मूर्ख और विद्वान की संगत का असर होता है कुछ ऐसे, सोच-समझकर करें संग

Tuesday, Dec 06, 2016 - 10:49 AM (IST)

एक बार एक राजा शिकार के उद्देश्य से अपने काफिले के साथ किसी जंगल से गुजर रहा था। दूर-दूर तक शिकार नजर नहीं आ रहा था। वे धीरे-धीरे घनघोर जंगल में प्रवेश कर गए। अभी कुछ ही दूर गए थे कि उन्हें कुछ डाकुओं के छिपने की जगह दिखाई दी। जैसे ही वे उसके पास पहुंचे कि पास के पेड़ पर बैठा तोता बोल पड़ा, ‘‘पकड़ो-पकड़ो एक राजा आ रहा है, इसके पास बहुत सारा सामान है। लूटो-लूटो जल्दी आओ, जल्दी आओ।’’


तोते की आवाज सुन कर सभी डाकू राजा की ओर दौड़ पड़े। डाकुओं को अपनी ओर आते देख कर राजा और उसके सैनिक भाग खड़े हुए और कोसों दूर निकल गए। सामने एक बड़ा-सा पेड़ दिखाई दिया। कुछ देर सुस्ताने के लिए वे उस पेड़ के पास चले गए। जैसे ही पेड़ के पास पहुंचे कि उस पेड़ पर बैठा तोता बोल पड़ा, ‘‘आओ राजन, हमारे साधु-महात्मा की कुटी में आपका स्वागत है। अंदर आइए पानी पीजिए और विश्राम कर लीजिए।’’


तोते की इस बात को सुनकर राजा हैरत में पड़ गया और सोचने लगा कि एक ही जाति के दो प्राणियों का व्यवहार इतना अलग-अलग कैसे हो सकता है। राजा को कुछ समझ नहीं आ रहा  था। वह तोते की बात मानकर अंदर साधु की कुटिया की ओर चला गया। साधु-महात्मा को प्रणाम कर उनके समीप बैठ गया और अपनी सारी कहानी सुनाई और फिर धीरे से पूछा, ‘‘ऋषिवर इन दोनों तोतों के व्यवहार में आखिर इतना अंतर क्यों है?’’


साधु-महात्मा ने धैर्य से सारी बात सुनी और बोले, ‘‘यह कुछ नहीं राजन, संगति का असर है। डाकुओं के साथ रह कर तोता भी डाकुओं की तरह व्यवहार करने लगा है और उनकी ही भाषा बोलने लगा है अर्थात जो जिस वातावरण में रहता है वह वैसा ही बन जाता है।’’


शिक्षा : मूर्ख भी विद्वानों के साथ रह कर विद्वान बन जाता है और अगर विद्वान भी मूर्खों की संगत में रहता है तो उसके अंदर भी मूर्खता आ जाती है। इसलिए हमें संगति सोच-समझकर करनी चाहिए।

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