Inspirational Story: यही ईश्वर की ओर बढ़ने का एक मार्ग है

Sunday, Aug 27, 2023 - 09:14 AM (IST)

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Inspirational Story: वर्तमान समय में चिंता एक बड़ी समस्या बनी हुई है। मानवीय स्वभाव में चिंता लगातार प्रज्ज्वलित है। चिंता की ज्वाला दावानल का रूप लेकर व्यक्ति के स्वास्थ्य, शांति और सुकून को भस्म कर रही है। आज का मनुष्य तनाव, अवसाद से ग्रस्त होकर रक्तचाप, मधुमेह जैसी बीमारियों के चंगुल में आ गया है। वर्तमान में जिसे हम लाइफस्टाइल कहते हैं, वह हमारी बहुत-सी समस्याओं का कारण है। जब लाइफस्टाइल की बात आती है तो मनुष्य भौतिक रूप से बाहरी कारणों पर नजर डालता है।

वह अपने उठने, खाने, सोने, जगने पर बात करने लगता है। यह भी लाइफस्टाइल का हिस्सा है, किन्तु हमारा सोचने का ढंग, किसी भी विशेष पर प्रतिक्रिया करने का तरीका और व्यवहार भी जीवन का या लाइफस्टाइल का एक अभिन्न अंग है। अगर आप हर बात पर त्वरित प्रतिक्रिया करेंगे तो उस समय आपका रक्तचाप बढ़ने लगेगा। हम सभी को अपने चिंतन में यह बात लानी चाहिए कि शांति और सुकून हम किसी से मांग कर नहीं ले सकते। इसके लिए हमें स्वयं की मनोस्थिति को बदलना होगा। चिंता एक बड़ी बीमारी है, जो अपने संग टैंशन, डिप्रैशन, ब्लड प्रैशर जैसी अनेक बीमारियों की जननी है।



इस बात पर इशारा करते हुए आचार्य चाणक्य ने लिखा है-
चिता, चिन्ता समाप्रोक्ता बिंदुमात्रं विशेषता। सजीवं दहते चिंता निर्जीवं दहते चिता॥

अर्थात : ‘चिंता’ और ‘चिंता’ को लोग एक समान समझते हैं, किन्तु यह सच नहीं है। ‘ चिंता’, ‘चिंता’ से बड़ी है क्योंकि ‘चिता’ निर्जीव व्यक्ति को जलाती है और ‘चिंता’ सजीव यानी जीवित व्यक्ति को जला देती है।

चिंता को चिंतन से जीता जा सकता है। मन का कार्य ही है सोचना, किन्तु कई बार हम स्वयं के बारे में न सोच कर दूसरों के बारे में सोचते हैं।

यह ज्यादा सोचते हैं कि लोग हमारे बारे में क्या सोचते हैं ?

इस पर व्यंग्य करते हुए किसी ने लिखा है कि ‘लोग क्या सोचेंगे यह भी अगर हम सोचेंगे तो फिर वे क्या सोचेंगे ?’

हम सभी को अपना जीवन, अपना व्यवहार, अपना स्वास्थ्य, अपनी मुठी में रखना चाहिए। अपने सुकून की चाबी कभी दूसरों के हाथों में नहीं रखनी चाहिए। चिंता और चिन्ता में मात्र एक बिन्दू का अंतर है, किन्तु इनके स्वभाव और गुण एक-दूसरे से बहुत अलग है। चिंता आपको नकारात्मकता देकर अंधेरे में धकेल देती है जबकि चिंतन आपको सकारात्मकता देकर जीवन को दिशा देने के लिए प्रेरित करता है। इसलिए चिंता को चिंतन से ही जीता जा सकता है।



गीता का सार भी यही है। कर्म को करने में समय और ऊर्जा लगाइए। उसका फल मुझे तुरंत नहीं मिला, कब मिला इस बात की चिन्ता करनी छोड़ देनी चाहिए। यही ईश्वर की ओर बढ़ने का एक मार्ग है।

