खुद में न पाले ऐसी आदत, भविष्य का फैसला लेने में होगे असमर्थ

Saturday, Aug 05, 2017 - 11:35 AM (IST)

मिस्र में कुछ कैदियों को उम्रकैद की सजा देकर किले में रखा गया था। सारे कैदी अपनी जवानी में पकड़े गए थे और जेल में ही बूढ़े हो गए थे। बाद में जब राज्य सरकार का तख्ता पलटा तो उन उम्रकैदियों को आजाद कर दिया गया, पर वे तो आजादी भूल चुके थे। उनके लिए जेल ही घर और बेड़ियां जेवर बन चुकी थीं। उन्होंने किले के बाहर जाने से इंकार कर दिया। उनके इंकार के बावजूद उन सबको जबरदस्ती जेल से निकाल दिया गया। 

उस वक्त तो वे चले गए लेकिन शाम को आधे से ज्यादा कैदी जेल के दरवाजे पर आकर कहने लगे कि हमें अंदर आने दो, हमारा यही घर है। दरअसल कैदी रोज वहां जीवन व्यतीत करते-करते वहीं के हो गए थे। जेल ही उनका घर बन गया था। वे बाहर की दुनिया भूल चुके थे। जेल में समय से खाना मिल जाता था, समय से सो जाते थे, आपस में बातचीत कर लेते थे। जिंदगी व्यतीत हो ही रही थी। उन कैदियों ने यह कहा कि हमें नींद नहीं आएगी। बेड़ियां न होने से हमारे हाथ-पैर हल्के हो गए हैं। हमसे चला नहीं जाता। उन्हें इसकी आदत बन गई थी।

ठीक ऐसे ही अवगुणों में रहने की भी आदत हो जाती है और इस आदत में रमा इंसान समय और तकदीर की भी परवाह नहीं करता। समय यदि उनकी तकदीर बदल भी देता है तो भी वह उन अवगुणों को नहीं छोड़ पाता। आदतों के जंजाल में फंसा इंसान न तो  तकदीर की उंगली पकड़कर चल पाता है और न ही समय देख भविष्य का फैसला ले पाता है।

हकीकत यह है कि जिन अवगुणों में मनुष्य जी रहा होता है, वे उसको अवगुणों की तरह नहीं दिखाई देते इसलिए उसे उनको तोड़ने की जरूरत ही नहीं महसूस होती। जेल ही जब घर लगता है तो आजादी उनके लिए क्या मायने रख सकती है। इन अवगुणों से बचना बड़ी मुश्किल बात है।

महात्मा गांधी ने कहा है कि ‘‘आपके विचार आपके शब्द बन जाते हैं, आपके शब्द आपके कर्म बन जाते हैं, आपके कर्म आपकी आदत बन जाते हैं, आपकी आदतें आपके जीवन मूल्य बन जाते हैं और आपके जीवन मूल्य आपकी तकदीर बन जाते हैं।’’

बेहतर जीवनशैली आदतों की विवेचना कर मूल्यांकन करने की सलाह देगी। तय हमें करना होगा कि हम आदतों के कभी दास न बनें और कभी भी गलत आदतों को फलने-फूलने न दें। आदतों के जंजाल से निकलने पर ही हमें मुक्ति मिलेगी।


 

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