खुद में यह आदत पाल कर कहीं आप भी तो नहीं कर रहे अपना जीवन नष्ट

Tuesday, Aug 01, 2017 - 11:43 AM (IST)

हममें से ज्यादातर लोग कंफर्ट जोन में रहना पसंद करते हैं क्योंकि यहां उन्हें आराम और सुरक्षा का अहसास होता है। मगर कंफर्ट जोन कोई हकीकत नहीं है, बल्कि यह तो हमारी मनोवैज्ञानिक स्थिति है। उदाहरण के लिए जब कोई कर्मचारी एक ही संस्थान में लंबे समय तक रहता है तो उसका कार्यस्थल उसके लिए कंफर्ट जोन बन जाता है और वह उससे बाहर निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है। आपका कंफर्ट जोन आपके लिए आरामदायक हो सकता है लेकिन यह सब कुछ आपकी सोच पर ही निर्भर करता है। अगर आप लीक से अलग सोच पाते हैं तो हर स्थिति में आप कंफर्ट जोन से बाहर हैं।

दरअसल कंफर्ट जोन में रहते हुए व्यक्ति चुनौतियों का सामना करने की क्षमता खो देता है। कंफर्ट जोन में व्यक्ति शांति की जिंदगी जीता है, मगर चूंकि जिंदगी में कोई चुनौती नहीं होती है, इसलिए आपको नए अनुभव भी हासिल नहीं होते हैं। इससे आप रचनात्मक विचारों से दूर हो जाते हैं। तब सबसे बड़ा नुक्सान यही होता है कि आपका बौद्धिक विकास ज्यादा नहीं होता है और आप एक जगह ठहर जाते हैं।

इसके उलट, यदि आप कंफर्ट जोन में होने को इतना ज्यादा महत्व नहीं देते हैं और किसी भी तरह की स्थिति का सामना करने को तैयार रहते हैं तो आप हर समय नए अनुभव पा सकते हैं। तब हर मोड़ पर आपको नए अनुभव हासिल हो सकते हैं। इन नई स्थितियों का सामना करके आप रचनात्मक ढंग से सोचने की क्षमता विकसित कर सकते हैं। कंफर्ट जोन को आप ‘नॉन क्रिएटिव जोन’ भी कह सकते हैं। जब कोई पक्षी किसी पिंजरे में रहता है तो वह पिंजरा उसके लिए कंफर्ट जोन बन जाता है क्योंकि उसे अपने पंखों का इस्तेमाल ही नहीं करना पड़ता है। मगर इस तरह पक्षी कैदी हो जाता है। यह उसके लिए अच्छा नहीं है। मगर यहां याद रखें कि अपनी महत्वाकांक्षा के चलते कंफर्ट जोन से बाहर कूद पड़ना भी ठीक नहीं है। अगर आप माहौल और परिस्थितियों को बदलना चाहते हैं तो नई जगह की ओर बढ़िए, नए प्रस्तावों को स्वीकार करने में झिझकिए नहीं। हर हाल में याद रखिए कि आप ही कंफर्ट जोन बनाते हैं इसलिए उसे तोड़ना भी आपके ही हाथ है।

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