सिरेमिक युद्ध के बाद कोरियाई गुलामों ने कला से जापान को दी पहचान

Friday, Mar 15, 2024 - 02:38 PM (IST)

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Inspirational Story: जापान से आए कई प्रकार के व्यापारियों में से एक इंसानों के व्यापारी हैं, जो सैनिकों की ट्रेन में चलते हैं। वे पुरुषों और महिलाओं, युवा और बूढ़े को समान रूप से खरीदते हैं। इन लोगों को गर्दन के चारों ओर रस्सियों से बांध दिया गया, वे उन्हें अपने आगे-आगे हांकते हैं, जो चल नहीं पाते उन्हें पीछे से डंडे मारकर दौड़ाया जाता है। इन्हें देखकर मैंने सोचा, नरक में पापियों को पीड़ा देने वाले राक्षसों और मानव-भक्षी राक्षसों की दृष्टि ऐसी ही होगी।’

जापान का एक पुजारी, जो एक चिकित्सक के तौर पर जापानी सेना के साथ कोरिया गया था, उसने अपनी एक पुस्तक में जापानियों द्वारा कोरिया के नागरिकों पर किए गए अत्याचारों का उपरोक्त वर्णन किया है। यह बात 15वीं शताब्दी के अंतिम दौर की है। 1592 और 1598 के बीच जापान के शासक हिदेयोशी ने कोरियाई प्रायद्वीप पर दो बड़े आक्रमण किए, जिन्हें इम्जिन युद्ध के रूप में जाना जाता है।

हिदेयोशी के शासनकाल में जापान में राज्यों के बीच युद्ध चलता रहता था। यह तकरीबन 100 सालों से अधिक समय तक चला, जिसे सेनगोकू कहा गया। हिदेयोशी ने जापान को एक सूत्र में बांधने का काम किया था। ये जापान का वह समय था, जब देश समुराइयों से भरा हुआ था। यहां के लोग युद्ध के अलावा कुछ नहीं जानते थे। उन्होंने समुराइयों को दूसरे देश की ओर भेज दिया। अति महत्वाकांक्षी शासक की नजर कोरियाई प्रायद्वीप जैसे शांत देश पर पड़ी। जब जापान अंतहीन संघर्ष में लगा हुआ था, कोरिया सदियों से शांति की नींद सो रहा था, इसलिए हिदेयोशी को भरोसा था कि उसके बंदूकधारी समुराई जल्द ही जोसियन कोरिया भूमि पर कब्जा कर लेगा।

अप्रैल 1592 का प्रारंभिक आक्रमण सुचारु रूप से चला और जुलाई तक जापानी सेना प्योंगयांग में थी। जल्द ही कोरिया की नौसेना ने जापान के अर्पित जहाजों के लिए जीवन बहुत कठिन बना दिया। कोरिया ने जापान की सप्लाई चेन काट दी। युद्ध खराब हो गया और अगले वर्ष हिदेयोशी ने अपनी सेना को पीछे हटने का आदेश दिया।

हालांकि, यह जापान की हार थी लेकिन जापान के शासक अपने सपने को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। 1594 में उसने कोरियाई प्रायद्वीप में दूसरी सेना भेजी, बेहतर तैयारी और अपने मिंग चीनी सहयोगियों की सहायता के साथ। इस बार भी कोरियाइयों का पलड़ा भारी रहा। अभियान के शुरुआती दिनों में ही यह स्पष्ट हो गया होगा कि जापान कोरिया पर विजय प्राप्त नहीं कर सकता। इसलिए उन सभी प्रयासों को बर्बाद करने की बजाय, जापानियों ने कोरियाई लोगों को पकड़ना और गुलाम बनाना शुरू कर दिया, जो जापान के लिए उपयोगी हो सकते थे।

जापान वापस ले जाए गए कोरियाइयों को गुलाम बनाया गया। गुलाम कोरियाई लोगों की कुल संख्या के अनुमानित 50,000 से 2,00,000 तक हैं। अधिकांश किसान या मजदूर थे, लेकिन कुम्हार और लोहार, कारीगर और कुछ विद्वान भी थे, जो कन्फ्यूशियस विचारधारा से प्रभावित थे। वास्तव में टोकुगावा जापान (1602-1868) में एक नव-कन्फ्यूशियस आंदोलन शुरू हुआ, जिसका बड़ा कारण पकड़ कर लाए गए कोरियाई विद्वान थे।

हालांकि, इन गुलाम कोरियाई लोगों का सबसे अधिक प्रभाव जापान में जापानी सिरेमिक शैलियों पर हुआ। कोरियाई कुम्हारों द्वारा बनाए गए जापानी मिट्टी के बर्तनों की नई शैली ने नई कलाकृतियों को जन्म दिया। आज भी जापान में उन प्राचीन परंपराओं की देखभाल की जा रही है और जापानी शैली में बने चीनी मिट्टी के बर्तन विश्वभर में प्रसिद्ध हैं।    

Prachi Sharma

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