प्रकृति के इस नियम पर करें विश्वास, सुख की संपत्ति के साथ मिलेगी शक्ति

Saturday, Mar 03, 2018 - 02:34 PM (IST)

हम क्या हैं या कोई भी व्यक्ति क्या है, यह जानने की दो मुख्य कसौटियां हैं। पहली, जब हमारे पास कुछ नहीं होता तब हम अपने लिए क्या सोचते हैं और दूसरी, जब हमारे पास बहुत कुछ होता है तब दूसरों के लिए हमारी क्या सोच होती है, हम उनके लिए क्या करते हैं। स्पष्ट शब्दों में कहें तो दुख के समय हम अपने लिए कौन-सा विचार और सुख के समय में दूसरों के लिए कौन-सा विचार अपनाते हैं, इस पर निर्भर करता है कि हम किस श्रेणी के हैं।


आमतौर पर ऐसा देखा जाता है कि दुख के समय में हम दूसरों पर दोषारोपण करके अपने दुख को हल्का करने का प्रयत्न करते हैं। इसके विपरीत जब हम सुख में डूबे होते हैं तो अपने सुख को खुद तक सीमित रखकर उस सुख को सुरक्षित रखने का भ्रम पालते हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि अपने खुद के दुख की जिम्मेदारी स्वयं स्वीकार कर लेना ही दुख को हल्का करने का या दुख से मुक्त होने का श्रेष्ठ उपाय है।


मन के दो बड़े दोष हैं, अपने प्रति आदर और दूसरों के प्रति घृणा का भाव। मन अपने प्रति आदर भाव इसलिए रखता है कि उसे अहंकार को पुष्ट करना है और पर के प्रति नफरत इसीलिए कि उसे द्वेष को और अधिक पक्का करना है। इसके पीछे अंतर्मन में छिपी यह भावना है कि वह सारे अच्छे गुण खुद रखता है और सामने वाले को दुर्गुणों का भंडार समझता है। ऐसी धारणा रखने वाले व्यक्ति का न कोई मित्र बनने को तैयार होता है, न कोई उसे मित्र बनाता है।


हमें याद रखना है कि पौधे को पानी का सिंचन करने वाला माली स्वयं के लिए फूल की सुगंध का आरक्षण करा रहा होता है। दीपक में तेल डालने वाला स्वयं के लिए ही प्रकाश को सुरक्षित कर रहा होता है। इसी तरह खुद के सुख को दूसरों तक पहुंचाने का प्रयत्न करते रहना ही सुख को सुरक्षित रखना है। 


प्रकृति के इस नियम पर यदि हमें विश्वास हो जाए तो फिर सुख की संपत्ति के संग्रह की बुद्धि नहीं, सदुपयोग की बुद्धि जागृत हो जाएगी। कैसी भी परिस्थिति हो हम उसे ऐसा स्वरूप दे सकते हैं कि उससे हमें शक्ति ही मिले।

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