Inspirational Story: आप भी रखते हैं अमीर बनने की इच्छा तो अवश्य पढ़ें ये कथा

Tuesday, Jul 26, 2022 - 12:13 PM (IST)

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Inspirational Context: पिता की सारी अमीरी डायलिसिस पर दम तोड़ रही थी। सांसें इतनी बेहया थीं कि अमरीका में रह रहे अपने इकलौते बेटे को देखे बिना टूटने का नाम नहीं ले रही थीं। बेटा भी ऐरा-गैरा नहीं था। नाम गूगल करने पर सौ से ज्यादा वैबसाइटें खुल जाती थीं। खुलेंगी भी क्यों न ! आई.आई.टीयन जो था। अमरीका में खुद की कम्पनी, आलीशान मकान, परी जैसी पत्नी तक बहुत कुछ था। आगे-पीछे नौकर-चाकर की फौज दौड़ती थी।

हां, नौकर-चाकर से एक बात याद आई। उसे सभी नौकरों के नाम याद थे। यहां तक कि उनके बच्चों के भी। गजब की याद्दाश्त थी। किंतु इधर कुछ वर्षों से पिता का जन्मदिन याद नहीं रहा। याद भी क्यों रहे?

जब रिश्ते सामान बन जाएं और सामान चलन से बाहर हो जाए तो उनकी कोई महत्ता नहीं रह जाती। वैसे भी सामानों का भी कहीं जन्मदिन मनाया जाता है भला !

लाख चिरौरी करने के बाद और पिता की उखड़ती सांसों का हवाला देते हुए अमरीका से लाड साहब को बुलाया गया। वह भौतिकवादी था। उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि उसे क्यों बुलाया गया। उसका मानना था कि बूढ़ा शरीर एक दिन जवाब दे ही देगा। इसके लिए पहले से बुलाने का क्या मतलब। मरने के बाद जो भी करना होता है, वह तो बाद में आकर भी किया जा सकता है। यदि एक-दो दिन इधर-उधर हो भी जाता है तो क्या फर्क पड़ता है। इतनी जल्दी भी क्या है ? कौन-सी दुनिया डूबी जा रही है ? आखिर यह फ्रीजर किस दिन के लिए पड़े हैं ? उसमें रख देने से शव थोड़े न खराब होगा। यही सब सोचते हुए पिता की ओर देख रहा था।

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पिता ने आंखों के संकेत से उसे अपने पास बुलाया। नाक-भौं सिकोड़ता हुआ वह पिता के सिरहाने जाकर खड़ा हो गया। पिता ने उसे छूने का प्रयास किया।

वह अपने लड़के को जिंदगी भर की कमाई मानते थे। बेटे को हल्की आवाज में कहा, ‘‘बेटा एक बात हमेशा याद रखना। जब सीमा से अधिक सुख मिले, अपेक्षाओं से ज्यादा नए रिश्ते बनें, कल्पना से अधिक कमाई हो, आशा से अधिक पद मिले, तब कहीं न कहीं उन पर पूर्णविराम लगाने की चेष्टा अवश्य करना।’’

‘‘बिना विराम का वाक्य और बिना विश्राम का जीवन बहुत बोझिल लगता है। जवान रहते चार पैसे कमाने की इच्छा बुरी नहीं है किंतु कमाना ही जीवन बन जाए तो चार पैसे कब चार धेले बन जाएंगे, तुम्हें पता ही नहीं चलेगा।’’

‘‘ये धेले कहीं और नहीं तुम्हारी किडनी में जमा होंगे। तब सारा कमाया इन धेलों को निकालने में लगाते रह जाओगे। जैसा कि अब मैं कर रहा हूं।’’

‘‘ये धेले खराब भोजन की आदतों से कम तनाव से ज्यादा पैदा होते हैं। मैं जिंदगी भर पैसे के पीछे दौड़ता रहा जिसका परिणाम आज मैं स्वास्थ्य के पीछे दौड़ रहा हूं।’’

‘‘मैं समझता रहा कि मैं जिंदगी भर पैसा कमा रहा हूं। हद से ज्यादा पैसा सुख दे न दे, बीमारी जरूर देगा। पैसे और स्वास्थ्य के बीच मुझ से मेरा चरित्र कहीं छूट गया।’’

‘‘काश रुपए-पैसों से चरित्र खरीदा जा सकता। तब न मैं एक विफल बाप बनता और न मैं तुम्हारी परवरिश इस तरह से करता।’’

इतना कहते-कहते पिता अपने बेटे को एक पॉकेट बुक थमाने का प्रयास करने लगा। तब तक ईहलीला समाप्त हो चुकी थी। बेटे ने पॉकेट बुक को खोल कर देखा तो उस पर अंग्रेजी में लिखा था ‘वैन यू लूज यूअर मनी, यू लूज नथिंग। वैन यू लूज यूअर हैल्थ, यू लूज समथिंग। वैन यू लूज यूअर कैरेक्टर, यू लूज एव्रिथिंग।’

इतना पढ़ते-पढ़ते पुस्तक में ‘कैरेक्टर’ लिखा शब्द बेटे के आंसुओं से गल चुका था।   

Niyati Bhandari

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