दुनिया में मनाए जाते हैं 70 से अधिक नववर्ष

Sunday, Jan 01, 2017 - 12:59 PM (IST)

नववर्ष यानी वर्ष का पहला दिन 1 जनवरी को मनाया जाता है। इस दिन के साथ दुनिया के ज्यादातर लोग अपने नए साल की शुरूआत करते हैं। नए का आत्मबोध हमारे अंदर नया उत्साह भरता है और नए तरीके से जीवन जीने का संदेश देता है। हालांकि यह उल्लास और यह उत्साह दुनिया के अलग-अलग कोने में अलग-अलग दिन मनाया जाता है क्योंकि दुनिया में कई कैलेंडर हैं और हर कैलेंडर का नया साल अलग-अलग होता है। एक अनुमान के अनुसार अकेले भारत में ही करीब 50 कैलेंडर (पंचांग) हैं जिनमें से कई का नया साल अलग दिनों पर होता है। 1 जनवरी को मनाया जाने वाला नववर्ष दरअसल ग्रेगोरियन कैलेंडर पर आधारित है। इसकी शुरूआत रोमन कैलेंडर से हुई है। पारंपरिक रोमन कैलेंडर का नववर्ष 1 मार्च से शुरू होता है। प्रसिद्ध रोमन सम्राट जूलियस सीजर ने 47 ईसा पूर्व में इस कैलेंडर में परिवर्तन किया और इसमें जुलाई मास जोड़ा। इसके बाद उसके भतीजे के नाम के आधार पर इसमें अगस्त मास जोड़ा गया। दुनिया भर में आज जो कैलेंडर प्रचलित है, उसे पोप ग्रेगोरी अष्टम ने 1582 में तैयार किया था। ग्रेगोरी ने इसमें लीप ईयर का प्रावधान किया था। 

 

ईसाइयों का एक अन्य पंथ इस्टर्न आर्थोडाक्स चर्च तथा इसके अनुयायी ग्रेगोरियन कैलेंडर को मान्यता न देकर पारंपरिक रोमन कैलेंडर को ही मानते हैं। इस कैलेंडर के अनुसार नया साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। इस कैलेंडर की मान्यता के अनुसार जॉर्जिया, रूस, यरूशलम, सर्बिया आदि में 14 जनवरी को नववर्ष मनाया जाता है। भारत कैलेंडरों के मामले में कम समृद्ध नहीं है। इस समय देश में विक्रम, शक, हिजरी, फसली, बांगल, बौद्ध, जैन, खालसा, तमिल, मलयालम, तेलगू, संवत आदि अनेक प्रचलित हैं। इनमें से हर एक के अपने अलग-अलग नववर्ष होते हैं। देश में सर्वाधिक प्रचलित संवत विक्रम और शक संवत हैं। माना जाता है कि विक्रम संवत गुप्त सम्राट विक्रमादित्य ने उज्जयनी में शकों को पराजित करने की याद में शुरू किया था। यह संवत 58 ईसा पूर्व शुरू हुआ था। विक्रम संवत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होता है। इसी समय चैत्र नवरात्र प्रारंभ होता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन उत्तर भारत के अलावा गुड़ी पड़वा और उगादी के रूप में भारत के विभिन्न हिस्सों में नववर्ष मनाया जाता है। सिंधी लोग इसी दिन चेटी चंड के रूप में नववर्ष मनाते हैं। शक संवत को शालीवाहन शक संवत के रूप में भी जाना जाता है। माना जाता है कि इसे शक सम्राट कनिष्क ने 78 ई. में शुरू किया था। स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने इसी शक संवत में मामूली फेरबदल करते हुए इसे राष्ट्रीय संवत के रूप में अपना लिया। राष्ट्रीय संवत का नववर्ष 22 मार्च को होता है जबकि लीप ईयर में यह 21 मार्च होता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को विक्रमी संवत की दृष्टि से नववर्ष मनाया जाता है। ब्रज में इस दिन नीम की पत्ती और मिश्री खाने की परम्परा है।

 

इस्लामिक कैलेंडर 
इस्लाम धर्म  के कैलेंडर को हिजरी साल के नाम से जाना जाता है। इसका नववर्ष मोहर्रम मास के पहले दिन होता है। हिजरी कैलेंडर कर्बला की लड़ाई के पहले ही निर्धारित कर लिया गया था। मोहर्रम के दसवें दिन को आशूरा के रूप में जाना जाता है। इसी दिन पैगम्बर मोहम्मद (स.) के नवासे इमाम हुसैन बगदाद के निकट कर्बला में शहीद हुए थे। हिजरी कैलेंडर के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि इसमें चंद्रमा की घटती-बढ़ती चाल के अनुसार दिनों का संयोजन नहीं किया गया है। लिहाजा इसके महीने हर साल करीब 10 दिन पीछे खिसकते रहते हैं।

 

