से अपना राज्याभिषेक कराया। इसमें दूर-दूर से राजा पंडितों को बुलाया गया जिसमें बहुत खर्चा हुआ। शिवाजी महाराज ने इसके बाद अपने नाम का सिक्का भी चलाया। 


शिवाजी महाराज धार्मिक विचारधाराओं, मान्यताओं के धनी थे। अपने धर्म की उपासना वह जिस तरह  से करते थे उसी तरह से वह सभी धर्मों का आदर भी करते थे जिसका उदाहरण उनके मन में समर्थ रामदास के लिए जो भावना थी, ह्यउस से उजागर होता है। उन्होंने रामदास जी को पराली का किला दे दिया था जिसे बाद में सज्जनगढ़ के नाम से जाना गया। स्वामी रामदास एवं शिवाजी महाराज के संबंधों का बखान कई कविताओं में मिलता है। धर्म की रक्षा की विचारधारा से शिवाजी महाराज ने धर्म परिवर्तन का कड़ा विरोध किया।


शिवाजी महाराज बहुत दयालु राजा थे। वह जबरदस्ती किसी से टैक्स नहीं लेते थे। उन्होंने बच्चों, ब्राह्मणों व औरतों के लिए बहुत कार्य किए। बहुत-सी प्रथाओं को बंद किया। उस समय मुगल हिंदुओं पर बहुत अत्याचार करते थे, जबरदस्ती इस्लाम धर्म अपनाने को बोलते थे, ऐसे समय में शिवाजी महाराज मसीहा बनकर आए थे। शिवाजी महाराज ने एक मजबूत नेवी की स्थापना की थी जो समुद्र के अंदर भी तैनात होती और दुश्मनों से रक्षा करती थी, उस समय अंग्रेज, मुगल दोनों ही शिवाजी महाराज के किलों पर बुरी नजर डाले बैठे थे इसलिए उन्हें इंडियन नेवी का पिता कहा जाता है। राज्य की चिंता को लेकर उनके मन में काफी असमंजस था जिस कारण शिवाजी की तबीयत खराब रहने लगी और लगातार 3 हफ्तों तक वे तेज बुखार में रहे जिसके बाद 3 अप्रैल 1680 को मात्र 50 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई। उनके मरने के बाद भी उनके वफादारों ने उनके साम्राज्य को संभाले रखा और मुगलों अंग्रेजों से उनकी लड़ाई जारी रही।
 

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