प्राचीन समय में एक राज्य भयंकर अकाल से पीड़ित हो गया था, जिसके कारण राजा को बहुत नुक्सान का सामना करना पड़ा। न तो उसे कर मिला और न ही जनता से लगान। अब राजा इस बात से चिंतित रहने लगा कि व्यय को कैसे कम किया जाए, ताकि राज्य का काम बिना किसी परेशानी के सुचारू चलता रहे। साथ ही राजा इस चिंता में भी था कि भविष्य में अगर फिर कोई ऐसा अकाल पड़ गया तो पड़ोसी देश के राजा हमला भी कर सकते हैं। राजा ने एक बार अपने ही मंत्रियों को राज्य के विरुद्ध षड्यंत्र रचते हुए भी पकड़ा था। इन सभी चिंताओं की वजह से राजा को नींद भी नहीं आ रही थी और न ही उन्हें भूख लगती थी।

राजा के शाही बाग का एक माली था, राजा उसे देखता था, वह प्याज-चटनी के साथ पेट भरकर भोजन ग्रहण करता और खुश रहता था। राजा के एक गुरु थे, उन्होंने राजा से कहा, ‘‘अगर तुम वाकई मुझे अपना गुरु मानते हो तो यह राजपाट मुझे सौंप दो, तुम महल में रहो, सिंहासन पर बैठो और एक कर्मचारी की भांति मेरे राज्य का ध्यान रखो। मैं तो साधु हूं और आश्रम में ही रहूंगा लेकिन तुम्हें मेरे लिए यह काम करना होगा।’’

राजा ने उनकी बात मान ली और खुशी-खुशी एक कर्मचारी की भांति राज्य का ध्यान रखने लगे। काम तो वही था लेकिन अब राजा किसी जिम्मेदारी या चिंता में लदा हुआ नहीं था। कुछ महीनों बाद उसके गुरु आए।

उन्होंने राजा से पूछा, ‘‘कहो तुम्हारी भूख और नींद का क्या हाल है।’’

राजा ने कहा, ‘‘मालिक अब खूब भूख भी लगती है और मैं चैन की नींद सोता भी हूं।’’

गुरु ने राजा को समझाया कि बदला कुछ भी नहीं है, जो काम पहले तुम्हारे लिए बोझ था, वह अब तुम्हारा कर्तव्य बन गया था। हमें यह जीवन कर्तव्यों को पूरा करने के लिए मिला है, किसी चीज को अपने ऊपर बोझ की तरह लादने के लिए नहीं। चिंता करने से परेशानियां बढ़ती हैं, इसलिए ज्यादा सोचना नहीं चाहिए।

एक बार किसी आदमी ने अपने दोस्त से पूछा कि रात को मच्छर काटे और खुजली हो तो क्या करना चाहिए?



उस व्यक्ति ने बड़ा सीधा-सा जवाब दिया। उसने कहा, ‘‘चुपचाप सो जाना चाहिए हो सके तो मच्छर को मारना चाहिए और नींद पूरी करनी चाहिए क्योंकि आप रजनीकांत तो हो नहीं कि मच्छर से सॉरी बुलवा लोगे।’’

सारी समस्या इस बात की है कि हम स्वयं को रजनीकांत कब नहीं समझते, पूरी दुनिया से सॉरी बुलवाने में लगे रहते हैं।
मैंने अपने जिंदगी को कुछ इस तरह आसान कर लिया।

किसी से माफी मांग ली, किसी को माफ कर दिया॥
चिंता ऐसी डाकिनी, काट करेजा खाए,
वैद्य बेचारा क्या करे, कहां तक दवा खवाए।

—आचार्य चन्द्रशेखर शास्त्री
(वैदिक सार्वदेशिक से साभार)

Niyati Bhandari

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