अन्य देशों में नववर्ष
यदि भारत के पड़ोसी देश और देश की पुरानी सभ्यताओं में से एक चीन में भी अपना एक अलग कैलेंडर है। तकरीबन सभी पुरानी सभ्यताओं के अनुसार चीन का कैलेंडर भी चंद्रमा गणना पर आधारित है। इसका नया साल 21 जनवरी से 21 फरवरी के बीच पड़ता है। चीनी वर्ष के नाम 12 जानवरों के नाम पर रखे गए हैं। चीनी ज्योतिष में लोगों की राशियां भी 12 जानवरों के नाम पर होती हैं। लिहाजा यदि किसी की बंदर राशि है और नया वर्ष भी बंदर आ रहा हो तो वह साल उस व्यक्ति के लिए विशेष तौर पर भाग्यशाली माना जाता है। 1 जनवरी को अब नए साल के जश्न के रूप में मनाया जाता है। एक-दूसरे  की देखा-देखी यह जश्न मनाने वाले शायद ही जानते हों कि दुनिया भर में पूरे 70 नववर्ष मनाए जाते हैं। दिलचस्प बात यह है कि आज भी पूरी दुनिया कैलेंडर प्रणाली पर एकमत नहीं है। इक्कीसवीं शताब्दी के वैज्ञानिक युग में इंसान अंतरिक्ष में जा पहुंचा, मगर कहीं सूर्य पर आधारित कहीं चंद्रमा पर आधारित तो कहीं सूर्य, चंद्रमा और तारों की चाल पर धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दुनिया में विभिन्न कैलेंडर प्रणालियां लागू हैं। 
यही वजह है कि अकेले भारत में पूरे साल तीस अलग-अलग नववर्ष मनाए जाते हैं। दुनिया में सर्वाधिक प्रचलित कैलेंडर ‘ग्रेगोरियन कैलेंडर’ है जिसे पोप ग्रेगरी तेरह ने 24 फरवरी, 1582 को लागू किया था। यह कैलेंडर 15 अक्तूबर 1582 को शुरू हुआ। इसमें अनेक त्रुटियां होने के बावजूद कई प्राचीन कैलेंडरों को दुनिया के विभिन्न हिस्सों में आज भी मान्यता मिली हुई है।

 

विभिन्न देशों में विभिन्न नववर्ष
जापानी नववर्ष गनतन-साईं या ‘ओषोगत्सू’ के नाम से भी जाना जाता है। महायान बौद्ध 7 जनवरी, प्राचीन स्कॉट में 11 जनवरी, वेल्स के इवान वैली में नववर्ष 12 जनवरी, सोवियत रूस के रूढि़वादी चर्चों, आरमेनिया और रोम में नववर्ष 14 जनवरी को होता है। वहीं सेल्टिक, कोरिया, वियतनाम, तिब्बत, लेबनान और चीन में नववर्ष 21 जनवरी को प्रारंभ होता है।  प्राचीन आयरलैंड में नववर्ष 1 फरवरी को मनाया जाता है तो प्राचीन रोम में 1 मार्च को। इसके अतिरिक्त ईरान, प्राचीन रूस तथा भारत में बहाई, तेलुगू तथा जमशेदी (जोरोस्ट्रियन) का नया वर्ष 21 मार्च से शुरू होता है। प्राचीन ब्रिटेन में नववर्ष 25 मार्च को प्रारंभ होता है। प्राचीन फ्रांस में 1 अप्रैल से अपना नया साल प्रारंभ करने की परंपरा थी। यह दिन ‘अप्रैल फूल’ के रूप में भी जाना जाता है। थाईलैंड, बर्मा, श्रीलंका, कम्बोडिया और लाओ के लोग 7 अप्रैल को बौद्ध नववर्ष मनाते हैं।

 

वहीं कश्मीर के लोग अप्रैल में, भारत में वैसाखी के दिन, दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों बंगलादेश,श्रीलंका, थाईलैंड, कम्बोडिया, नेपाल,बंगाल, श्रीलंका व तमिल क्षेत्रों में नया वर्ष 14 अप्रैल को मनाया जाता है। इसी दिन श्रीलंका का राष्ट्रीय नववर्ष मनाया जाता है। बौद्ध धर्म के कुछ अनुयायी  बुद्ध पूर्णिमा के दिन 17 अप्रैल को नया साल मनाते हैं। असम में नववर्ष 15 अप्रैल को, पारसी अपना नववर्ष 22 अप्रैल को, तो बेबीलोनियन नववर्ष 24 अप्रैल से शुरू होता है। प्राचीन ग्रीक में नववर्ष 21 जून को मनाया जाता था। प्राचीन जर्मनी में नया साल 29 जून को मनाने की परंपरा थी और प्राचीन अमेरिका में 1 जुलाई को। इसी प्रकार आरमेनियन कैलेंडर 9 जुलाई से प्रारंभ होता है जबकि म्यांमार का नया साल 21 जुलाई से शुरू होता है।
 

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