Inspirational Story: मंजिल वही... राही बदल गए

Tuesday, Jan 18, 2022 - 03:38 PM (IST)

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Inspirational Context: रिश्ता तो उन्होंने खुद कबूल किया था। हमने कोई मिन्नत या जबरदस्ती नहीं की थी। हम गरीब जरूर थे परन्तु स्वाभिमानी थे। पिता जी नहीं थे इसलिए पिता जी की जिम्मेदारी मां ने निभाई थी। मां ने मुझे किन हालात में पढ़ाया था, केवल मैं ही जानती हूं। जमींदार के खेत से मूलियों का टोकरा खरीद लाती थी और उन्हें बेच कर घर का खर्च चलाती थी। मैं भी स्कूल की छुट्टी के बाद कभी-कभी उसके काम में हाथ बंटाती थी। मां चाहती थी कि मैं अपने पांव पर खड़ी होकर उसके बुढ़ापे का सहारा बन सकूं इसलिए उसने मुझे प्राइमरी अध्यापिका बनने के लिए ई.टी.टी. में प्रवेश दिलवा दिया था।

मैं बड़ी लगन से अपनी जिम्मेदारी निभा रही थी इसलिए ई.टी.टी. की परीक्षा में मैं प्रांत भर में प्रथम रह कर उत्तीर्ण हो गई थी।
चूंकि मैरिट में मेरा पहला नंबर था इसलिए नजदीक के गांव में अध्यापिका के तौर पर मेरी नियुक्ति हो गई थी।

वेतन अच्छा था। मैं बड़ी सतर्कता से बजट तैयार कर रही थी इसलिए घर की आर्थिक दशा सुधरने लगी थी। पिछले दो वर्षों में मैंने एक कमरा पक्की ईंटों का बना लिया था। मेरे सर्कल में पढ़़े-लिखे लोग थे। इसलिए ऐसा करना अनिवार्य था।

उधर मां को मेरी शादी की चिंता सताने लगी थी। जब भी उसे मौका मिलता कहती, ‘‘बेटी, मैं नदी के किनारे का वृक्ष हूं। कब गिर पड़े पता नहीं इसलिए मेरे जीते जी अपना घर-संसार बसा लो।’’

उत्तर में मैं कहती, ‘‘ऐसा क्यों कहती हो, भगवान आपकी उम्र लम्बी करे।’’

मां की व्याकुलता देख हमारी पड़ोसन चाची रेखा ने एक लड़का हमें सुझाया था। लड़का बैंक में कैशियर था। मां ने रिश्ते के लिए हां कर दी थी।

लड़के वाले भी बिना दहेज के शादी करने को राजी हो गए थे इसलिए मैं राजीव से विवाह बंधन में बंध गई।

मायके से ससुराल जाते समय मुझे रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने नसीहत दी थी कि पति का घर परमेश्वर का घर होता है, भगवान की तरह उसकी पूजा करनी चाहिए, उसकी लम्बी उम्र के लिए करवाचौथ का व्रत रखना चाहिए। सास-ससुर की आज्ञा में रहना चाहिए।

ससुराल में कदम रखते ही मेरी सारी खुशी हवा हो गई थी। दहेज के लिए मुझे प्रताडि़त किया जाने लगा। दाल-भाजी में नमक कम-ज्यादा होने पर राजीव मेरी पिटाई करने लगा था।

शराब पीने का वह आदी था। जब कभी भूख लगने पर भोजन कर बैठती तो आते ही पिटाई इसलिए कर देता कि मैंने उसका इंतजार क्यों नहीं किया। जब कभी वह अपनी रंगीन महफिल से घर देर से लौटता तो मेरे इंतजार के बदले कहता, ‘‘किसका शोक मना रही थी? क्यों नहीं खाना खाया?’’  तड़ाक-तड़ाक दो थप्पड़ जड़ देता।

मैं सास-ससुर से शिकायत करती तो उत्तर मिलता, ‘‘तुम्हारे पति-पत्नी का मसला है, हम क्या करें?’’

पानी सिर से ऊपर होता जा रहा था। वह मेरे चरित्र पर भी संदेह करने लगा था क्योंकि मेरे पुरुष सहकर्मी थे। एक दिन अपनी व्यथा मैंने अपने स्टाफ को व्यक्त कर दी थी। मेरी बात सुनकर राघव ने उत्तर दिया था, ‘‘आजकल जमाना बदल गया है। अगर आपका पति आपको तंग करता है तो आप उससे तलाक लेकर छुटकारा पा सकती हैं।’’

मैंने कहा, ‘‘मेरे दोस्त, नारी के लिए आधुनिक युग में भी मुसीबतें ही मुसीबतें हैं, कहां जाऊं किसके सहारे जीऊं।’’

राघव ने उत्तर दिया, ‘‘खूबसूरत हो, जवान हो, कमाती हो, बीसियों हाथ थामने वाले मिल जाएंगे...’’

मैंने उसकी बात काटते हुए कहा, ‘‘आप अविवाहित हैं, क्या आप थामेंगे मेरा हाथ?’’

राधव कुछ देर खामोश रहा फिर गर्मजोशी से बोला, ‘‘मैं तैयार हूं।’’ सारे स्टाफ ने ताली बजाई।

मैंने राजीव को तलाक दिया और अपना जीवनसाथी राघव को बना लिया। लगा जैसे मैं गुलामी से आजाद हो गई हूं। तब से बड़े इत्मिनान से जिंदगी गुजर रही है। अपनी मां की भी आर्थिक सहायता कर रही हूं। मेरा नया साथी मुझे पूर्ण सहयोग दे रहा है।

Jyoti

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