आप भी करते हैं फिजूलखर्ची तो आपके लिए है ये खास Advice

Thursday, Jan 23, 2020 - 09:44 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
गांधी जी संतुलित और आदर्श समाज की स्थापना का लक्ष्य लेकर सक्रिय थे। आर्थिक समानता संबंधी उनके विचारों की जड़ में ट्रस्टीशिप का सिद्धांत निहित था। वह सबको समझाते कि आपकी कमाई संपत्ति आपकी नहीं, समाज की है। आप उसके सिर्फ ट्रस्टी हैं, मालिक नहीं। इसलिए फिजूलखर्च से हर हाल में बचना चाहिए। एक बार एक मारवाड़ी सेठ बापू से मिलने आए। वह बड़ी-सी पगड़ी बांधे हुए थे। बातचीत के दौरान उन्होंने पूछा, ''गांधी जी, आपके नाम पर लोग देशभर में गांधी टोपी पहनते हैं, लेकिन आप इसका इस्तेमाल नहीं करते। ऐसा क्यों?

गांधी जी सेठ की बात पर मुस्कुराते हुए बोले, ''आपका कहना बिल्कुल ठीक है, पर आप अपनी पगड़ी को उतारकर तो देखिए। इससे कम से कम 20 टोपियां बन सकती हैं। जब 20 टोपियों के बराबर कपड़ा आप जैसे धनी व्यक्ति अपनी पगड़ी में लगा सकते हैं तो बेचारे 19 आदमियों को नंगे सिर रहना ही पड़ेगा। उन्हीं 19 आदमियों में मैं भी एक हूं।"

गांधी जी का उत्तर सुनकर सेठ से कुछ कहते न बना। वह चुप हो गए। बात आगे बढ़ाते हुए गांधी जी बोले, ''अपव्यय, अति संचय की आदत दूसरे लोगों को अपने हिस्से से वंचित कर देती है इसलिए मेरे जैसों को टोपी से वंचित रहकर उस संचय की पूर्ति करनी पड़ती है।"

गांधी जी ने लगे हाथ सेठ को ट्रस्टीशिप के सिद्धांत के बारे में समझाया कि अधिक धन, साधन और सुविधा रखने वाले व्यक्तियों को अपनी सीमित आवश्यकताएं पूरी करने के बाद जो संसाधन बचे, उस पर ट्रस्टी की भूमिका निभानी चाहिए। जब मनुष्य अपने आपको समाज का सेवक मानेगा, समाज की खातिर कमाएगा, समाज के कल्याण में उसे खर्च करेगा, तभी उसकी कमाई में शुद्धता आएगी और तभी हमारा समाज वास्तव में अहिंसक समाज बन सकेगा।

Jyoti

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